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आमिर खान को अब नहीं लग रहा भारत में रहने में डर : तीसरी शादी की तैयारी में 

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लोगों को ये भूला नहीं है कि अभी कुछ समय पहले ही , देश में मोदी सरकार के आने के बाद से ही मुगलों ने असहिष्णुता का जो राग अलापना शुरू किया था उसे , आमिर खान , नसरुद्दीन शाह ,जावेद अख्तर ,मुनव्वर राणा जैसे घाघ मुसमलमानों ने और हवा दी थी।  अपने बयानों और कथनों से दुनिया के सामने भारत की ऐसी छवि बनाने की कोशिश की थी जिससे लगे कि , भारत में अल्पसंख्यकों पर भारी जुल्म किया जा रहा हो यहाँ तक कि उनकी रोजी रोटी और निर्वाह का भी संकट उत्पन्न हो गया हो और वे सब अचानक ही असुरक्षित महसूस करने लगे हों।

इसी क्रम में -मिस्टर परफेक्शनिस्ट अभिनेता आमिर खान -जिन्होंने अपनी सिनेमा में -हिन्दू धर्म , सनातन का उपहास उड़ा कर , उन्हें अपमानित करके भी करोड़ों रूपए कमाए , नाम कमाया -उन्हें यकायक ही मोदी सरकार के आने भर से ये देश , भारत रहने लायक नहीं लगने लगा और उन्होंने  इसे छोड़ कर जाने की बात कह दी।  लेकिन यहाँ भी अपनी धूर्तता दिखाते हुए उन्होंने ये कथन भी अपनी पत्नी किरण राव के मुख से ही निकलवाया।

और अब इत्तेफाक देखिये कि आमिर खान की जिस पत्नी को देश में रहने से डर लग रहा था और वो उन्हें भारत छोड़ कर जाने के लिए कह रही थीं आमिर ने उस पत्नी को ही छोड़ दिया।  खबरों की मानें तो अब आमिर खान अपनी बेटी की हमउम्र और अभिनेत्री फातिमा सना शेख के साथ तीसरी शादी करने की तैयारी में हैं।  आमिर इससे पहले दो शादियाँ कर चुके हैं और जहाँ अभी हाल ही में आमिर ने अपनी दूसरी पत्नी किरण राव को तलाक दिया है तो वहीं आमिर की बेटी की शादी भी अभी कुछ दिनों पहले ही हुई है।

फिल्मों से लेकर , टेलीविजन तक , तरह तरह की सामाजिक समस्याओं और सन्देश देने वाली फ़िल्में और धारावाहिक बनाने वाले आमिर खान खुद की ज़िंदगी में कितने दोगले हैं इस बात का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि – आमिर के भाई फैज़ल खान -आमिर के ऊपर उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित करने और उनकी संपत्ति हड़पने का आरोप लगा चुके हैं जबकि उनकी खुद अपनी बेटी ने उन पर आरोप लगाया कि जब वे घर में यौन हिंसा का शिकार हुईं तो आमिर और परिवार ने उन्हें चुप रहने को कहा।

अब ये भी जान लीजिए कि , दुनिया को नसीहत देने वाले आमिर तीसरी शादी , जिस अभिनेत्री से करने जा रहे हैं कुछ वर्षों पहले तक वो फिल्मों में बाल कलाकार के रूप में नज़र आईं थीं और आमिर अभिनीत फिल्म दंगल में उन्होंने आमिर की बेटी का अभिनय किया था।  लेकिन आमिर जिन सिद्धांतों को मानते अपनाते हैं वो उन्हें इस बात की इजाजत देता है और अभी भी कौन सा देर हुई है , आमिर अपने शरीया कानूनों के हिसाब से अभी तो एक और शादी कर सकते हैं।  क्या पता -उनकी अगली बेगम का जन्म अभी हुआ हो या न हुआ हो।

