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आमिर खान को अब नहीं लग रहा भारत में रहने में डर : तीसरी शादी की तैयारी में 

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लोगों को ये भूला नहीं है कि अभी कुछ समय पहले ही , देश में मोदी सरकार के आने के बाद से ही मुगलों ने असहिष्णुता का जो राग अलापना शुरू किया था उसे , आमिर खान , नसरुद्दीन शाह ,जावेद अख्तर ,मुनव्वर राणा जैसे घाघ मुसमलमानों ने और हवा दी थी।  अपने बयानों और कथनों से दुनिया के सामने भारत की ऐसी छवि बनाने की कोशिश की थी जिससे लगे कि , भारत में अल्पसंख्यकों पर भारी जुल्म किया जा रहा हो यहाँ तक कि उनकी रोजी रोटी और निर्वाह का भी संकट उत्पन्न हो गया हो और वे सब अचानक ही असुरक्षित महसूस करने लगे हों।

इसी क्रम में -मिस्टर परफेक्शनिस्ट अभिनेता आमिर खान -जिन्होंने अपनी सिनेमा में -हिन्दू धर्म , सनातन का उपहास उड़ा कर , उन्हें अपमानित करके भी करोड़ों रूपए कमाए , नाम कमाया -उन्हें यकायक ही मोदी सरकार के आने भर से ये देश , भारत रहने लायक नहीं लगने लगा और उन्होंने  इसे छोड़ कर जाने की बात कह दी।  लेकिन यहाँ भी अपनी धूर्तता दिखाते हुए उन्होंने ये कथन भी अपनी पत्नी किरण राव के मुख से ही निकलवाया।

और अब इत्तेफाक देखिये कि आमिर खान की जिस पत्नी को देश में रहने से डर लग रहा था और वो उन्हें भारत छोड़ कर जाने के लिए कह रही थीं आमिर ने उस पत्नी को ही छोड़ दिया।  खबरों की मानें तो अब आमिर खान अपनी बेटी की हमउम्र और अभिनेत्री फातिमा सना शेख के साथ तीसरी शादी करने की तैयारी में हैं।  आमिर इससे पहले दो शादियाँ कर चुके हैं और जहाँ अभी हाल ही में आमिर ने अपनी दूसरी पत्नी किरण राव को तलाक दिया है तो वहीं आमिर की बेटी की शादी भी अभी कुछ दिनों पहले ही हुई है।

फिल्मों से लेकर , टेलीविजन तक , तरह तरह की सामाजिक समस्याओं और सन्देश देने वाली फ़िल्में और धारावाहिक बनाने वाले आमिर खान खुद की ज़िंदगी में कितने दोगले हैं इस बात का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि – आमिर के भाई फैज़ल खान -आमिर के ऊपर उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित करने और उनकी संपत्ति हड़पने का आरोप लगा चुके हैं जबकि उनकी खुद अपनी बेटी ने उन पर आरोप लगाया कि जब वे घर में यौन हिंसा का शिकार हुईं तो आमिर और परिवार ने उन्हें चुप रहने को कहा।

अब ये भी जान लीजिए कि , दुनिया को नसीहत देने वाले आमिर तीसरी शादी , जिस अभिनेत्री से करने जा रहे हैं कुछ वर्षों पहले तक वो फिल्मों में बाल कलाकार के रूप में नज़र आईं थीं और आमिर अभिनीत फिल्म दंगल में उन्होंने आमिर की बेटी का अभिनय किया था।  लेकिन आमिर जिन सिद्धांतों को मानते अपनाते हैं वो उन्हें इस बात की इजाजत देता है और अभी भी कौन सा देर हुई है , आमिर अपने शरीया कानूनों के हिसाब से अभी तो एक और शादी कर सकते हैं।  क्या पता -उनकी अगली बेगम का जन्म अभी हुआ हो या न हुआ हो।

प्रधानमंत्री मोदी के मुंह से औरंगजेब का नाम सुनते ही मुगलों में बढ़ी बरनोल की बिक्री

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प्रधानमंत्री मोदी के मुंह से औरंगजेब का नाम सुनते ही मुगलों में बढ़ी बरनोल की बिक्री

ये तो होना ही था और कहें कि ये तो होता ही है , जब भी प्रधानमंत्री मोदी सनातन से जुड़े किसी भी प्रतीक या स्थल पर पहुँचते हैं तो , कांगी वामी समेत तुष्टिकरण से अब तक , अपनी राजनीति की दुकान और धंधा चलाने वाले तमाम विपक्षी और उनके साथ साथ पूरी मुग़ल जमात जैसे गर्म तवे पर बैठ कर उछलने लगती है। और फिर जब अवसर हो बाबा विश्वनाथ भोला महादेव की नगरी काशी को दोबारा से भव्य और दिव्य बनाने के अपने संकल्प को पूरा करने के जयघोष की तो फिर तो कहना ही क्या।  विरोधी चारों तरफ सिर्फ बरनोल ही तलाशते फिर रहे हैं , और करें भी क्या ??

प्रधानमंत्री मोदी ने , इस बार न सिर्फ ,  मुगलों के अब्बू और दादू हज़ूर , औरंगजेब का नाम क्रूर आक्रमणकारी के रूप में लिया बल्कि सार्वजनिक रूप से यह भी उद्घोष कर दिया कि , जब जब इस देश पर कोई औरंगजेब अपनी कुत्सित नज़र और हैवानियत लिए खड़ा होगा उसके सामने छत्रपति शिवाजी महाराज जैसा देश का कोई सपूत भी जरूर आएगा और उसके सारे घमंड का मर्दन करके रख देगा।

विपक्षी जो पिछले सात सालों से यूँ ही बौराए बौखलाए से घूम रहे हैं उनके नेतृत्वकर्ताओं को यही नहीं पता चल रहा है कि आखिर वे इन सब पर प्रतिक्रया दें भी तो कैसी प्रतिक्रया दें।  कल राहुल गाँधी “महंगाई हटाओ रैली ” में हिन्दू और हिंदुत्ववाद पर कांग्रेसी डिक्शनरी का भावार्थ समझा रहे थे तो आज अखिलेश झुंझलाते हुए – काशी बनारस को , अंतिम समय पर जाया जाने वाला स्थान बताकर , प्रधानमंत्री मोदी पर ताना मार रहे थे।

