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“कुछ भी करने का ,खुदा का ईगो hurt नई करने का “

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इस मासूम दुनिया को आखिर कब ,आखिर कितने दंगे फसादों , कितने आतंकी हमलों ,तकरीरों ,फतवों के बाद जाकर एहसास होगा कि खुदा बहुत ही ज्यादा fragile हैं , बोले तो नाज़ुक , कोई भी कब्बी भी खुदा के अगेंस्ट नहीं बोलने लिखने का | डेनमार्क भूल गए ,एक कार्टून का चित्रांकण से लेकर बहुत सालों बाद उसके प्रकाशन  करने वाले अखबार तक को इस गुनाह-ए-अजीम के लिए अपनी जान तक देनी पड़ी थी |

ईश निंदा बिलकुल भी बर्दाश्त नहीं है इन अमन पसंद बाशिंदों को | लेकिन इन्हें ये नियम सिर्फ  उन पर लागू करना है जो बकौल इनके काफिर हैं | इनके अपने खुदा के अलावा जितने भी खुदा हैं उनकी खुदाई से कोई सरोकार नहीं है इन्हें | गजवा ए हिन्द का ख्वाब देखने वाले ये सूरमा लोग यूँ  जलसे जुलूस दंगे में बड़े गर्व से कहते फिरते हैं कि विश्व में 56 मुस्लिम देश हैं 56 ,मगर जैसे ही कोई मुहम्मद साहब ,पैगम्बर मुहम्मद आदि के जीवन चरित आदि पर कोई कुछ बोल दे ,लिख दे ,कह दे बस वहीं से मजहब बौखला जाता है | 

ये तो कुरान की शान्ति का पैगाम ही है जो ईश निंदा की प्रतिक्रया में ये शान्ति दूत सम्प्रदाय मात्र छोटे बड़े दंगे , हिंसा ,लूट ,आगजनी ,तोड़फोड़ आदि जैसे कदमों का सहारा लेते हैं नहीं तो खुदा के खिलाफ जाने सोचने बोलने कहने वाले को तो इस पूरी कायनात में रहने का ही कोई हक़ नहीं | हाँ बार बार आपको ध्यान ये दिलाया जा रहा है कि ऐसा सिर्फ और सिर्फ खुदा के मामले में ही ये एप्लीकेबल होगा/होता है |

हिन्दू देवी देवताओं ,प्रतीकों ,आस्थाओं तक को भला बुरा कहना ,गाली देना ,उपहास और मजाक का विषय बनाना , जूते चप्पल से लेकर अन्तः वस्त्रों तक पर उनका चित्रण करना ये सब करने रहने से कभी भी किसी को भी न तो ये डर सताता है कि इन सबके बदले में उसे ,उनके मकान दूकान को फूँक डाला जा सकता है | हिन्दू ठहरे आखिर सहिष्णु प्राणी ,क्या होगा ज्यादा से ज्यादा कहीं विरोध स्वरूप कुछ लिख बोल देंगे ,मगर दंगे करना शहरों को जला कर राख कर देना ,इतनी काबलियत और कलेजा नहीं है हिन्दुओं में | 

ऐसे में हिन्दू ,सिक्ख ,ईसाई ,यहूदी ,पारसी आदि जितने भी गैर मुस्लिम धर्म पंथ हैं सबको और सबके अनुयायियों को ये बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि चाहे मकबूल फ़िदा हुसैन ,अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में माँ सरस्वती का नग्न चित्र बना दे , चाहे राहत इंदौरी और मुनव्वर राणा जैसे स्वघोषित मिर्ज़ा ग़ालिब लोग शायरी और गजल गायकी के बहाने से दूसरे धर्म और दूसरे सभी लोगों को कोसते गलियाते रहें ,और चाहे इससे भी ज्यादा कुछ होता रहे मगर चूंकि सिर्फ और सिर्फ खुदा ही fragile (नाजुक ) हैं ,इसलिए इनके मामले में कुछ भी कहा सुना देखा नहीं जा सकता नहीं तो बाद में दंगे ,ह्त्या ,लूट आदि ही देखने को मिलता रहेगा दुनिया को |

बंगलौर में कांग्रेस के विधायक के एक रिश्तेदार ने फेसबुक पर कोई आपत्तिजनक बात लिख दी और जिस तरह से उसके विरोध में शहर और थाने फूँक दिए गए उसीसे सबको ये भी पता चल गया कि वो पोस्ट पैगम्बर मुहम्मद साहब के विषय में लिखी गई थी | इस घटना ने कई सारी बातों को प्रमाणित किया | कांग्रेस ही नहीं ,उनके विधायक ही नहीं बल्कि विधायकों के रिश्तेदार तक बावली पूँछ हैं जो राहुल गांधी पर पोस्ट लिखने की बजाय मुहम्मद साहब पर लिख रहे हैं | 

फेसबुक और व्हाट्सएप जैसे सोशल नेट्वर्किंग प्लेटफॉर्म ऐसी बातों के लिए एकदम उत्प्रेरक का काम करते हैं , चुप्पे से ऐसी आग लगा देते हैं कि पूरा शहर समाज देश भक्क करके जल उठता है | समाज के तमाम ज़ाहिल इन कामों को करने में सिद्धहस्त हो चुके हैं | टिक टोक जैसे एप्स  के बंद हो जाने के बाद तो इनकी कुंठा अपने चरम पर है |

इसलिए चलते चलते एक बार फिर आपको बता दूँ

“कुछ भी करने का ,खुदा का ईगो नहीं हर करने का “

सिरदर्दी का सबब : व्हाट्सएप ग्रुप

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इंसान अपने खुराफाती दिमाग के कारण हमेशा ही दोधारी तलवार की तरह सोचता और करता है | यही वजह है कि उपयोग के साथ उसका दुरूपयोग भी होने की संभावनाएं तलाश ली जाती हैं | इन दिनों तो अपने लिए मुसीबतें गढ़ने का समय है |

तकनीक का उपयोग और फिर उसकी आदत ,धीरे धीरे कब उन तकनीकों के उपयोग के शिष्टाचार से बाहर कर देती है उसका पता भी नहीं चलता | और एक मज़ेदार बात ये भी है कि तकनीक इतनी तेज़ी से बदल रही है कि कौन कब आऊट डेटेड हो जा रहा है पता ही नहीं चलता हाँ हो जाएगा ये निश्चित है |