प्रधानमंत्री मोदी के मुंह से औरंगजेब का नाम सुनते ही मुगलों में बढ़ी बरनोल की बिक्री

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प्रधानमंत्री मोदी के मुंह से औरंगजेब का नाम सुनते ही मुगलों में बढ़ी बरनोल की बिक्री

ये तो होना ही था और कहें कि ये तो होता ही है , जब भी प्रधानमंत्री मोदी सनातन से जुड़े किसी भी प्रतीक या स्थल पर पहुँचते हैं तो , कांगी वामी समेत तुष्टिकरण से अब तक , अपनी राजनीति की दुकान और धंधा चलाने वाले तमाम विपक्षी और उनके साथ साथ पूरी मुग़ल जमात जैसे गर्म तवे पर बैठ कर उछलने लगती है। और फिर जब अवसर हो बाबा विश्वनाथ भोला महादेव की नगरी काशी को दोबारा से भव्य और दिव्य बनाने के अपने संकल्प को पूरा करने के जयघोष की तो फिर तो कहना ही क्या।  विरोधी चारों तरफ सिर्फ बरनोल ही तलाशते फिर रहे हैं , और करें भी क्या ??

प्रधानमंत्री मोदी ने , इस बार न सिर्फ ,  मुगलों के अब्बू और दादू हज़ूर , औरंगजेब का नाम क्रूर आक्रमणकारी के रूप में लिया बल्कि सार्वजनिक रूप से यह भी उद्घोष कर दिया कि , जब जब इस देश पर कोई औरंगजेब अपनी कुत्सित नज़र और हैवानियत लिए खड़ा होगा उसके सामने छत्रपति शिवाजी महाराज जैसा देश का कोई सपूत भी जरूर आएगा और उसके सारे घमंड का मर्दन करके रख देगा।

विपक्षी जो पिछले सात सालों से यूँ ही बौराए बौखलाए से घूम रहे हैं उनके नेतृत्वकर्ताओं को यही नहीं पता चल रहा है कि आखिर वे इन सब पर प्रतिक्रया दें भी तो कैसी प्रतिक्रया दें।  कल राहुल गाँधी “महंगाई हटाओ रैली ” में हिन्दू और हिंदुत्ववाद पर कांग्रेसी डिक्शनरी का भावार्थ समझा रहे थे तो आज अखिलेश झुंझलाते हुए – काशी बनारस को , अंतिम समय पर जाया जाने वाला स्थान बताकर , प्रधानमंत्री मोदी पर ताना मार रहे थे।

अगले कुछ महीनों में ही, अनेक राज्यों में होने वाली  विधानसभा चुनाव में अपनी संभावित हार के बाद फिर वही ईवीएम का रोना रोने के लिए पहले ही तैयार होते विपक्षी असल में अब अपने ही बुने जाल में फँसते नज़र आ रहे हैं।  हमेशा ही हिन्दुओं , सनातन , मंदिरों , नदियों की उपेक्षा करते हुए और तुष्टिकरण के सिद्धांत और फार्मूले को अचूक मान कर विशेष मज़हब और ख़ास जमात के साथ ही अपनी राजनैतिक साँठ गाँठ करते थे।

अब जबकि , मोदी सरकार एक एक करके , सनातन के सारे प्रतीक स्थलों , भगवान् राम , कृष्ण और आदि देव महादेव से जुड़े दिव्य स्थलों के जीर्णोद्धार करके , उनका पुनर्निमाण करके , उनका सौंदर्यीकरण करके , पूरी दुनिया में सनातन का डंका , सनातन का जय घोष फिर से स्थापित कर रहे हैं तो ऐसे में विपक्षियों को समझ ही नहीं आ रहा है कि वे किसके पक्ष में रहें और किसका विरोध करें।