अगले कुछ महीनों में ही, अनेक राज्यों में होने वाली  विधानसभा चुनाव में अपनी संभावित हार के बाद फिर वही ईवीएम का रोना रोने के लिए पहले ही तैयार होते विपक्षी असल में अब अपने ही बुने जाल में फँसते नज़र आ रहे हैं।  हमेशा ही हिन्दुओं , सनातन , मंदिरों , नदियों की उपेक्षा करते हुए और तुष्टिकरण के सिद्धांत और फार्मूले को अचूक मान कर विशेष मज़हब और ख़ास जमात के साथ ही अपनी राजनैतिक साँठ गाँठ करते थे।

अब जबकि , मोदी सरकार एक एक करके , सनातन के सारे प्रतीक स्थलों , भगवान् राम , कृष्ण और आदि देव महादेव से जुड़े दिव्य स्थलों के जीर्णोद्धार करके , उनका पुनर्निमाण करके , उनका सौंदर्यीकरण करके , पूरी दुनिया में सनातन का डंका , सनातन का जय घोष फिर से स्थापित कर रहे हैं तो ऐसे में विपक्षियों को समझ ही नहीं आ रहा है कि वे किसके पक्ष में रहें और किसका विरोध करें।

सूत्रों की माने तो , अयोध्या और काशी के बाद अब मथुरा में भी कृष्ण जन्भूमि के पुनरुत्थान की दिशा में सरकार और सम्बंधित विभाग अग्रसर हो चुके हैं।  ज्ञात हो कि इस सम्बन्ध में पहले ही दायर याचिका में अदालत ने पुरातत्व विभाग को सारे साक्ष्य एकत्र करके रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दे दिया है।

जो भी हो , इतना तो तय है कि आने वाले समय में सनातन का ये जयघोष और अधिक प्रचंड और तीव्र होगा और देव कार्य में जो भी जहाँ भी जैसे भी बाधा बनेगा या डालेगा , काल स्वयं उसका सारा हिसाब किताब करेगा।  जय सनातन , जय हिन्दू धर्म।  जय हिन्द।

आरक्षण की बैसाखी : न टूटे , न छूटे

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पूरी दुनिया आज विश्व के सामने आ रही चुनौतियों , समस्याओं के लिए अपने अपने स्तर पर शोध , खोज , विमर्श कर रहे हैं , इससे इतर कुछ मज़हबी कट्टरता से दबे देशों का समहू लगा हुआ है अपने विध्वसंकारी मंसूबों की पूरा करने में।  इन सबसे अलग भारत जो अब विश्व के प्रभावशाली देशों में शामिल है वाहन की राष्ट्रीय राजनीति के बहस ,  मंथन का विषय है -आरक्षण व्यवस्था।  दुखद आश्चर्य है कि देश की स्वतंत्रता के सत्तर वर्ष के पश्चात भी आज भारतीय समाज , राजनीति , सब कुछ जातियों का निर्धारण , पुनर्निधारण , वर्गीकरण और अंततः आरक्षण  व्यवस्था के इर्द गिर्द ही घूम रही है।

सर्वोच्च प्रशासनिक सेवाओं में योग्य व्यक्तियों की नियुक्ति का फैसला और फिर उसे आरक्षण व्यवस्था के अनुरूप न पाए जाने को लेकर हाल ही में रद्द की गई लेटरल भर्ती योजना की बात हो या फिर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा हाल ही में निर्णीत एक वाद के आदेश की मुखालफत का जिसमें माननीय अदालत ने वर्षों से चली आ रही आरक्षण व्यवस्था के अभी तक के परिणामों प्रभावों का आकलन विश्लेषण करके आइना दिखा दिया था।  और इस आदेश की प्रतिक्रिया का हाल ये रहा कि केंद्र सरकार और स्वयं प्रधानमंत्री द्वारा ारसखान व्यवस्था को किसी भी प्रकार से कमोज़र न किए जाने की बात कहने के बावजूद भी देश भर में हड़ताल बंद और प्रदर्शन किया गया।

देश का सबसे पुराना राजनैतिक दल और अब विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस के सर्वोसर्वा राहुल गांधी अपनी अतार्किक बातों बयानों में जिस तरह से सरकार से एक एक व्यक्ति की जाती पूछने बताने के बालहठ पर अड़े हैं उसकी गंभीरता इसी बात से समझी जा सकती है की वे भारतीय सुंदरियों की विजेताओं की सूची में जाती तलाश रहे थे और  कोई भी आरक्षित जातियों में से क्यों नहीं है , ये सवाल उठा रहे थे।

कुछ वर्षों पूर्व बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी क्रिकेट तथा अन्य खेलों में आरक्षण व्यवस्था को लागू करने की बात कही थी।  ये बातें , बयान , और सोच बताते हैं कि दलितों , वंचितों शोषितों के सामाजिक उत्थान तथा अवसरों में समानता संतुलन के लिए बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर ने जिस आरक्षण व्यवस्था की कल्पना की थी , ये उससे कहीं दूर और अलग है।

देश में पचास वर्षों से अधिक सत्ता और शासन में बैठी कांग्रेस  और इसके नेता वर्तमान में सबसे बड़ी वैचारिक दरिदता से गुजर रहे हैं इसलिए लगातार तीन चुनावों में बुरी तरह हारने के बावजूद भी देश को जबरन जातीय जनगणना करके दिखाने का दवा कर रहे हैं।  कांग्रेस की दिक्कत ये भी है की विपक्ष में उसके साथ बैठे अन्य दुसरे दल , इस मुद्दे पर कांग्रेस के साथ उतनी प्रतिबद्धता से नहीं दिखाई दे रहे हैं।  कोई भी कांग्रेस की आरक्षित जातियों की इस स्व घोषित ठेकेदार बनने से खुश नहीं दिख रहे।

विश्व में भारत , नेपाल , बांग्लादेश जैसे गिनती के दो तीन देशों को छोड़कर आज कोई भी देश समाज सरकार आरक्षण या ऐसी किसी भी व्यवस्था अपने यहाँ अपनाए हुए हैं जिसमें सिर्फ जाती को मेधा और योग्यता के ऊपर वरीयता दी जाती हो।  यहाँ तो जातियों को उपजातियों में बांटने की योजनाएं चल रही हैं।  सबसे बड़ी विडंबना यह है की दशकों से चली आ रही इस विवशता के आकलन विश्लेषण , परिणाम और परिवर्तन को लेकर न्यायपालिका के मंतव्य को समझने के बावजूद आरक्षण व्यवस्था वो घंटी बन गई है जिसे बजाना हर कोई चाहता है , बाँधना कोई नहीं।  