आज एक अकेले मोबाइल ने चिट्ठी , रेडियो ,घडी ,कैमरे ,और पेजर तक को इतिहास की बातें बना कर रख दिया | आज मोबाइल हमारे अनिवार्य से भी जरूरी साथी के रूप में अपनी जगह बना चुका है ,और इसके सहारे किसी खेल ,किसी एप्प की जो लत लगाई /लगवाई गयी है वो कितने खतरनाक स्तर तक दिलो दिमाग पर छाई हुई है इसका अंदाज़ा सिर्फ टिक टॉक और पब जी जैसे एप्स के बंद किये जाने के बाद इनके उपयोगकर्ताओं की निराशा से ही लग जाता है | 

सोशल नेट्वर्किंग (वो भी आभासीय /अंतर्जालीय ) आज इस सोशल डिस्टेंसिग के समय में तो जैसे अचानक किसी मुश्किल के हठात मिले हल की तरह से सामने आया है |  आज व्हाट्सएप ,फेसबुक, ट्विट्टर ,इंस्टाग्राम आदि जैसे सर्वाधिक लोकप्रिय सोशल प्लेटफॉर्म्स से कौन नहीं जुड़ा हुआ है ? अपनी अपनी रूचि के अनुसार सब इन विकल्पों पर अपनी सहभागिता करते हैं | लेकिन सिक्के के दो पहलुओं की तरह यहां भी मामला दोतरफा ही होता है |

ट्विट्टर जहां ट्रोल किए और कराए जाने को लेकर कुख्यात होता जा रहा है तो सबके फोन में एक सबसे अनिवार्य चैट एप ,व्हाट्स एप में ग्रुप यानि समूह फीचर से |

हालांकि इन एप्स के निर्माता इंजिनियर लगातार इनमें फेरबदल करके नई नई तकनीक से इसे और अधिक उपयोगी और समुन्नत बनाते रहते हैं | व्हाट्सएप पर ग्रुप बनाना ,सभी साथियों को उसमें जोड़ना , समूह के संचालन के लिए समूह का प्रशासक बनाना ,किसी एक उद्देश्य के लिए ,सूचना व् संवाद के लिए जैसे बहुत सारे विभिन्न उद्देश्यों से शुरू किये गए ये व्हाट्सएप ग्रुप जल्दी ही सुबह शाम वाले स्टिकर संदेशों से भरने लगते है और फिर दिन रात स्तरहीन चुटकुलों , भ्रामक जानकारियों आदि के सन्देश घूम घूम कर अलग अलग ग्रुप में आकर बार बार मोबाइल वाले को मुंह चिढ़ाते हैं |

अब लोग इतने सहनशील और नम्र नहीं रहे , आए दिन अब तो इस तरह की खबरें देखने पढ़ने सुनने को मिल जाती हैं की अमुक ग्रुप संचालक को समूह के एक सदस्य ने समूह से बाहर निकाले जाने को लेकर नाराजगी में उसका सर फोड़ दिया | या फिर कई बार पारिवारिक सदस्यों के साथ शुरू किये हुए ग्रुप किसी छोटी सी बात से शुरू होकर तिल का ताड़ होते हुए सारे आपसे प्रेम भाव को भी पलीता लगा देते हैं |

असल में इन व्हाट्सएप समूहों पर अक्सर होता ये है कि , कोई एक सदस्य टिप्पणी करता है ,कई बार किसी दूसरे सदस्य के लिए करता है , बीच में तीसरा सदस्य आकर उस में अपनी बात रख देता है और चौथा आकर उसे अपने तरीके से सोच और समझ लेता है | 

लगाकर आने वाले नोटिफिकेशन भी उपयोगकर्ता के लिए एक नियमित सा टेंशन एलर्ट रहता है ये ,न देखे तो आवश्यक सन्देश भी उसी नोटिफिकेशन की भीड़ में कहीं गायब हो जाएंगे और यदि देखें तो फिर क्या क्या देखें और कितना देखते रहें |

व्हाट्सएप समूह धीरे धीरे बकैती का अड्ड़ा बननाए जाने और पीछे से सरकाए हुए सारे संदेशों को आगे के समूहों में उझीलने के पवित्र उद्देश्य से निर्मित किया गया था या किसी और कारण से ये तो पता नहीं मगर विद्या माता की कसम , दुखी कर रखा है इन व्हाट्स एप समूहों ने जी |

 

सुशांत की मौत :एक न सुलझने वाला अपराध

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आपको कुछ सालों पहले घटी घटना आरुषि तलवार हत्याकाण्ड अभी जेहन से पूरी तरह तो भुलाई नहीं जा सकी होगी | वही दिल्ली से सटे नोएडा एक फ़्लैट में 14 वर्षीय एक बालिका की नृशंस ह्त्या जिसमें लाख कोशिशों के बावजूद भी आजतक किसी को पता नहीं चला की वास्तव में आरुषि तलवार का हत्यारा था कौन ?

ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ क्यूंकि अक्सर समाज में किसी न किसी को ये कहते सुनते पाया है की ” अपराध कभी नहीं छुपता ” लेकिन अब इस पंक्ति पर रत्ती भर भी यकीन नहीं होता | पुलिस हर साल अलग से उन घटनाओं और अपराधों की सूची जारी करती है जो पुलिस अनुसंधान में अपने अंजाम तक नहीं पहुँच पाते |

यही सब कुछ अब हाल ही में विवादास्पद मृत्यु का शिकार हुए सुशांत सिंह राजपूत के सारे घटनाक्रम में | इस नवोदित सितारे की अचानक और संदेहास्पद मौत की घटना ने हिंदी सिनेमा में एक भूचाल ला कर रख दिया है |

इन दिनों हिंदी सिनेमा में चल रही हर गलत प्रवृत्ति , प्रचलन और व्यवहार पर सार्वजनिक विमर्श द्वारा दर्शकों के सामने उस चकाचौंध भरी करिश्माई फ़िल्मी दुनिया का क्रूर सच सामने लाया जा रहा है | बात चाहे भाई भतीजावाद को लेकर हो या फिर , एक खास गुट द्वारा हिंदी सिनेमा पर जबरन दबदबा बनाए रखने की कोशिश की , गैर सिनेमाई परिवेश से आने वाले नए कलाकारों के साथ अमानवीय स्तर तक दुर्व्यवहार और शोषण , हिंदी सिनेमा में अपराध जगत द्वारा पैसे के निवेश का खेल आदि जैसे बहुत सारे अनछुए पहलुओं पर अब गहराई से पड़ताल शुरू हो गई है |