सूत्रों की माने तो , अयोध्या और काशी के बाद अब मथुरा में भी कृष्ण जन्भूमि के पुनरुत्थान की दिशा में सरकार और सम्बंधित विभाग अग्रसर हो चुके हैं।  ज्ञात हो कि इस सम्बन्ध में पहले ही दायर याचिका में अदालत ने पुरातत्व विभाग को सारे साक्ष्य एकत्र करके रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दे दिया है।

जो भी हो , इतना तो तय है कि आने वाले समय में सनातन का ये जयघोष और अधिक प्रचंड और तीव्र होगा और देव कार्य में जो भी जहाँ भी जैसे भी बाधा बनेगा या डालेगा , काल स्वयं उसका सारा हिसाब किताब करेगा।  जय सनातन , जय हिन्दू धर्म।  जय हिन्द।

भ्रष्टाचार के दलदल में फंसी : केजरीवाल एन्ड पार्टी

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जी हाँ अब तो लोगबाग भी , कभी लोगों के बीच से ही अचानक किसी सिनेमाई अंदाज़ में सीधे दिल्ली की बागडोर थाम कर सत्ता में आई आम आदमी पार्टी , को इसी नाम से बुलाने लगे हैं , केजरीवाल एन्ड पार्टी।  और ऐसा इसलिए है क्यूंकि जनलोकपाल लाकर राजनैतिक भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने की मांग और उद्देश्य से गढ़ी गई पार्टी ,के शुरूआती जुझारू लोग जो समय रहते ही सब कुछ भांप समझ कर अलग हो गए थे उसके बाद बचे तमाम बड़े राजनेता , और किसी आरोप में नहीं बल्कि भ्रषटाचार से अवैध धन कमाने और उसके दुरुपयोग में एक एक करके जेल जा रहे हैं और लाख दलीलों और तर्कों के बावजूद भी अदालत को अपनी बेगुनाही के इरादे से भी संतुष्ट नहीं कर पा रहे हैं।
आज आम आदमी पार्टी और इसके मुख्य बचे हुए संयोजक , बचे हुए इसलिए क्यूंकि कभी , इसी भ्रष्टाचार के विरूद्ध शुरू किये गए तथाकथित संघर्ष के प्रणेता अन्ना हज़ारे और सभी बेहतरीन साथी , पूर्व प्रशानिक अधिकारी किरण बेदी , पूर्व न्यायमूर्ति संतोष हेगड़े , साहित्यकार कवि कुमार विश्वास , सामाजिक आंदोलनकारी योगेंद्र यादव , राजनैतिक साथी कपिल मिश्रा और तमाम वो लोग जिन्हें कहीं न कहीं और कभी न कभी ये एहसास हो गया था कि सब कुछ वैसा नहीं है जैसा लोगों को दिखाया और बताया जा रहा है , वे सब धीरे धीरे अरविन्द केजरीवाल का साथ छोड़ते गए और इस जगह को भरने के लिए आए कौन , संजय सिंह और भगवंत मान जैसे राजनेता , इसका दुष्परिणाम सामने ही है।  
अरविन्द केजरीवाल की गिरफ्तारी की खबर पर अपनी गैर जरूरी प्रतिक्रिया देने वाले और बाद में बुरी तरह से फटकार खाने वाले पश्चिमी देशों के साथ साथ देश और दिल्ली को भी ये जानना बहुत जरूरी हो जाता है कि एक तरह जो राजनैतिक दल , बाकायदा अपने चेहरे और अपनी बात कहने के लिए लाखों रुपये प्रचार प्रसार पर खर्च कर रहा था और बार बार ये जता और बता रहा था कि , राजधानी दिल्ली की शिक्षा और चिकित्सा व्यवस्था में , पार्टी और उसकी नीतियों या परिवर्तनों के कारण क्रांतिकारी बदलाव आए और लाए गए , और फिर रात के अँधेरे में यही अच्छे लोग , अच्छी सोच और नीयत वाले लोग , अचानक से शराब बेच कर और बेच कर नहीं बल्कि शराब बेचने खरीदने और पीने की होड़ लगाकर पैसा जुटाने की जुगत में लग गया।
फिलहाल जो स्थिति आम आदमी पार्टी के तमाम उन राजनेताओं की , जिनका या जिन जिन का इस शराब बेचने के नियम कायदे को बदल कर पैसा बनाने के शर्मनाक अपराध से थोड़ा सा भी तालमेल निकल सकता है , उन सबको अपने ऊपर कानून की तलवार लटकती दिख रही है और जो इस अपराध को रचने और करने के प्रथम दृष्टया दोषी पाए गए हैं वे सब निरंतर अपने ऊल जलूल तर्कों और बहुत सी गैर जरूरी याचिकाएँ लगा लगा कर निरंतर इस दलदल में नीचे को ओर धँसते जा रहे हैं।  आश्चर्य इस बात पर भी होता है कि आम आदमी पार्टी के तमाम राजनेताओं की पैरवी कर रहे हैं अधिवक्ता अभिषेक मनु शिंगवी ,जो कांग्रेस के जाने माने नेता हैं , वही कांग्रेस जिसे आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में सिरे से ठिकाने लगाया था , गांधार नरेश शकुनि ने कुरु साम्राज्य से बदला लेने के लिए ही महाभारत करवाया था कहते हैं , बाकी तो सब वही जाने।