किसी भी देश समाज में सामाजिक समरसता और संतुलन के लिए देश समाज द्वारा प्रयास किया जाना कोई अनुचित प्रयोग नहीं है किन्तु भारतीय समाज को कभी न कभी तो जबरन थामी इस बैसाखी का सहारा छोड़ योग्यता के आधार पर जीना बढ़ना होगा क्यूंकि दुनिया यही कर रही है और यही सबसे उपयुक्त है।

बलात्कार : स्त्री के प्रति क्रूरतम अपराध

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अब से कुछ वर्षों पहले जब देश की राजधानी दिल्ली में सर्दियों की एक रात में , वहशी दरिंदे अपराधियों ने एक चलती हुई बस में एक बच्ची का सामूहिक बलात्कार करके अमानवीय और नृशंस तरीके से उसकी ह्त्या करके सड़क पर फेंक दिया।  अपराध इतना वीभत्स और भयानक था कि इसने पूरे देश को बेटियों की सुरक्षा के प्रति उद्वेलित किया।  सरकार , समाज की प्रतिक्रया देख कर लगा था कि शायद अब महिलाओं के विरुद्ध अत्याचार और शोषण की घटनाओं पर अंकुश लग सकेगा।
आज एक दशक के बाद जब अभी दस दिन पूर्व एक महिला प्रशिक्षु चिकित्सक के साथ वही बर्बबरता , वही शोषण करके क्रूर तरीके से उसकी ह्त्या कर दी गई है और एक बार फिर देश खूबड़ और आक्रोशित है।  सच तो ये है कि दिल्ली के उस और कोलकाता के इन दो अपराधों के बीच बीते समय में भी देश भर में बच्चियों , युवतियोन और महिलाओं पर अत्याचार शोषण की हज़ारों लाखों घटनाएं हर साल , हर महीने , हर दिन घटती रही हैं और ये अब भी बदस्तूर जारी है।

किसी भी देश या समाज की सभ्यता , संस्कृति और संस्कार इस बात पर निर्भर करते हैं कि वो अमुक समाज , देश अपनी स्त्रियों , बच्चों वृद्धों  और बेजुबान पशु पक्षियों से कैसा व्यवहार करता है , उनके प्रति कितनी आत्मीयता दया भाव रखता है और किस तरह से इनकी सुरक्षा , संरक्षण और सहायता के लिए खुद को प्रतिबद्ध करता है।  किन्तु ये उतनी ही अफ़सोस की बात है कि भारतीय समाज अपने वृद्धों , बच्चों , महिलाओं के प्रति कहीं से भी संवेदनशील और सहृदय नहीं है तो बेजुबानों की तो क्या ही कहा जाए।  

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों पर नज़र डालें तो स्थति की भयवहता का अनुमान हो जाता है।  दिसंबर 2023 को जारी रिपोर्ट के आंकड़ों के अनुसार भारत में महिलाओं के प्रति किए जा रहे अपराधों में पिछले वर्ष की तुलना में ये 4 % और अधिक बढ़ गया।  रिपोर्ट में खुलासा किया गया है की वर्ष 2020 में कुल 3 ,  71 ,  503  घटनांए तो वर्ष 2021 में ये बढ़कर4 ,  28 ,  278 हो गेन और वर्ष 2022 में यह संख्या और अधिक बढ़कर 4 , 45, 256 घटनाओं की हो गई और ये सब वो मामले हैं जो दर्ज़ किए जा सके हैं।  रिपोर्ट बताती है कि 31 प्रतिशत मामलों में तो घर वाले ही कहीं कहीं संबधित पाए गए हैं और 20 प्रतिशत मामले में उनका अपहरण और शोषण किया गया।  महिलाओं के प्रति अपराध में उत्तर प्रदेश , राजस्थान , पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र जैसे राज्यों की स्थति ज्यादा सोचनीय है।  
ऐसा नहीं है कि सरकार , प्रशासन और विधायिका बलात्कार जैसे घृणित अपराध को रोकने के लिए सोच या कर नहीं रहीं हैं , दिल्ली निर्भया मामले के बाद महिलाओं के प्रति अपराध विषयक कानूनों में और अभी हाल ही में लाए संशोधन में दंड को अधिक कठोर किए जाने के बावजूद कानूनों में परिवर्तन मात्र से या दंड को अधिक कठोर भर कर देने से इस अपराध और अपराधियों के मनोभाव पर कोई फर्क पड़ता नहीं दिख रहा खासकर उन परिस्थितयों में जब अपराधी कई खामियों की वजह से साफ़ बच निकलते हैं या छूट जाते है और सालों साल चलने वाले न्यायिक अभियोग के बाद मिले दंड को भुगतने से बचने के लिए भी कानूनी विकल्पों का का सहारा लेते हैं।  हाल ही में राम रहीम को बार बार मिल रहे फर्लो का उदाहरण देख सकते हैं।
इस घृणित अपराध के अपराधियों में कानून व्यवस्था या अपने अपराध के लिए भुगते जाने वाले दंड का रत्ती भर भी भय नहीं होने की सबसे बड़ी वजह है न्याय मिलने में समयातीत देरी।  विडम्बना या त्रासदी इससे बड़ी और क्या हो सकती है कि संयोगवश अभी हाल ही में , अजमेर में 32 वर्ष पूर्व 100 कालेज जाने वाली बच्चियों का शोषण किया गया , आधे दर्जन पीड़िताओं ने आत्महत्या तक कर ली थी और पूरे 32 वर्ष के बाद सत्र न्यायालय द्वारा दोषियों को उम्र कैद की सजा सुनाई गई है।  गौरतलब है की अभी उच्च न्यायालय और सर्वोच्चय न्यायालय में अपील दलील का विकल्प उपलब्ध है।
महिलाओं युवतियों यहाँ तक कि बच्चियों पर भी हुए अत्याचारों , अपराधों , को लेकर भी देश की पुलिस अफसोसजनक रूप से बेहद असंवेदनशील और गैर जिम्मेदार रवैया दिखाती है।  हाल ही में महाराष्ट्र के बदलापुर में मात्र चार वर्ष की अबोध बच्चियों के साथ शोषण की शिकायत ,पुलिस अधिकारी तीन दिनों तक अनसुनी करती रही जबकि जांच अधिकारी एक महिला पुलिसकर्मी थीं।  शोषण , छेड़छाड़ आदि के अपराध में पीड़ितों की यही शिकायत रहती है की समय रहते ही पुलिस नहीं सुनती , कार्यवाही नहीं करती और वारदात के बाद भी लीपापोती करती है।
अपनी है आधी आबादी , अपनी ही माँ , बेटी , बहन की सुरक्षा , मान , मर्यादा सुनिश्चित नहीं कर पाने वाला समाज ,देश खुद को विश्व में कितना ही शक्तिशाली और प्रभावशाली बना ले , घोषित कर ले किन्तु ये शक्ति ये प्रभाव किसी भी परिस्थति में आधा ही रहेगा।  सबसे बड़ी बात ये है कि जिस तरह से असम में और इससे पहले बंगलौर में भी ऐसे अपराधों को अगले २४ घंटे में मौत की नींद सुला देने वाले तमाम कारण फिर आम जनमानस को इतनी बड़ी और भारी भरकम न्याय व्यवस्था से कहीं अधिक जरूरी और सही लगने लगे तो ये और भी सचेत हो जाने वाली बात है।  समय रहते ही सब कुछ ठीक करने की दिशा में यदि सच में ही कुछ किया नहीं गया तो समाज के लिए विषम परिस्थितियाँ बनेंगी और समाज से कोई भी अछूता नहीं बचता कोई भी नहीं।   