सुशांत सिंह राजपूत की मौत ने जैसे एक उत्प्रेरक घटना का काम कर दिया है और ऐसा लग रहा है जैसे सिने जगत का हर अभिनेता ,कलाकार ,आदि जल्द से जल्द अपना अपना सच स्वीकार करके इस बोझ से बाहर आने का प्रयास कर रहे हैं | और ये आने वाले हिंदी सिनेमा के लिहाज़ से भी निर्णायक ही साबित होगा |

एक जाने माने अभिनेता की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो जाती है | स्थानीय पुलिस जो लगभग 40 दिनों की जांच पड़ताल ,पूछताछ और अन्वेषण के बावजूद एक शब्द आधिकारिक रूप से बताने को तैयार नहीं है ये तक नहीं कि पुलिस जांच आखिर जा किस दिशा में रही है |

इस बीच सुशांत की मौत ने जहाँ आम दर्शकों को अपने चाहते अभिनेता की मृत्यु के सच को जानने के लिए उद्वेलित किया और बार बार इस घटना की सीबीआई जांच की माँग उठने लगी | नए घटनाक्रम में सुशांत राजपूत के परिवार द्वारा सुशांत की पूर्व महिला मित्र रिया को नामजद कर प्राथमिकी दर्ज़ कराई गयी है | इसके बाद मौजूदा हालात में महाराष्ट्र ,बिहार पुलिस के अतिरिक्त प्रवर्तन निदेशालय भी अपने स्तर पर इस मामले को देख रहा है |

लेकिन इन सबके बीच जो सबसे अहम् बात दरकिनार हो रही है वो है घटना के बाद बीत जाने वाला एक एक दिन | जैसे जैसे दिन निकलते जाएंगे साक्ष्यों ,गवाहों ,आदि के लिए अनुसंधान किये जाने और उससे पुख्ता सच बाहर आने की संभावना दिन पर दिन क्षीण होती जाएगी |

इस घटना के पूरे अनुसंधान और अन्वेषण के उपरान्त इसका परिणाम चाहे जो भी निकले ,दोषी एक या एक से अधिक व्यक्ति निकलें | किन्तु इतना तो सत्य है की हिंदी सिनेमा की इस चमकती दमकती दुनिया के अंदर बहुत ही घिनौना और वीभत्स चरित्र छुपा हुआ है और लगातार अपना शिकार बना रहा है अलग अलग नामों से | कभी जिया खान तो कभी सुशांत सिंह राजपूत के नाम से |

बाढ़ बनाम बिहार : मुकदमा जारी है श्रीमान

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गृह प्रदेश बिहार के साथ बहुत सारी विडंबनाएं जुड़ी हुई हैं और जितनी अधिक विडंबनाएं हैं उतनी ही ज्यादा बुरी स्थिति इस राज्य की बन जाती है जब यकायक ही कोई आपदा घेर ले | इस बार चुनौती (जो कभी बिहार प्रशासन के सामने आती नहीं है ) ज्यादा इसलिए भी दिख रही है सामने क्यूंकि आदतन हर साल आने वाली बाढ़ के अतिरिक्त इस बार कोरोना महामारी ने भी लोगों को लीलना शुरू कर दिया है |

मैंने जबसे होश सम्भाला है तब से लेकर आज तक बिहार का शोक कह कर पढ़ाई और बदनाम की जाने वाली नदी के अथाह पानी का लाभ उठाना तो दूर हर साल उसके नाम पर लाखों करोड़ों रूपए कुछ ख़ास लोगों के हिस्से में चले जाते रहने की रवायत ही देखता सुनता रहा हूँ |

इतने लम्बे समय के बीत जाने  भी , देश भर में नई तकनीक और नई संसाधनों से ,कई दशकों तक कोई सुधार नहीं किया गया | हर साल इन बारिश के मौसम में बैठ कर सिर्फ ये समाचार देश भर को देते रहना कि बाढ़ ने यहां इतना ऐसे नुकसान  कर दिया |

सिर्फ कोसी ही क्यों ,कमला ,बलान आदि जैसे उपनदियों से भी हर साल ऐसा ही आपदा और आफत की खबरें सुनने देखने को मिलती हैं | कल्पना ही की जा सकती है  कि यदि थोड़ा थोड़ा भी इस दिशा में कुछ करने की शुरुआत की गयी होती तो हालात दिनों दिन सालों साल बद से बदतर नहीं होते जाते , या कहा जाए कि ऐसे ही हालत जान बूझ कर बनाए रखे जाते |

अभिलेख कर साक्ष्य बताते हैं की राज्य में कम से कम 83 ऐसी जांच चल रही हैं जिनमे आपदा राशि के साथ छेड़ छाड़ और उस राशि की लूट खसोट से जुड़ा भ्रष्टाचार ही मुख्य अपराध है | ये स्पष्टतया इशारा करता है कि राजेनता और प्रशासनिक अधिकारियों की पूरी सुनियोजित मिलीभगत के बिना दशकों तक इतना बड़ा भ्रष्टाचार करते चले जाना संभव नहीं है |

बिहार के उद्धार के नाम पर , कभी भोजपुरी तो कभी मैथिलि के नाम पर देश से लेकर विदेशों तक में चल और चलाए जा रहे तमाम आन्दोलनों को भी आपसी प्रतिद्वदिता त्याग कर एक लक्ष्य को निर्धारित कर सबको उसके लिए काम करना चाहिए | एक संगठन एयरपोर्ट को मुद्दा बनाए हुए है तो दूसरा चिकित्सा व्यवस्था को ,तीसरे को राजनीति करनी है और चौथे को उसके नाम पर ख्याति हासिल करनी है |

इस परिवेश में फिर आखिर कार ये वर्षा ही क्यों प्रतिक्रियाविहीन रहे सो बार बार पलट कर पिछली बार से अभी अधिक खतरनाक हो कर सामने आ जाती है और अभी ये सिलसिला टूटने वाला भी नहीं है

 