शहीद ऊधम सिंह की मूर्ति के हाथ काटे : पंजाब कानून व्यवस्था 

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यथा राजा तथा प्रजा -इसी बात को चरितार्थ करते हुए पंजाब की कानून व्यवस्था इन दिनों अपने सबसे निचले और कहें की सबसे अधिक दयनीय स्थिति में है।  एक दिन ऐसा नहीं जाता जब पंजाब के विभिन्न सूबों से किसी न किसी बड़े अपराध की घटना पुरे देश और दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींच लेती है।  कनाडा में खालिस्तानियों का बढ़ता प्रभाव से अब पंजाब भी बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है।  इसने पहले से ही नशे की गिरफत में फंसे पूरे प्रदेश की क़ानून व्यवस्था को भारी खतरे में डाल दिया है।  पंजाब की राज्य सरकार अपने अच्छे बुरे अनुभव के साथ इसे संभालने की भरसक कोशिश में लगी है।  लेकिन हालात तो दिनों दिन और ज्यादा खराब ही होते जा रहे हैं।

 

अभी हाल ही में पंजाब के फाजिल्का जिले में सिर्फ कुछ दिनों पहले ही स्थापित की गई शहीद उधम सिंह की मूर्ति को उपद्रवकारियों ने अपना निशाना बनाया।  उपद्रवियों ने मूर्ति के हाथ काट कर उसमें पकड़ाई हुई रिवाल्वर भी निकाल कर फेंक दी।  आसपास के आक्रोशित लोग इसे देश के अमर शहीद क्रांतिकारियों का अपमान मान कर पुलिस और प्रशासन से अपराधियों को तुरंत गिरफ्तार करने की मांग कर रहे हैं।

 