गाजा के लिए रोने वाले , बांग्लादेश पर मौन

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अभी हाल ही में पडोसी देश बांग्लादेश में चुनावोपरांत तीसरी बार सत्ता में आई शेख हसीना सरकार को खुनी अराजक और हिंसक तरीके से तख्ता पलट करके उन्हें अपनी जाना बचाने के लिए देश छोड़ने पर विवश कर दिया।  और जैसा कि शरिया प्रधान देशों की रवायत है की फिर सरकार , शासन , प्रशासन , पुलिस और सेना तक की ,मिली जुली खामोश सहमति की शह में उग्र हिंसक वहशी सैलाब ने अगले कुछ घंटों और दिनों में अपने ही देश  को नोचा लूटा जलाया  और बर्बाद कर दिया।
मुस्लिम बाहुल्य जनसंख्या वाले बांग्लादेश के लोगों ने भी अपने जैसे विश्व के दुसरे मुल्कों की तर्ज़ पर ही बचे खुचे अल्पसंख्यकों जो कि इत्तेफाकन हिन्दू हैं , उन का नरसंहार और दमन करने केर रूप  में इस मौके  को लिया और एक दो नहीं पूरे 65  जिलों में कई दिनों तक सेना पुलिस के शाह और समर्थन में हिन्दू मंदिरों , देवी देवताओं और उसके बाद हिन्दू लोगों पर भयंकर अत्याचार किए।  और ये सब बदस्तूर जारी ही है।
आज सोशल मीडिया , मोबाइल , और इंटरनेट के माध्यम से पूरी दुनिया ने बांग्लादेश अवाम का एक वीभत्स चेहरा देखा जिसने अपने न्यायलय के एक निर्णय के विरोध में अपनी महिला प्रधानमंत्री को देश से भागने के विवश किया , और उसके बाद भी अपनी क्रूर और वहशी कट्टरपन से दुनिया में भय फैलाने के लिहाज से देश की सत्ताधारी पार्टी के राजनेताओं , अधिकारीयों और यहां तक  कि  कलाकारों तक कि कलाकारों तक को न सिर्फ मार डाला गया बल्कि ज़िंदा जलाया गया , सरेआम लटका दिया गया , महिलाओं युवतियों का बालठाकर ह्त्या के बाद उनके शव को शहरी गलियों में घसीट कर दुनिया को अपनी जहालत दिखाते रहे।
बांग्लादेश में एक अंतरिम सरकार का गठन हुआ है और इससे पहले तक पूरा सत्ता पक्ष पूर्व का , पूरी न्यायपालिका और सेना के साथ साथ अल्पसंख्यक या तो ख़त्म या फिर नियंत्रित कर लिया गया है।
यहां एक गौर करने वाला प्रश्न ये है की बांग्लादेश के पडोसी देश भारत में गाजा फिलिस्तीन और रूस यूक्रेन जैसे देशों से चल रहे युद्ध में अपने पक्ष और अपनी कौम के लिए यहाँ भारत में प्रदर्शन , उपद्रव और अशांति तक करने से गुरेज नहीं करते , राजनेता , खिलाडी अभिनेता , ामाज सेवी वे सभी जो भारत में क्या भारत के बाहर के लिए हमदर्दी वाली तख्ती लिए खड़े हो जाते हैं आखिर उन सबको बांग्लादेश में हिन्दुओं का कत्लेआम कैसे और क्यों नहीं दिखाई दे रहा ??
जिस तरह से भारत के पडोसी देशों , पाकिस्तान , बांग्लादेश , म्यामनार  आदि में हिन्दुओं पर आसानी से अत्याचार और हमले किए जा रहे हैं और इन सब देशों से उन्हें पूरी तरह ख़त्म करने पर विवश किया जा रहा है ऐसे में तो ये बहुत जरूरी हो जाता है की दुनिया ऐसे में ये बहुत जरूरी हो जाता है कि दुनिया में भारत जैसा हिन्दू सनातन संस्कृति वाला देश बचा रहे ताकि पडोसी देश की सबसे शक्तिशाली महिला को भी जरूरत पड़ने पर अपनी जान बचाने के लिए यहाँ की शरण लेने में संकोच और डर न महसूस हो।  
विपक्ष जो नागरिकता संशोधन विधेयक का विरोध करता रहा है उसे अब बांग्लादेश में हो रहे हिन्दुओं के नरसंहार और उसके डर से वहां से पलायन का दर्द भी शायद ही दिखे और समझ आ सके , वैसे इस बात की अपेक्षा मौजूदा विपक्ष करना ही बेमानी है।

दुर्घटनाओं के लिए क्यों नहीं तय हो पाती किसी की जिम्मेदारी ??