आइये बागवानी शुरू करें

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इस वर्ग में लिखी गई पोस्टों में  , यहाँ उपलब्ध कराई गयी जानकारियाँ ,  आदि मेरे पिछले एक दशक से अधिक समय से दिल्ली की एक फ़्लैट की छत पर की जा रही बागवानी के वो अनुभव हैं जो मैंने इस क्रम में सीखा और समझा | बागवानी में दक्ष नहीं कहूँगा हाँ पौधों का अच्छा दोस्त जरूर हो गया हूँ मैं | तो आइये शुरू करते हैं बागवानी करना :-

जो भी बागवानी शुरू करना चाह रहे हैं , यही सबसे उपयुक्त समय है | शुरू हो जाइये और जो भी उगना लगाना चाह रहे हैं फ़टाफ़ट लगा दें | मानसून की बारिश इन पौधों के लिए वही काम करती है जो बच्चों के लिए बोर्नवीटा या हॉर्लिक्स करते हैं |

पौधों को खाद पानी देने का भी यही उचित समय है , अभी बारिश की बूंदों के बीच वे जड़ों और मिटटी में खूब रच बस जाएंगे और और जैसे जैसे धूप नरम पड़ती जाएगी सब कुछ गुलज़ार हो उठेगा |

जिन पुराने पौधों में कलियाँ और नए पत्ते आते नहीं दिख रहे हैं उनकी प्रूनिंग के साथ साथ निराई गुड़ाई भी समय है | मानसून में तो धरती का सीना चीर कर हरा करिश्मा बाहर निकल जाता है तो जैसे ही आप उनकी कटिंग करके छोड़ देंगे अगले महीनों में वे कमाल का रंग रूप निखार लेंगे | जिन्हें गुलाब ,आम ,नीम्बू आदि की कलम लगानी आती है उनके लिए भी यही सबसे उपयुक्त समय है |

धनिया , साग , मेथी आदि को लगाने उगाने से फिलहाल परहेज़ ही करें अन्यथा अचानक कभी भी आने वाले तेज़ बारिश आपकी मेहनत पर पानी फेर देंगे |

शुरुआत में यदि बीज से खुद पौधे उगाने में असहज महसूस कर रहे हैं तो आसपास नर्सरी से लेकर आ जाएं | इस मौसम में बेतहाशा पौधों के अपने आप उग जाने के कारण अपेक्षाकृत वे आपको सस्ते और सुन्दर पौधे भी मिल जाएंगे |

बस….तो और क्या , हो जाइये शुरू अपने आस पास खुश्बू और रंग का इंद्रधुनष उगाने के लिए | कोई जिज्ञासा हो तो बेहिचक कहिये , अपने अनुभव के आधार पर जितना जो बता सकूंगा उसके लिए प्रस्तुत हूँ |

पढ़ेगा इण्डिया तो बढ़ेगा इण्डिया : नई शिक्षा नीति

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मोदी सरकार हर क्षेत्र में ऐसे ऐसे क्रांतिकारी सुधारों पर लगातार इनमें सुधार का जो काम कर रही है वो अपरिहार्य और अद्वितीय है | नई शिक्षा नीति को मंजूरी मिल गयी है | और ये मंजूरी सिर्फ एक नीति को नहीं मिली है ये आग्रह हुआ है शिक्षाविदों से कि अब देश सिर्फ पढ़ेगा नहीं ,वो सीखेगा , समझेगा वो सब जिसकी जरूरत उसे आगे अपने जिंदगी के छोटे बड़े ख़्वाब पूरे करने में ही काम आएंगे |

ये देश जो गुरुकुल में रह कर शिक्षित और सुसंस्कृत होता था उसे जबरन अंग्रेजियत से पीछे सरका कर खड़ा किए जाने की दशकों तक लगातार चलने वाली कोशिशों ने आखिरकार देश की भाषा और संस्कृति तक को एक बाज़ार भर में बदल कर रख दिया | पिछले कुछ दशकों में शिक्षा के क्षेत्र में जिस सबसे मूलभूत जरूरत को हमेशा ही उपेक्षित रखा गया वो था रोजगारपरक शिक्षा या कौशल आधारित प्रशिक्षण व्यवस्था | लगातार एक ही तरह की शिक्षा व्यवस्था में तेज़ी से बदलते , हुए बौद्धिक  व तकनीकी समझ की कमी , इंटरनेट की दुनिया के कारण वैश्विक शैक्षणिक व्यवस्था के बीच स्व मूल्यांकन जैसे आने कारकों ने ये जरूरत महसूस करवा दी थी |

सरकार जिसने अपने मानव संसाधन मंत्रालय का नाम बदलकर पूर्णरूपेण शिक्षा मंत्रालय ही नहीं किया बल्कि आने वाले अगले पंद्रह वर्षों में देश को  सम्पूर्ण साक्षर और उत्पादकता आधारित शिक्षा व्यवस्था देने के लिए पूरीऔर  तरह कटिबद्ध दीर्घकालिक नीति पेश कर दी है | वर्तमान शिक्षा पद्धति पिछले 22 वषों से चली आ रही थी तथा वर्तमान परिवर्तनों के अनुरूप भारतीय शिक्षा नीति में बदलाव अपेक्षित था |

मध्य विधालयी शिक्षा ही यह तय कर देगी कि बच्चे उसके आगे अपने भविष्य में किसी कौशल से रोजगार सुनिश्चित करने के लिए आगे की कक्षाओं की पढाई एक अमुक दिशा में करनी होगी | उच्च और उच्चतर स्तर पर कौशल को मांज कर उसे सटीक और दक्ष करके रोजगार और उत्पादन की इकाई के साथ एकाकार कर देने का फैसला भी बहुत ही युगांतकारी साबित होगा | प्राथमिक शिक्षा अपनी मातृभाषा में ग्रहण किये जाने का निर्णय भी स्वागतयोग्य है |

उच्च शिक्षाओं में लगा हुआ समय श्रम और ज्ञान अब निरर्थक नहीं जाएगा जो जहां तक भी पढ़ सकेगा उसे उसी के अनुरूप प्रमाणपत्र दे दिया जाएगा | रोजगारमूलक शिक्षा पद्धति को अपनाए रखने की सोच के कारण ही लगभग 156 गैर परंपरागत विषयों को पहली बार ही मुख्य शिक्षा की धारा में लाया गया  है |