जेल सुधारों की आस में तिहाड़ प्रशासन

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अभी हाल ही में सुर्खियों में आया समाचार जिसमें एक फोन निर्माता कंपनी के मालिक जो एक आर्थिक अपराध में तिहाड़ केन्द्रीय कारागार में निरुद्ध है , आरोपी हरिओम राय से जेल में सुविधा दिए जाने के नाम पर जेल कर्मियों ने डरा धमका कर  पांच करोड़ रुपये वसूल लिए।  चिंताजनक  बात यह नहीं है कि देश की राजधानी दिल्ली और कभी आदर्श कारागार के रूप में माना जाने वाला तिहाड़ प्रशासन पर इस तरह से से आरोप लगा है।
गंभीर बात तो ये है कि एक के बाद एक राजनेता सत्येंद्र जैन से लेकर ठगी के आरोपी सुकेश चंद्रशेखर जैसे कारागार में पहले से निरुद्ध आरोपियों ने जेलकर्मियों द्वारा इसी तरह के और इससे भी कई तरह के गम्भ्भीर अनुचित क्रियाकलापों की शिकायत की है।  ध्यान देने की बात ये भी है की है प्रोफ़ाइल विचाराधीन  बंदियों/आरोपियों से जेल कर्मियों द्वारा उगाही की ये कुछ वो घटनाएं हैं जो जाने अनजाने समाचार माध्यमों में आ गईं।  दूसरी ये कि जब आर्थिक कदाचार/भ्रष्टाचार आदि मामलों के ऐसे हाई प्रोफ़ाइल बंदियों के साथ यह सब घटित हो रहा है तो ऐसे में साधारण कैदियों की दशा का अनुमान लगाना सहज है।
कारागारों की छवि किसी भी काल में समाज में अच्छी नहीं रही है किन्त ब्रिटिश औपनिवेशिक काल में कारागार -यातना, सामूहिक दंड और मृत्यु दंड देने की कोठरी बन कर रह गई थी।  जेलों की अमानवीय हालातों को राजनैतिक बंदियों द्वारा  महसूस और अनुभव करने के बाद जेलों में दंड , प्रायश्चित और सुधार के लिए लाए गए बंदियों के लिए ,उन्हें रखे जाने से लेकर , उनसे श्रम और सेवा लिए जाने वाले , सुधारने के साथ साथ शिक्षा स्वास्थ्य जैसी बुनियादी जरूरतें सुनिश्चित करने के लिए बाकायदा कारागार नीति नियमों को संहिताबद्ध कर दिया गया।
कभी इसी तिहाड़ कारागार में बंदियों के सुधार और उन्हें मुख्य धारा में लाने के लिए विख्यात पुलिस प्रशासक किरण बेदी ने बहुत से नए प्रयोग और प्रयास किए थे।  आज वही केंद्रीय कारागार , थोड़े थोड़े समय बाद अपने व्यवस्थाओं की अनियमततताओं और कदाचार के लिए समाचार में आए तो ये दुःख और चिंता की बात है।
कारागार तिहाड़ देश की राजधानी दिल्ली का केंद्रीय कारागार होने के साथ साथ देश के सबसे विशाल कारागार में से है।  कैदियों के वर्गीकरण के आधार पर तिहाड़ एक दर्जन से अधिक कारगार में बंदियों को निरुद्ध रखा जाता है।  इसमें गंभीर अपराधों में लिप्त आरोपियों , बंदियों, महिला बंदियों तथा राजनैतिक बंदियों के लिए अलग अलग कारागारों की व्यवस्था है।
कारागार प्रशासन की विफलता से जुडी घटनाये प्रदेश के कारागार प्रशासनों के विषय में सामने आती रही हैं।
ऐसी ही एक बड़ी घटना को पिछले दिनों पजाब राज्य के एक कारागार में अंजाम दिया गया था। बिहार का कारगर प्रशासन तो लालू यादव मामले में बाकायदा फटकार तक खा चुका है।  महाराष्ट्र , बंगाल , सहित और बहुत  से राज्यों की कारागारों से अनेक तरह की अनियमितताओं ,भ्रष्टाचार के समाचार सामने आते रहे हैं।
चाहे छापे के दौरान बंदियों से मोबाइल मिलने की बात हो या फिर जेल के अंदर से ही बड़े गंभीर अपराधों की साजिश षड्यंत्र बनाने वाली बंदियों की गैंग की खबरें , जेल के अंदर चल रही पूर्व मंत्री की सेवा मालिश हो या अब वीवो के मालिक हरिओम राय से सुविधा शुल्क के रूप में लिया जाने वाला पांच करोड़ , हर घटना इस बात का इशारा कर करती है की केंद्रीय कारागार तिहाड़ प्रशासन में अब कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है।  
कारागार राज्य का विषय होता है इसलिए इसका दायित्व प्रदेश सरकार पर होता है।  राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और देश की सबसे संवेदनशील जेल होने के कारण भी ये बहुत जरूरी है कि केंद्रीय कारागार की सारी  व्यवस्थाओं को अधिक दुरुस्त व पुख्ता किए जाने विषयक सभी अनुशंसित उपायों पर त्वरित अमल किया जाए।
लेखक स्वतन्त्र टिप्पणीकार हैं।