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इस देश में कुछ बातें असाधारण और बेहद चिंताजनक होते हुए भी , इतनी बार दोहराई जा चुकी हैं कि वो अब साधारण बातें और रोज़ाना की दिनचर्या में से एक जैसी ही बन गई हैं या शायद बना दी गई हैं।  हमारे आसपास लापरवाही के कारण होने वाली  सैकड़ों दुर्घटनाएं , फिर चाहे वो कोई रेल दुर्घटना हो , किसी समारोह आयोजन में अचानक मची भगदड़ हो या फिर हाल ही में दिल्ली जैसे महानगर के बीचोंबीच बारिश के पानी में डूब कर तीन युवा बच्चों की मौत , या दिल्ली में ही  खुले नाले में गिर कर एक महिला और उसकी बच्ची की मौत ।  ये तमाम घटनाएं , दुर्घटनाएं , बार बार घटती हैं , हर साल घटती हैं , बस समय और स्थान बदल जाता है।

इन दुर्घटनाओं के तुरंत बाद दो काम करके आगे बढ़ जाने का जो चलन चला आ रहा है वो जैसे अब एक नियति ही बन चुका है।  दुर्घटना के पीड़ितों को आर्थिक सहायता के नाम पर कुछ अनुदान राशि देने की घोषणा और उसके साथ ही दुर्घटना की जांच करने के लिए किसी जांच दल , आयोग का गठन करके रिपोर्ट आने पर दोषियों को बख्शे नहीं जाने का दावा।  जबकि असलियत में इन तमाम दुर्घटनाओं के लिए जिम्मेदार संस्था , अधिकारी या विभाग तक की पहचान करके उसे क़ानून की चौखट तक ले जाना ही सबसे असंभव कार्य हो जाता है।  

दिल्ली के कोचिंग सेंटर दुर्घटना मामले को देख कर इसे आसानी से समझा जा सकता है , जहां पुलिस ने जांच के नाम पर कोचिंग संस्थान के गेट को उखड़वा कर उसकी मजबूती जांच परख कर रही है वहीँ दोषी के रूप में पकड़ लिया एक वाहन चालाक को ,बकौल पुलिस जिसकी तेज़ रफ़्तार के कारण ही जलभराव का पानी बेसमेंट में भर गया और छात्र डूब कर मर गए।  जांच में कोचिंग संस्थान के मालिक , उस केंद्र के संचालक , मैनेजर , व्यवस्थापक , भवन में अवैध रूप से पुस्तकालय बनाने , इसकी अनुमति देने वाले और ऐसा होते देने रहने वाले तमाम , इन दर्जन भर लोगों को छोड़कर दोषी हुई वो कार जिसके हिचकोले से कोचिंग संस्थान का गेट टूट गया।  अदालत ने भी ये सब देखकर पुलिस और जांच एजेंसियों को कड़ी फटकार लगाई।

ऐसी ही एक दूसरी दुर्घटना , जिसमें दिल्ली नगर निगम ने एक बड़े नाले की मरम्मत करते हुए उसे खुला छोड़ दिया जहां बारिश के जलभराव में एक महिला और उसकी बच्ची की गिर कर मृत्यु हो गई और अभी तक दिल्ली विकास प्राधिकरण और दिल्ली नगर निगम के बीच एक दुसरे को दोषी ठहराने की कवायद जारी है।

जिस तरह से भीड़ का अपराध या भीड़ में किसने कौन का अपराध किया ये तय कर पाना हमेशा ही दुरूह कार्य होता है ठीक ऐसा ही होता किसी भी दुर्घटना के लिए जिम्मेदार आरोपियों को और यदि ये सरकारी महकमा हुआ तो ये और भी अधिक कठिन बल्कि बेहद दुष्कर हो जाता है।  एक विभाग का नाम आते ही उसके सहयोगी अन्य किसी न किसी विभाग पर भी ऊँगली उठती है।  जितने विभाग उनके उतने कर्मचारी अधिकारी जो , सभी सम्बंधित हैं या फाइल कागजातों में सबके नाम आ जाते हैं ऐसे में फिर सब एक दूसरे क बचाने में लग जाते हैं।  

नाले में गिर कर मृत्यु वाले  हादसे मामले में मुकदमे की सुनवाई करते हुए आखिरकार न्यायालय को सख्त रुख अपनाना पड़ा है और उसने सीधे सीधे जांच एजेंसी और दोषी संस्थाओं से आरोपियों की पहचान कर उन पर कार्रवाई करने अन्यथा अदालत द्वारा स्वय आदेश देकर ऐसा किए जाने की सख्त चेतावनी दी गई  है।

जब दुर्घटनाओं के लिए किसी की जिम्मेदारी तय करने में हम उलझे रह जाते हैं तो फिर दुर्घटना के कारणों , और उस दुर्घटना से सीख लेकर भविष्य में ऐसी दुर्घटनए न हों इसके लिए विचार और उपाय आदि पर काम करना तो बहुत दूर की कौड़ी होती है।  असल में हालात तो ये है कि कोई भी दुर्घटना का समाचार और लोगों का उससे सरोकार भी सिर्फ और सिर्फ तभी तक रहता है जब तक कोई और नई दुर्घटना हमारे सामने नहीं आ जाती।  ये देश ऐसे ही चलता है , ऐसे ही चलता रहा है।

रक़ीबुद्दीन बन गया नीलाभ सौरभ : राम पर लिखी आपत्तिजनक कविता , मिली अंतरिम जमानत

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इत्तिफाकन जब इधर उतर प्रदेश प्रशासन द्वारा , सावन कांवड़ यात्रा मात्र में पड़ने वाली सभी खाने पीने की दुकानों के दुकान , रेस्तरां ,होटल मालिकों को अपने अपने प्रतिष्ठानों दुकानों आदि पर अपनी स्पष्ट पहचान बताने विषयक आदेश पर खूब जम कर राजनीति और बहसबाजी की जा रही है यहां तक कि इसके विरूद्ध मामला माननीय सर्वोच्च अदालत में दाखिल भी कर दिया गया है।
लेकिन इस बीच सुदूर उत्तर पूर्व राज्य असम से भी कुछ ऐसा ही मामला सामने आया है जो चर्चा का विषय बना हुआ है।  मामला यह है कि असम में एक व्यक्ति रकाबुद्दीन अहमद ने सोशल नेट्वर्किंग साइट पर अपना नाम “नीलाभ सौरभ ” रख कर एक प्रोफ़ाइल बनाई और  वहां भगवान राम और सीता के ऊपर एक कविता लिख कर पोस्ट कर दी जिसमें आपत्तिजनक भाषा का प्रयोग किया गया था।
रक़ीबुद्दीन के विरुद्ध विभिन्न कानूनी धाराओं में मुकदमा दर्ज़ होने के बाद गिरफ्तारी से बचने के लिए रक़ीबुद्दीन ने अदालत के सामने खुद को मासूम बताते हुए गिरफ्तारी से बचने के लिए जमानत की गुहार लगाईं जिसे स्वीकार कर लिया गया है। कविता के बाबत रक़ीबुद्दीन का कहना है कि उसने राम और सीता नाम का उपयोग इसलिए किया क्यूंकि वे देश में लोकप्रिय नाम हैं।
मामला अदालत में विचाराधीन है और पुलिस द्वारा अनुसंधान भी जारी है इसलिए ऐसे में इस मामले पर कोई भी टिप्पणी करना उचित नहीं हैं , किन्तु यदि नाम और काम में पारदर्शिता रहे तो फिर ऐसे बहुत से मामलों विवादों और मुकदमों से बचा जा सकता है।