नियंत्रक /नियामक संस्थाओं को एक साथ लाकर अधिक पारदर्शिता और रफ़्तार देने के की कोशिश आने वाले समय में कितनी नई चुनौतियां और नए बदलाव शिक्षा व्यवस्था में लाएगी ये देखने वाली बात होगी |

लेकिन इतने सबके बावजूद  भी कुछ अपेक्षित निर्णय मसलन पूरे देश में निजी शिक्षण संस्थानों द्वारा जारी खुल्लम खुल्ला लूट पर रोक , सरकारी शिक्षण संस्थानों का नवीनीकरण और आधुनिकीकरण ,(कम से कम निजी संस्थान से रत्ती भर भी कम नहीं ), पूरे देश भर में एक ही कोर्स और एक ही किताबों से पढाई तथा दो वर्ष का अनिवार्य सैन्य प्रशिक्षण ताकि शैक्षणिक संस्थानों से निकल कर समाज के बीच जाने वाला एक सम्पूर्ण नागरिक बन सके |

अब सबसे जरूरी बात ये है कि आने वाले समय में इन शिक्षा सुधारों पर अमल किया जाना सुनिश्चित करना शिक्षा नीति को लाए जाए जितना ही अधिक महत्पूर्ण है |

आयातित सामाजिक परम्पराएं : एक विमर्श

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पिछले एक दशक में भारतीय समाज में कुछ बहुत ही क्रांतिकारी परिवर्तन देखने सुनने को मिल रहे हैं । ये परिवर्तन भारतीय समाज को क्या और कितना बदलेंगे ये तो आने वाला समय भी बताएगा और भविष्य में भारतीय समाज को एक मोड पर आकर ये निर्णय भी लेना ही होगा कि आने वाला समाज कैसा होगा ? क्या धीरे धीरे भारतीय समाज में पैठ बनाती ये नवीन परंपराएं और चलन भारतीय समाज की बरसों पुरानी चूलें हिला देगा ?: या फ़िर कि आने वाले समय में लाख विरोध और प्रतिक्रियाओं के बावजूद यही परंपराएं  युगों से चली आ रही भारतीय रीतियों के ऊपर भारी पडती हुई संचालक परंपराएं बन जाएंगीं ।
आज भारतीय समाज में , विशेषकर शहरी समाज में , लिव इन रिलेशनशिप , सरोगेट मदर ,  मर्सी किलिंग , होमो सैक्सुऐलिटी और इन जैसी और भी कई आ रही और आने वाली बहुत सी परंपराओं ने अब खुद को स्थापित करने के लिए न सिर्फ़ सरकार और समाज के सामने चुनौती खडी की है बल्कि आज वे अदालतों का दरवाज़ा खटखटा कर उन्हें कानूनी /वैधानिक मान्यता दिलाने की लडाई शुरू भी कर चुके हैं ।
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ऐसा हो सकता है कि कई लोगों को पहले इसी बात से ही एतराज़ हो कि जिन परंपराओं की बात ऊपर की गई है । उनमें से अधिकांश या सारी ही भारतीय समाज में कभी न कभी किसी न किसी रूप में प्रचलित रही हैं इसलिए इन्हें पश्चिमी देशों से आयातित हुआ नहीं माना जा सकता । इस राय से इत्तेफ़ाक रखा जा सकता है । हालांकि जितने भी उदाहरण हैं वे सब उन ग्रंथों और इतिहासकारों द्वारा लिखे गई उस इतिहास पर आधारित हैं जिनके पूरी औचित्य और प्रमाणिकता पर ही अभी बहस चल रही है । आईये इन्हीं में से कुछ परंपराओं का उदाहरण लेते हैं ।
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हाल ही में चर्चित अरूणा शानबाग की दया मुत्यु याचिका पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने सरकार को ये निर्देश जारी किए हैं कि वो इस विषय पर व्यापक बहस और विमर्श करने के बाद इस दिशा में कोई स्पष्ट कानून बनाए ताकि उसके परिप्रेक्ष्य में ऐसे मुकदमों की व्याख्या की जा सके । भारत में मर्सी किलिंग की बात जैसे ही पुन: बहस के लिए सामने आई है एक बार फ़िर से उस दलील को रखा गया है कि ये परंपरा प्राचीनकाल में भी प्रचलित थी और साधू संत अपने जीवन को समाप्त करने के लिए इसका सहारा लेते थे ।जबकि स्थिति सर्वथा भिन्न है ।
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                        प्राचीन काल की जिस प्रथा की ओर ईशारा किया जा रहा है उसे “सल्लेखन ” कहा जाता था । इसे अपनाने वाले न सिर्फ़ साधू संत थे बल्कि एक प्रसिद्ध गुप्त शासक ने भी अपने जीवन के अंतिम दिनों में इसका सहारा लिया था । इस प्रक्रिया के तहत लगातार उपवास रख कर शरीर को इतना कमज़ोर कर लिया जाता था कि अंतत: मुत्यु हो जाती थी । जहां तक भारतीय इतिहास में इच्छा म्रुत्यु की बात है तो महाभारत काल में युवराज देवव्रत जिन्हें भीष्म पितामह कहा जाता है , संदर्भ है कि पितृ स्नेह के लिए लिए गए आजीवन अविवाहित रहने का व्रत लेने के कारण उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान मिला था , जो की इसके ठीक उलट था वो न मनचाहे समय तक जिंदगी जीते रहने का वरदान था मौत पाने का अधिकार नहीं । इस लिहाज़ से जीवन न जी सकने जैसी परिस्थितियों के रूबरू कानूनी रूप से मौत पाने या देने के अधिकार की लडाई मर्सी किलिंग कहलानी चाहिए ।
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लिव इन रिलेशनशिप , इस मुद्दे पर दक्षिण की मशहूर अभिनेत्री खुशबू द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने स्पष्ट किया था कि यदि दो बालिग लोग अपनी सहमति और इच्छा से एक साथ युगल दंपत्ति की तरह रहते हैं तो वो किसी भी दृष्टिकोण से गैर कानूनी या गलत नहीं है । इस फ़ैसले को न सिर्फ़ विवाह जैसी संस्थाओं के लिए चुनौती के रूप में लिया गया बल्कि ये भी दलील दी गई कि अदालत ने इस फ़ैसले पर मुहर लगा कर ये जता दिया है कि न तो ये अवैधानिक है न ही अनैतिक ।
जिन लोगों ने विरोध में प्रतिक्रिया दी उन्हें कहा गया कि प्राचीन इतिहास में भी इस तरह के बहुत से उदाहरण देखने सुनने को मौजूद हैं । राधा कृष्ण के संबंध को भी उदाहरण के तौर पर उधृत किया गया कई बार , लेकिन न तो उन संबंधों की प्रमाणिकता को सिद्द किया जा सका है और न ही उसका स्वरूप उस संदर्भ में सटीक लगता है जिस संदर्भ में लिव इन रिलेशनशिप को देखा जा रहा है समाज द्वारा । सबसे बडी बात ये कि इन संबंधों को कभी भी दैहिक रिश्तों और उससे उपजे प्रश्नों के लिए नहीं चिन्हित किया गया ।
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आज जिस लिव इन रिलेशनशग्प को कानूनी जामा पहनाया गया है उसे बहुत ही व्यापक रूप से व्याख्यायित करने के बावजूद अभी उन रिश्तों से उत्पन्न संतानों , उन रिश्तों से उपजे और मिले या न मिले अधिकारों या दायित्वों का निर्धारण होना भी अभी बांकी ही है । ऐसे में पूरे समाज से उंगलियों पर गिने इक्के दुक्के अपुष्ट उदाहरणों को सामने रख कर ये साबित करने की कोशिश कि ये सब पहले भी प्रचलित और मान्य था , आसानी से गले नहीं उतरती ।
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इनके अलावा मदर सरोगेसी , और होमो सैक्सुएलिटी जैसी परंपराओं को आत्मसात किए जाने और उसके वैधानीकरण के पीछे भी अक्सर ऐसे ही तर्कों का सहारा लिया जाता रहा है ।बल्कि इन्हीं उदाहरणों के आधार पर ये साबित करने की कोशिश भी होती रही है कि ये सब प्रचलित तो पहले से ही था बस उसे वैधानिकता का सवाल अब सामाजिक रूप से मुखर हुआ है जिसे समाज और सरकार को भी बेहिचक स्वीकार कर लेना चाहिए ।
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ऐसा ही कोई उदाहरण कल को वाईफ़ स्वैपिंग , फ़ोन सैक्स आदि जैसी निहायत ही अकल्पनीय और मानवता को शर्मसार करने वाली परंपराओं के पक्ष में दिखाई जा सकती हैं ।लेकिन सवाल ये है कि यदि ये पश्चिमी देशों से जरा भी प्रभावित (कई बार संचालित भी )नहीं है तो फ़िर यकायक ही एक साथ ही इनकी वैधानिकता की या सारे के सारे अधिकारों को पा लेने की ललक क्यों ?
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ये समाज के प्रति अचानक ही विरोध क्यों ?क्या समाज ने किसी योजना के तहत ही इन तमाम परंपराओं पर हमेशा के लिए बंदिश लगाने जैसा कुछ कर दिया था ? नहीं बल्कि हकीकत ये है कि आज इस तरह की तमाम पनप रही नई मान्यताएं और परंपराओं को भारतीय समाज में स्थापित कर देने की जो कोशिशें की जा रही हैं वो इसीलिए हैं क्योंकि उन्हें पता है कि आज जो विरोध छिटपुट असंगठित है यदि कल को वो भी एक जगह पर आ गया तो बहुत ही मुश्किल हो जाएगी ।
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समाज को भी सिर्फ़ आंखें मूंद कर और पुरानी संसकृति की दुहाई देते के रुदाली प्रलाप से बाहर निकलते हुए या तो अपने तर्कों से उसे गलत साबित करना होगा नहीं तो फ़िर उसे कम से कम बर्दाश्त करने लायक स्तर पर तो स्वीकार करने के लिए खुद को तैयार करना होगा । आने वाला समय बेहद संवेदनशील और परिवर्तनशील ्होगा ये तय है ।हालांकि ऐसा भी नहीं है कि ये सभी परंपराएं भारत के अलावा सभी देशों में स्थापित हैं और मान्य भी , जद्दोज़हद तो और भी स्थानों व देशों में ज़ारी ही है |