बड़े न्यायिक सुधारों की कवायद

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पिछले कई वर्षों से न्यायिक प्रक्रियाओं तथा न्याय प्रशासन में परिवर्तन और सुधारों की कवायद में लगी केंद्र सरकार ने अब इस दिशा में कदम बढ़ा दिए हैं।  हाल ही में समाप्त हुए संसद सत्र में तीन प्रमुख विधिक संहिताओं में वर्तमान परिदृश्य के अनुरूप नवीन परिवर्तन व सुधार के बाद , संशोधित करके सामयिक और परिमार्जित किया गया है।  ज्ञात हो कि इन संहिताओं में परिवर्तन और सुधार की जरूरत बहुत सालों से महसूस की जा रही थी।

भारतीय दंड संहिता , दंड प्रक्रिया संहिता तथा भारतीय साक्ष्य अधिनियम – तीनों  प्रमुख विधिक संहिताओं में वर्णित व्यवस्थाएं जो ब्रिटिशकालीन परिस्थितियों में बनाई व लागू की गई थीं।  स्वतंत्रता के दशकों बाद तक औचित्यहीन होते जाने वाले बहुत से क़ानूनों को बदलने समाप्त किए जाने की जरूरत को पूरा करने के उद्देश्य से सरकार ने भारतीय न्याय संहिता , भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (प्रक्रिया संहिता ) , तथा भारतीय साक्ष्य अधिनियम को पारित कर दिया।

इन संहिताओं के परिमार्जन में सबसे अहम् जिस बात को रखा गया है वो है इसके प्रावधानों , व्यवस्थाओं और पूरी परिकल्पना वर्तमान परिस्थितयों परिवर्तनों के अनुरूप सामयिक और तार्किक किए जाएं।  ब्रिटिशकालीन व्यवस्थाओं ,प्रक्रियाओं को परिष्कृत किया जाना विधि के शासन को बनाए रखने के लिए भी आवश्यक है।  स्वयं न्यायपालिका भी अपने समख विमर्श और मंतव्य के उद्देश्य से रखे हर प्रश्न को उसी सामयिक प्रासंगिकता और सामाजिक व्यवहार में हुए परिवर्तनों की कसौटी पर अनिवार्य रूप से परखती अवश्य है।  

प्रक्रिया से लेकर दंड प्रावधानों तक में परिवर्तन के बाद बहुत सी नवीन व्यवस्थाएं दी गई हैं , जैसे एक तरफ जहां अपराधों के लिए विशेषकर व्यक्ति समाज देश के विरुद्ध किए गए अपराधों में सज़ा को अधिक कठोर किया गया है वहीँ पहली बार अस्पताल , यातायात , सामुदायिक केंद्रों आदि में समाज सेवा या सामुदायिक सेवा का दायित्व दिया जाना को सुधारात्मक सजा विकल्प के रूप में शामिल किया गया है।

भारतीय न्याय प्रक्रिया में समय से निर्णय न हो पाने के कारण “विलम्बित न्याय अन्याय के समान लगने लगता है ” की आलोचना झेलती ,भारतीय न्यायिक प्रक्रियाओं को थोड़ा अधिक समयबद्ध करके विधिक प्रक्रियाओं को अधिक तीव्र और प्रभावी बनाने के लिए परिवर्तित संहिता में काफी नई व्यवस्थाएं की गई हैं।  अपराध के कारित होने से लेकर , प्राथमिकी , अन्वेषण ,अभियोग के अतिरिक्त वादों के निर्णय/आदेश पारित करने के लिए भी निश्चित व पर्याप्त समय सीमा तय कर दी गई है।