भ्रष्टाचार के दलदल में फंसी : केजरीवाल एन्ड पार्टी

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जी हाँ अब तो लोगबाग भी , कभी लोगों के बीच से ही अचानक किसी सिनेमाई अंदाज़ में सीधे दिल्ली की बागडोर थाम कर सत्ता में आई आम आदमी पार्टी , को इसी नाम से बुलाने लगे हैं , केजरीवाल एन्ड पार्टी।  और ऐसा इसलिए है क्यूंकि जनलोकपाल लाकर राजनैतिक भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने की मांग और उद्देश्य से गढ़ी गई पार्टी ,के शुरूआती जुझारू लोग जो समय रहते ही सब कुछ भांप समझ कर अलग हो गए थे उसके बाद बचे तमाम बड़े राजनेता , और किसी आरोप में नहीं बल्कि भ्रषटाचार से अवैध धन कमाने और उसके दुरुपयोग में एक एक करके जेल जा रहे हैं और लाख दलीलों और तर्कों के बावजूद भी अदालत को अपनी बेगुनाही के इरादे से भी संतुष्ट नहीं कर पा रहे हैं।
आज आम आदमी पार्टी और इसके मुख्य बचे हुए संयोजक , बचे हुए इसलिए क्यूंकि कभी , इसी भ्रष्टाचार के विरूद्ध शुरू किये गए तथाकथित संघर्ष के प्रणेता अन्ना हज़ारे और सभी बेहतरीन साथी , पूर्व प्रशानिक अधिकारी किरण बेदी , पूर्व न्यायमूर्ति संतोष हेगड़े , साहित्यकार कवि कुमार विश्वास , सामाजिक आंदोलनकारी योगेंद्र यादव , राजनैतिक साथी कपिल मिश्रा और तमाम वो लोग जिन्हें कहीं न कहीं और कभी न कभी ये एहसास हो गया था कि सब कुछ वैसा नहीं है जैसा लोगों को दिखाया और बताया जा रहा है , वे सब धीरे धीरे अरविन्द केजरीवाल का साथ छोड़ते गए और इस जगह को भरने के लिए आए कौन , संजय सिंह और भगवंत मान जैसे राजनेता , इसका दुष्परिणाम सामने ही है।  
अरविन्द केजरीवाल की गिरफ्तारी की खबर पर अपनी गैर जरूरी प्रतिक्रिया देने वाले और बाद में बुरी तरह से फटकार खाने वाले पश्चिमी देशों के साथ साथ देश और दिल्ली को भी ये जानना बहुत जरूरी हो जाता है कि एक तरह जो राजनैतिक दल , बाकायदा अपने चेहरे और अपनी बात कहने के लिए लाखों रुपये प्रचार प्रसार पर खर्च कर रहा था और बार बार ये जता और बता रहा था कि , राजधानी दिल्ली की शिक्षा और चिकित्सा व्यवस्था में , पार्टी और उसकी नीतियों या परिवर्तनों के कारण क्रांतिकारी बदलाव आए और लाए गए , और फिर रात के अँधेरे में यही अच्छे लोग , अच्छी सोच और नीयत वाले लोग , अचानक से शराब बेच कर और बेच कर नहीं बल्कि शराब बेचने खरीदने और पीने की होड़ लगाकर पैसा जुटाने की जुगत में लग गया।
फिलहाल जो स्थिति आम आदमी पार्टी के तमाम उन राजनेताओं की , जिनका या जिन जिन का इस शराब बेचने के नियम कायदे को बदल कर पैसा बनाने के शर्मनाक अपराध से थोड़ा सा भी तालमेल निकल सकता है , उन सबको अपने ऊपर कानून की तलवार लटकती दिख रही है और जो इस अपराध को रचने और करने के प्रथम दृष्टया दोषी पाए गए हैं वे सब निरंतर अपने ऊल जलूल तर्कों और बहुत सी गैर जरूरी याचिकाएँ लगा लगा कर निरंतर इस दलदल में नीचे को ओर धँसते जा रहे हैं।  आश्चर्य इस बात पर भी होता है कि आम आदमी पार्टी के तमाम राजनेताओं की पैरवी कर रहे हैं अधिवक्ता अभिषेक मनु शिंगवी ,जो कांग्रेस के जाने माने नेता हैं , वही कांग्रेस जिसे आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में सिरे से ठिकाने लगाया था , गांधार नरेश शकुनि ने कुरु साम्राज्य से बदला लेने के लिए ही महाभारत करवाया था कहते हैं , बाकी तो सब वही जाने।

शहीद ऊधम सिंह की मूर्ति के हाथ काटे : पंजाब कानून व्यवस्था 

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यथा राजा तथा प्रजा -इसी बात को चरितार्थ करते हुए पंजाब की कानून व्यवस्था इन दिनों अपने सबसे निचले और कहें की सबसे अधिक दयनीय स्थिति में है।  एक दिन ऐसा नहीं जाता जब पंजाब के विभिन्न सूबों से किसी न किसी बड़े अपराध की घटना पुरे देश और दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींच लेती है।  कनाडा में खालिस्तानियों का बढ़ता प्रभाव से अब पंजाब भी बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है।  इसने पहले से ही नशे की गिरफत में फंसे पूरे प्रदेश की क़ानून व्यवस्था को भारी खतरे में डाल दिया है।  पंजाब की राज्य सरकार अपने अच्छे बुरे अनुभव के साथ इसे संभालने की भरसक कोशिश में लगी है।  लेकिन हालात तो दिनों दिन और ज्यादा खराब ही होते जा रहे हैं।

 

अभी हाल ही में पंजाब के फाजिल्का जिले में सिर्फ कुछ दिनों पहले ही स्थापित की गई शहीद उधम सिंह की मूर्ति को उपद्रवकारियों ने अपना निशाना बनाया।  उपद्रवियों ने मूर्ति के हाथ काट कर उसमें पकड़ाई हुई रिवाल्वर भी निकाल कर फेंक दी।  आसपास के आक्रोशित लोग इसे देश के अमर शहीद क्रांतिकारियों का अपमान मान कर पुलिस और प्रशासन से अपराधियों को तुरंत गिरफ्तार करने की मांग कर रहे हैं।