आखिर क्यों देती है दिल्ली सरकार आतंकियों का साथ

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कुछ समय पहले तक सिर्फ कांग्रेस और वामपंथी दल और इनके लगुआ भगुआ ही हर आतंकी , देश विरोधी ,कट्टरवादी के पक्ष में अपने आप ही खड़े दिखाई देते थे | अब इनमे एक नया नाम भी जुड़ गया है वो है दिल्ली में सत्ता में बैठी हुई पार्टी आम आदमी पार्टी | चाहे वो देश भर को बुरी तरह जिंझोड़ देने वाले निर्भया बलात्कार काण्ड के आरोपी को फ़ौरन ही सिलाई मशीन देने का फैसला हो | या जवाहर लाल विश्व विद्यालय में देश के विरूद्ध नारे लगा कर बड़ा षड्यंत्र रचने वाले छात्र नेता कन्हैया कुमार के विरूद्ध दायर किए जाने वाले पुलिस के आरोप पत्र को बार बार मंज़ूरी नहीं देने का मामला |

दिल्ली पुलिस ,दिल्ली के राजयपाल , वरिष्ठ अधिकारियों ,शासन प्रशासन के हमेशा ही खिलाफ रहने वाला ये दल ,जिसके सरमायेदारों में से बहुत सारे अब जबकि पुलिस जाँच में खुद आरोपी करार दिए गए हैं तो सरकार और इनके सरपरस्त साथियों ने दिल्ली पुलिस की जांच पर ही सवाल उठा दिया है और किसी अन्य स्वतन्त्र संस्था से दिल्ली के दंगो की जांच कराने की बात कही है |

ताज़ा घटनाक्रम में दिल्ली पुलिस द्वारा अभियोजन पक्ष की तरफ इन दिल्ली दंगों में सरकार और पुलिस का पक्ष रखने के लिए जिन सरकारी अभियोजकों की सूची सरकार के पास भेजी गई है उसे सरकार ने यह कहते हुए खारिज कर दिया है की ये सभी पूर्वाग्रह से ग्रस्त हैं और निरपेक्ष नहीं रह पाएंगे |