किसी भी परिवार ,समाज देश की शान्ति , सद्भाव और सबसे जरूरी सुरक्षा के लिए आवश्यक तत्व -विधि का शासन।  यानि समाज सम्मत नीति नियमों का अनुपालन।  अपराध संहिता में पहली बार आतंकवाद की व्याख्या को व्यापक करके समाहित किया गया है। देश की आर्थिक सुरक्षा को क्षति पहुंचाने का कार्य , भारतीय मुद्रा की नक़ल आदि से क्षति आदि को भी दायरे में लाया गया है।

महिलाओं और बच्चों के प्रति अपराध करने वालों पर और अधिक दृढ़ कठोर होकर ऐसे अपराधों को अधिक जघन्य मान कर दंड अधिक कठोर और इन अपराधों में अभियोजन , कार्रवाई को तीव्र करने विषयक परिवर्तन समायोजित किए हैं।  पिछले दिनों आवेश में उन्मादी भीड़ द्वारा पीट पीट कर की गई हत्याओं -मॉब लॉन्चिंग को भी बर्बर अपराध मानकर अधिकतम दंड -मृत्यदण्ड देने का प्रावधान किया गया है।  साक्ष्य अधिनियमों में बुनियादी सुधार करते हुए सभी उन्नत तकनीकों के उपयोग और वैज्ञानिक परिणामों को विधिक मान्यता देने विषयक संशोधन भी किए गए हैं।

ज्ञात हो कि वर्तमान केंद्र सरकार शुरू से ही भारतीय न्याय व्यवस्था , न्याय प्रशासन तथा न्यायिक प्रक्रियाओं में सामयिक सुधारों की  प्रबल पक्षधर रही है यही कारण है कि वर्तमान सरकार के संसद सत्रों में सर्वाधिक अधिनियम कानून बनाए जाने , पारित करके लागू किए जाने के रिकार्ड बने , नीतियां बानी तथा अनुसंधान अन्वेषण से निरंतर सुधर की कोशिश की जाती रही है / विधिक व्यवस्थाओं प्रक्रियाओं व संहिताओं  में परिशोधन , परिवर्तन नवीनीकरण जैसे दुरूह /दुष्कर दायित्व को वहां करने की पहल करने के लिए सरकार साधुवाद की पात्र है।  

राष्ट्रपति ने संविधान दिवस पर सर्वोच्च न्यायालय में किया बाबा साहब की मूर्ति का अनावरण

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संविधान दिवस पर आयोजित एक विशेष कार्यक्रम में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सर्वोच्च न्यायालय परिसर में बाबा साहब भीमराव आंबेडकर जी की मूर्ति का अनावरण किया।  इस मूर्ति  के अनावरण के समय सर्वोच्च न्यायलय के प्रखर मुख्य न्यायाधीश श्री डी वाई चन्द्रचूड़ के अलावा कानून मंत्री श्री अर्जुन मेघवाल भी उपास्थित रहे।

बाबा साहब की इस प्रतिमा की एक विशेषता यह भी है कि इसमें वे एक अधिवक्ता के रूप में दर्शित किये गए हैं।  इस अवसर पर बोलते हुए महामहिम ने न्यायिक अधिकारी चयन व्यवस्था में ऐसे उपायों पर विचार करने का आग्रह किया जिससे समाज के सबसे पिछड़े दलित और वंचित वर्ग के अतिरिक्त देश भर के मेधावी विधि वेत्ताओं को भी अवसर मिले।

राष्ट्रपति ने इसके लिए भारतीय प्रशासनिक सेवा , पुलिस सेवा की ही तरह न्यायिक अधिकारियों के लिए इसी उच्च स्तरीय प्रतियोगी परिक्षा जैसे विकल्पों पर भी विमर्श का सुझाव सामने रखा।