 

जेल सुधारों की आस में तिहाड़ प्रशासन

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अभी हाल ही में सुर्खियों में आया समाचार जिसमें एक फोन निर्माता कंपनी के मालिक जो एक आर्थिक अपराध में तिहाड़ केन्द्रीय कारागार में निरुद्ध है , आरोपी हरिओम राय से जेल में सुविधा दिए जाने के नाम पर जेल कर्मियों ने डरा धमका कर  पांच करोड़ रुपये वसूल लिए।  चिंताजनक  बात यह नहीं है कि देश की राजधानी दिल्ली और कभी आदर्श कारागार के रूप में माना जाने वाला तिहाड़ प्रशासन पर इस तरह से से आरोप लगा है।
गंभीर बात तो ये है कि एक के बाद एक राजनेता सत्येंद्र जैन से लेकर ठगी के आरोपी सुकेश चंद्रशेखर जैसे कारागार में पहले से निरुद्ध आरोपियों ने जेलकर्मियों द्वारा इसी तरह के और इससे भी कई तरह के गम्भ्भीर अनुचित क्रियाकलापों की शिकायत की है।  ध्यान देने की बात ये भी है की है प्रोफ़ाइल विचाराधीन  बंदियों/आरोपियों से जेल कर्मियों द्वारा उगाही की ये कुछ वो घटनाएं हैं जो जाने अनजाने समाचार माध्यमों में आ गईं।  दूसरी ये कि जब आर्थिक कदाचार/भ्रष्टाचार आदि मामलों के ऐसे हाई प्रोफ़ाइल बंदियों के साथ यह सब घटित हो रहा है तो ऐसे में साधारण कैदियों की दशा का अनुमान लगाना सहज है।
कारागारों की छवि किसी भी काल में समाज में अच्छी नहीं रही है किन्त ब्रिटिश औपनिवेशिक काल में कारागार -यातना, सामूहिक दंड और मृत्यु दंड देने की कोठरी बन कर रह गई थी।  जेलों की अमानवीय हालातों को राजनैतिक बंदियों द्वारा  महसूस और अनुभव करने के बाद जेलों में दंड , प्रायश्चित और सुधार के लिए लाए गए बंदियों के लिए ,उन्हें रखे जाने से लेकर , उनसे श्रम और सेवा लिए जाने वाले , सुधारने के साथ साथ शिक्षा स्वास्थ्य जैसी बुनियादी जरूरतें सुनिश्चित करने के लिए बाकायदा कारागार नीति नियमों को संहिताबद्ध कर दिया गया।
कभी इसी तिहाड़ कारागार में बंदियों के सुधार और उन्हें मुख्य धारा में लाने के लिए विख्यात पुलिस प्रशासक किरण बेदी ने बहुत से नए प्रयोग और प्रयास किए थे।  आज वही केंद्रीय कारागार , थोड़े थोड़े समय बाद अपने व्यवस्थाओं की अनियमततताओं और कदाचार के लिए समाचार में आए तो ये दुःख और चिंता की बात है।
कारागार तिहाड़ देश की राजधानी दिल्ली का केंद्रीय कारागार होने के साथ साथ देश के सबसे विशाल कारागार में से है।  कैदियों के वर्गीकरण के आधार पर तिहाड़ एक दर्जन से अधिक कारगार में बंदियों को निरुद्ध रखा जाता है।  इसमें गंभीर अपराधों में लिप्त आरोपियों , बंदियों, महिला बंदियों तथा राजनैतिक बंदियों के लिए अलग अलग कारागारों की व्यवस्था है।
कारागार प्रशासन की विफलता से जुडी घटनाये प्रदेश के कारागार प्रशासनों के विषय में सामने आती रही हैं।
ऐसी ही एक बड़ी घटना को पिछले दिनों पजाब राज्य के एक कारागार में अंजाम दिया गया था। बिहार का कारगर प्रशासन तो लालू यादव मामले में बाकायदा फटकार तक खा चुका है।  महाराष्ट्र , बंगाल , सहित और बहुत  से राज्यों की कारागारों से अनेक तरह की अनियमितताओं ,भ्रष्टाचार के समाचार सामने आते रहे हैं।
चाहे छापे के दौरान बंदियों से मोबाइल मिलने की बात हो या फिर जेल के अंदर से ही बड़े गंभीर अपराधों की साजिश षड्यंत्र बनाने वाली बंदियों की गैंग की खबरें , जेल के अंदर चल रही पूर्व मंत्री की सेवा मालिश हो या अब वीवो के मालिक हरिओम राय से सुविधा शुल्क के रूप में लिया जाने वाला पांच करोड़ , हर घटना इस बात का इशारा कर करती है की केंद्रीय कारागार तिहाड़ प्रशासन में अब कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है।  
कारागार राज्य का विषय होता है इसलिए इसका दायित्व प्रदेश सरकार पर होता है।  राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और देश की सबसे संवेदनशील जेल होने के कारण भी ये बहुत जरूरी है कि केंद्रीय कारागार की सारी  व्यवस्थाओं को अधिक दुरुस्त व पुख्ता किए जाने विषयक सभी अनुशंसित उपायों पर त्वरित अमल किया जाए।
लेखक स्वतन्त्र टिप्पणीकार हैं।

बड़े न्यायिक सुधारों की कवायद

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पिछले कई वर्षों से न्यायिक प्रक्रियाओं तथा न्याय प्रशासन में परिवर्तन और सुधारों की कवायद में लगी केंद्र सरकार ने अब इस दिशा में कदम बढ़ा दिए हैं।  हाल ही में समाप्त हुए संसद सत्र में तीन प्रमुख विधिक संहिताओं में वर्तमान परिदृश्य के अनुरूप नवीन परिवर्तन व सुधार के बाद , संशोधित करके सामयिक और परिमार्जित किया गया है।  ज्ञात हो कि इन संहिताओं में परिवर्तन और सुधार की जरूरत बहुत सालों से महसूस की जा रही थी।

भारतीय दंड संहिता , दंड प्रक्रिया संहिता तथा भारतीय साक्ष्य अधिनियम – तीनों  प्रमुख विधिक संहिताओं में वर्णित व्यवस्थाएं जो ब्रिटिशकालीन परिस्थितियों में बनाई व लागू की गई थीं।  स्वतंत्रता के दशकों बाद तक औचित्यहीन होते जाने वाले बहुत से क़ानूनों को बदलने समाप्त किए जाने की जरूरत को पूरा करने के उद्देश्य से सरकार ने भारतीय न्याय संहिता , भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (प्रक्रिया संहिता ) , तथा भारतीय साक्ष्य अधिनियम को पारित कर दिया।