ये कितनी बड़ी और गलत परिपाटी की शुरुआत की गई है इसका अंदाजा भी नहीं है दिल्ली सरकार को | पुलिस को अपने जांच के बाद अदालत में दायर आरोपपत्र में आरोपी पर लगाए गए हर आरोप को संदेह की परे की स्थति तक सिद्ध करना होता है | जांच अधिकारी भी आरोपपत्र दाखिल करने से पहले सरकारी अभियोजकों से ही अंतिम विचार और आदेश लेते हैं |

आरोपी और उनका पक्ष जहां ऐसे गंभीर मुकदमों में तेज़ तर्र्रार अधिवक्ताओं की फ़ौज के साथ अदालत में अपना पक्ष रखने के लिए उतरेगा तो क्या बदले में दिल्ली पुलिस को इतना भी अधिकार नहीं है कि वो प्रशासन की तरफ ,सरकार और पुलिस की तरफ से सारे विधिक विमर्श को अच्छी तरह रख सके |

कभी कांग्रेस के तुष्टिकरण और भ्रष्टाचार से अलग “राजनीति का नया चेहरा ” बनने की घोषणा करके सत्ता में आई पार्टी आज खुल्ल्म खुल्ला वो सब कुछ भूल कर सिर्फ और सिर्फ हिन्दू के विरूद्ध खड़ी दीख रही है | यही वो वजह भी रही है है कि कभी , जस्टिस संतोष हेगड़े , किरण बेदी , कुमार विशवास , कपिल मिश्रा जैसी राष्ट्रवादी सोच वाले लोग धीरे धीरे इनसे अलग होते चले गए |

मुख्यमंत्री होते हुए सड़कों पर धरना देने बैठ जाना , जिस पुलिस की सुरक्षा में दिन रात महफूज़ रहते हैं ,मिनट मिनट में उस पर अविश्वास जताना , सार्वजनिक माध्यमों में अपमानित शब्द का प्रयोग करना ,खुद को अनार्किस्ट कहना आदि जैसे व्यवहार को अपनाने वाली ये पार्टी खुद कितनी बड़ी अवसरवादी और तुष्टिकरण की पहरेदार पार्टी बन गई इसे खुद भी नहीं पता चला |

यदि मामला अदालत तक गया जिसकी कि संभावना दिख रही है तो नियमतः दिल्ली पुलिस की ही प्रार्थना को अंतिम स्वीकृति मिलेगी | आजकल वो नारा लगाने वाले नहीं दिख रहे जो अभी कुछ समय पूर्व तक कहते फिर रहे थे : अब होगा न्याय |

Bollywood का इस्लामिक एजेंडा

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बॉलीवुड की चर्चित और अपने बेबाक बयानों से हिंदी सिनेमा में इन दिनों चल रहे सारे कुकर्मों को बेख़ौफ़ होकर सार्वजनिक कर सबके सामने लाने वाली कंगना रनौत ने एक एक करके जैसा और जो जो सच सबके सामने लाना शुरू किया है उसी सच की कड़ी में एक ये भी कड़वा सत्य है कि एक तयशुदा इस्लामिक एजेंडे के तहत न सलमान ,शाहरुख ,आमिर और सैफ अली खान जैसे अभिनेताओं ने गैर मुस्लिम सिने कलाकारों को न सिर्फ प्रताड़ित और शोषित किया है बल्कि उनका पूरा करियर तक तबाह करने में लगे रहे थे /हुए हैं |

हाल ही में हुई सुशांत सिंह राजपूत की मौत के सन्दर्भ में भी ये बात बार बार निकल कर सामने आई है कि सलमान खान जैसा अभिनेता बड़ी फैन फ़ॉलोविंग और बॉलीवुड में अच्छा खासा रसूख रखने वाला व्यक्ति भी न सिर्फ इस मामले में बल्कि ऐसे अनेकों मामंलों में ये सब करता रहा है |

बॉलीवुड को बारीकी से देखने परखने वाले लोग बताते हैं की , 1913 में जब दादा साहब फाल्के ने भारत की पहली पिक्चर बनाई थी तो उसका नाम था राजा हरिश्चंद्र ,और ये तो बस शुरआत थी इसके बाद आने वाले दिनों लगातार धार्मिक ,सामजिक सांस्कृतिक आत्मा को छूने वाले सिनेमा का ही निर्माण होता रहा | इन फिल्मों में आम लोगों को उनके ईष्ट के धर्म ,दर्शन ,ज्ञान को खूबसूरती के साथ सबके सामने लाया जाता रहा |

बॉलीवुड में निवेश और लाभ का अर्थ शास्त्र इतना बड़ा हो गया था कि अब बॉलीवुड के बीहड़ में पनपते मवाली ,स्मगलर , डॉन आदि की नज़र बॉलीवुड में पैसे लगाकर ब्लैक को व्हाईट मनी बनाने का गोल्डन कोड मिल चुका था |और वो सब के सब अपनी काली कमाई को चित्रपट सिनेमा के ईस्टमैन कलर में रंग कर सफ़ेद करने का गुर सीखने लगे |

अरुण गावली , हाजी मस्तान ,दाऊद इब्राहिम , और टाइगर मेमन जैसे अपराध की दुनिया के अगुआ सबने न सिर्फ फिल्म निर्माण में ,बल्कि इन फिल्मों के काम दिलाने के बहाने महिलाओं के शोषण और हिन्दू धर्म ,प्रतीकों ,सस्थानों और हिन्दुओं की भी छवि लगातार गिराने और एक सोची समझी साजिश के तहत ऐसा किया |

संवाद लेखन से लेकर , चरित्र चित्रण तक, गीत संगीत ,कलाकारों  विषयों तक के चयन में जानबूझ कर बहुत शातिराना तरीके से हिन्दू धर्म और प्रतीकों को कमतर करके आंकना ,उनकी छवि को उपहास का बिम्ब बना कर विवाद पैदा करना , जानबूझ कर अल्लाह मौला वाली कव्वालियों और सूफी संगीत को घुसाना | पंडित को धूर्त और मौलवी पादरी को सहृदय दिखाना , सारे आडंबर ,सारी धूर्तता , शोषण करने वाला समाज हमेशा ही हिन्दू समाज को दिखाया जाना आदि ऐसे सारे काम बड़े ही शातिर तरीके से किया जाने लगा |