इन संहिताओं के परिमार्जन में सबसे अहम् जिस बात को रखा गया है वो है इसके प्रावधानों , व्यवस्थाओं और पूरी परिकल्पना वर्तमान परिस्थितयों परिवर्तनों के अनुरूप सामयिक और तार्किक किए जाएं।  ब्रिटिशकालीन व्यवस्थाओं ,प्रक्रियाओं को परिष्कृत किया जाना विधि के शासन को बनाए रखने के लिए भी आवश्यक है।  स्वयं न्यायपालिका भी अपने समख विमर्श और मंतव्य के उद्देश्य से रखे हर प्रश्न को उसी सामयिक प्रासंगिकता और सामाजिक व्यवहार में हुए परिवर्तनों की कसौटी पर अनिवार्य रूप से परखती अवश्य है।  

प्रक्रिया से लेकर दंड प्रावधानों तक में परिवर्तन के बाद बहुत सी नवीन व्यवस्थाएं दी गई हैं , जैसे एक तरफ जहां अपराधों के लिए विशेषकर व्यक्ति समाज देश के विरुद्ध किए गए अपराधों में सज़ा को अधिक कठोर किया गया है वहीँ पहली बार अस्पताल , यातायात , सामुदायिक केंद्रों आदि में समाज सेवा या सामुदायिक सेवा का दायित्व दिया जाना को सुधारात्मक सजा विकल्प के रूप में शामिल किया गया है।

भारतीय न्याय प्रक्रिया में समय से निर्णय न हो पाने के कारण “विलम्बित न्याय अन्याय के समान लगने लगता है ” की आलोचना झेलती ,भारतीय न्यायिक प्रक्रियाओं को थोड़ा अधिक समयबद्ध करके विधिक प्रक्रियाओं को अधिक तीव्र और प्रभावी बनाने के लिए परिवर्तित संहिता में काफी नई व्यवस्थाएं की गई हैं।  अपराध के कारित होने से लेकर , प्राथमिकी , अन्वेषण ,अभियोग के अतिरिक्त वादों के निर्णय/आदेश पारित करने के लिए भी निश्चित व पर्याप्त समय सीमा तय कर दी गई है।

किसी भी परिवार ,समाज देश की शान्ति , सद्भाव और सबसे जरूरी सुरक्षा के लिए आवश्यक तत्व -विधि का शासन।  यानि समाज सम्मत नीति नियमों का अनुपालन।  अपराध संहिता में पहली बार आतंकवाद की व्याख्या को व्यापक करके समाहित किया गया है। देश की आर्थिक सुरक्षा को क्षति पहुंचाने का कार्य , भारतीय मुद्रा की नक़ल आदि से क्षति आदि को भी दायरे में लाया गया है।

महिलाओं और बच्चों के प्रति अपराध करने वालों पर और अधिक दृढ़ कठोर होकर ऐसे अपराधों को अधिक जघन्य मान कर दंड अधिक कठोर और इन अपराधों में अभियोजन , कार्रवाई को तीव्र करने विषयक परिवर्तन समायोजित किए हैं।  पिछले दिनों आवेश में उन्मादी भीड़ द्वारा पीट पीट कर की गई हत्याओं -मॉब लॉन्चिंग को भी बर्बर अपराध मानकर अधिकतम दंड -मृत्यदण्ड देने का प्रावधान किया गया है।  साक्ष्य अधिनियमों में बुनियादी सुधार करते हुए सभी उन्नत तकनीकों के उपयोग और वैज्ञानिक परिणामों को विधिक मान्यता देने विषयक संशोधन भी किए गए हैं।

ज्ञात हो कि वर्तमान केंद्र सरकार शुरू से ही भारतीय न्याय व्यवस्था , न्याय प्रशासन तथा न्यायिक प्रक्रियाओं में सामयिक सुधारों की  प्रबल पक्षधर रही है यही कारण है कि वर्तमान सरकार के संसद सत्रों में सर्वाधिक अधिनियम कानून बनाए जाने , पारित करके लागू किए जाने के रिकार्ड बने , नीतियां बानी तथा अनुसंधान अन्वेषण से निरंतर सुधर की कोशिश की जाती रही है / विधिक व्यवस्थाओं प्रक्रियाओं व संहिताओं  में परिशोधन , परिवर्तन नवीनीकरण जैसे दुरूह /दुष्कर दायित्व को वहां करने की पहल करने के लिए सरकार साधुवाद की पात्र है।  

राष्ट्रपति ने संविधान दिवस पर सर्वोच्च न्यायालय में किया बाबा साहब की मूर्ति का अनावरण

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संविधान दिवस पर आयोजित एक विशेष कार्यक्रम में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सर्वोच्च न्यायालय परिसर में बाबा साहब भीमराव आंबेडकर जी की मूर्ति का अनावरण किया।  इस मूर्ति  के अनावरण के समय सर्वोच्च न्यायलय के प्रखर मुख्य न्यायाधीश श्री डी वाई चन्द्रचूड़ के अलावा कानून मंत्री श्री अर्जुन मेघवाल भी उपास्थित रहे।

बाबा साहब की इस प्रतिमा की एक विशेषता यह भी है कि इसमें वे एक अधिवक्ता के रूप में दर्शित किये गए हैं।  इस अवसर पर बोलते हुए महामहिम ने न्यायिक अधिकारी चयन व्यवस्था में ऐसे उपायों पर विचार करने का आग्रह किया जिससे समाज के सबसे पिछड़े दलित और वंचित वर्ग के अतिरिक्त देश भर के मेधावी विधि वेत्ताओं को भी अवसर मिले।

राष्ट्रपति ने इसके लिए भारतीय प्रशासनिक सेवा , पुलिस सेवा की ही तरह न्यायिक अधिकारियों के लिए इसी उच्च स्तरीय प्रतियोगी परिक्षा जैसे विकल्पों पर भी विमर्श का सुझाव सामने रखा।

समारोह को सम्बोधित करते हुए मुख्य न्यायाधीश ने भी नए और कई क्रांतिकारी  सुधारों की जानकारी देते हुए सबको आश्वस्त किया कि भारतीय न्यायपालिका हमेशा की तरह देश के लोकतांत्रिक मूल्यों और नागरिक अधिकारों की सजग प्रहरी बनी रहेगी और ये भी कि देश के सभी नागरिकों के दरवाज़े हमेशा खुले हुए हैं। “