अपराध की दुनिया के लोगों की नज़र हिंदी सिनेमा पर पड़ते ही ये इस्लामिक एजेंडा पूरी तरह अपनी परवान चढ़ गया | अंडर वर्ल्ड का पैसा बहुत सालों तक हिंदी सिनेमा में लगाने वाले निर्देशक भारत भाई शाह का नाम बार बार सामने आता रहा | अंडरवर्ल्ड के सीधे दखल का दोहरा परिणाम रहा | आमिर शाहरुख सलमान सैफ सरीखे अभिनेता जो अब तक बहुत बड़ी सफलता नहीं पा रहे थे हिंदी सिनेमा में ,इन्हें और इनकी फिल्मों में खूब पैसा लगाया जाने लगा , सिनेमा थियेटर समूहों को धमका कर इनकी फिल्मे दिखाने के लिए विवश किया गया | सास्कृतिक एकता के नाम पर दुश्मन देश पाकिस्तान से तमाम कलाकारों , अभिनेताओं ,संगीतकारों ,गायकों आदि को भी बुलवा कर यहाँ कमाने का मौक़ा दिया जाता रहा

इतना ही नहीं ,अरब और खाड़ी देशों में हर साल पुरस्कार वितरण समारोह और विभिन्न शोज़ के माध्यम से इन ख़ास अभिनेताओं और इनकी गैंग को पूरी दुनिया में प्रसिद्ध करने की एक सुनियोजित साजिश चलती रही | एक तरफ इन्होने अपने मुस्लिम एजेंडे पर चलते हुए फिल्मों का इस्लामीकरण करना जारी रखा तो वहीँ दूसरी तरफ गैर मुस्लिमों को बार बार धमकी दे कर डराना , और उनकी ह्त्या तक कर देने जैसे काम भी किये जाते रहे | टी सीरीज के मालिक गुलशन कुमार की ह्त्या संगीतकार नदीम द्वारा , दिव्या भारती की विवादास्पद मौत और अब सुशांत सिंह राजपूत की मौत |

इनके अतिरिक्त गायक सोनू निगम , अभिजीत , अरिजित सिंह जैसे अनगिनत प्रतिभावान कलाकारों को मुस्लिम एजेंडे के षड्यंत्र के तहत उनके करियर को बर्बाद करने की सारी कोशिशें की गई और जो अब भी जारी हैं | निजी जीवन में इन तमाम मुस्लिम अभिनेताओं ने जानबूझ कर गैर हिन्दू महिलाओं से विवाह ,वो भी कई कई विवाह ,करके अपने उसी मुस्लिम एजेंडे को और परवान चढ़ाया |

फिल्मो में जानबूझ कर हिन्दू चरित्र का किरदार निभाते ये लोग मौक़ा पाते ही हिन्दू धर्म और प्रतीकों का उपहास उड़ा कर उन्हें अपमानित करने का कोई अवसर नहीं चूकते | इनका दोगलापन देखिये तो समझ में आता है कि , गैर मुस्लिम अभिनेताओं से मुस्लिम किरदार निभवाना  और खुद मुस्लिम होकर हिन्दू नाम और चरित्र से अपनी छवि को चमकाए रखना यही इनका वो ढका छिपा छद्म निरपेक्ष रवैया तब बाहर आ जाता है जब आमिर खान , शबाना आज़मी , नसीरुद्दीन शाह जैसे दिग्गज भी समय समय पर एक पल में ही भारतीय से मुसलमान हो जाते हैं और उन्हीं ज़हरीले बोलों को अपने अपने तरीके से सबके सामने फैलाते हैं |

सबसे ज्यादा गौर करने वाली बात ये है कि इनमे से किसी भी अभिनेता ,निर्देशक ,संगीतकार ,गीतकार आदि कि हिम्मत कभी नहीं हुई कि वे मुस्लिम मज़हब के कुरीतियों ,कमियों , कट्टरवादी सोच आदि पर कुछ भी लिख कह और दिखा सकें | आखिर कब तक भारत और भारतीय अपने ही घर में अपना अपमान होता हुआ देखेंगे और न सिर्फ  देखेंगे बल्कि उसके बदले अपने खून पसीने की गाढ़ी कमाई का एक बड़ा हिस्सा इन धर्म और देश समाज के दुश्मनों की तिजोरियां भरने के लिए लगाएंगे | सोचना सबको है। …..

शंकर भगवान ने खुद बचाई हजारों लोगों की जान

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यूँ तो इस सृष्टि का एक एक कण और एक एक क्षण खुद आदि देव महादेव शिव का ही है और शिव में ही है | शिव पालक भी है और संहारक भी | फिर जब महीना ही सावन का चल रहा हो तो फिर धरती अम्बर , पाताल समुद्र सब कुछ शिव ही शिव है | कहते हैं शिव जिसे बचाने को उद्धत हों उसे काल भी नहीं छू सकता | इसका एक उदाहरण तो केदारनाथ में हुई भीषण त्रासदी थी जिसके बीच में फंसे लोग भी कैसे शिव कृपा से मौत के मुंह में जाकर बाहर निकल आए थे |

ऐसी ही एक घटना हाल ही में हरिद्वार ,हर की पौड़ी में घटी | इन दिनों सावन चल रहे हैं जब काँवड़ यात्रा अपने चरम पर होती है और हज़ारों लाखों की भीड़ हरिद्वार के चप्पे चप्पे पर। हर हर महादेव और बोल बम का जयकारा लगा रही होती है | लेकिन इस बार कोरोना महामारी के कारण इस कांवड़ यात्रा पर रोक लगी हुई है |

 

कल गिरी आकाशीय बिजली से ध्वस्त हुआ हरिद्वार का पौड़ी क्षेत्र

कल हरिद्वार में आकाशीय बिजली गिरी और ठीक हर की पौड़ी का बहुत सारा क्षेत्र पूरी तरह से ध्वस्त और तबाह हो गया |

कल्पना करिये यदि , आज ये काँवड़ यात्रा सुचारु रूप से पहले की तरह चल रही होती तो जाने कितने ही भोले के भक्तों की जान चली जाती | प्रभु इच्छा प्रभु ही जानें और वो कहते हैं न कि हर बात में कुछ न कुछ अच्छा होता ही है ऐसे में स्थानीय पुजारी सन्यासी यही कह रहे हैं की शिव को सबको बचाना था इसलिए ये सब तय था पहले ही | हर हर महादेव |