समारोह को सम्बोधित करते हुए मुख्य न्यायाधीश ने भी नए और कई क्रांतिकारी  सुधारों की जानकारी देते हुए सबको आश्वस्त किया कि भारतीय न्यायपालिका हमेशा की तरह देश के लोकतांत्रिक मूल्यों और नागरिक अधिकारों की सजग प्रहरी बनी रहेगी और ये भी कि देश के सभी नागरिकों के दरवाज़े हमेशा खुले हुए हैं। “

हलाल प्रमाणीकरण : व्यवसाय की आड़ में अपराध या साजिश

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हलाल प्रमाणीकरण -यानि किसी वस्तु को दिया गया वो प्रमाणपत्र जो मुस्लिमों के एक विशेष वर्ग को आश्वस्त करने के लिए जारी किया जाता है कि उक्त प्रमाणित वास्तु हलाल है और मुस्लिमों के लिए वर्जित नहीं है।  सीधे सरल रूप में समझा जाए तो एक ऐसा प्रमाणीकरण जो यह साबित करता है कि उक्त वस्तु हराम नहीं है और मुस्लिमों के लिए शरीयत के अनुसार उपयुक्त है।

सवाल ये है की आखिर अचानक ही इस हलाल प्रमाणीकरण और इससे जुड़े कारोबार पर इतना हो हल्ला क्यों ? उत्तर प्रदेश सरकार ने इस मामले में शिकायत दर्ज़ कराने पर संज्ञान लेकर प्रथम दृष्टया इसे संविधान सम्मत न पाते हुए इस पर निषेधाज्ञा लागू कर दी और उतर प्रदेश पुलिस ने अगले 24 घंटों में छापेमारी करके इस हलाल प्रमाणीकरण वाले उत्पादों की धार पकड़ शुरू कर दी।

असल में कभी माँस पदार्थों के लिए हलाल और झटका (गैर हलाल या हराम ) जैसे शब्दों का प्रयोग किया गया और सरकार अथवा समकक्ष किसी भी संस्था द्वारा अधिकृत किए बिना कुछ रसूखदार मुस्लिम संस्थाओं ने ये हलाल प्रमाणीकरण जारी करने की व्यवस्था शुरू कर दी।  कभी सिर्फ मजहबी आधार पर जारी किया जाने वाला ये हलाल प्रमाणपात्र वर्तमान में 2 से 3 लाख रूपए लेकर जारी किया जा रहा है।

इस सारे मामले ने तूल पकड़ना तब शुरू किया जब मांस पदार्थों के अलावा हलाल प्रमाणीकरण का दायरा सभी शाकाहारी भोज्य पदार्थों और यहां तक कि कपड़ों और सौंदर्य प्रसाधनों तक पहुँच गया।  इतना ही नहीं इन क्षेत्रों में मौजूद सभी निर्माता कमापनियों को जबरन हलाला प्रमाणपत्र लेने के लिए विवश किया गया क्यूंकि इसके बिना मुस्लिम देशों में उनका उत्पाद क्रय विक्रय के योग्य नहीं माना /समझा जाता।

एकदम धीरे धीरे गुपचुप तरीके से बना और बढ़ा हलाल प्रमाणीकरण का ये कारोबार अब वैश्विक स्तर पर लाखों करोड़ रुडपे का बड़ा कारोबार बन चूका है।  यही कारण है कि आज भारत में भी हलाल प्रमाणपत्र जारी करने वाली चुनिंदा संस्थाओं की अकूत कमाई देखते हुए अन्य मुस्लिम संस्थाएं ही इस व्यवस्था को गैर नियोजित बताते हैं।

असल में सरकार हलाल प्रमाणीकरण से जुडी संस्थाओं पर इसलिए भी सख्त हुई क्यूंकि इनमें से कई इस अथाह पैसे का उपयोग सरकार और सुरक्षा एजेंसियों द्वारा पकडे गए आतंकियों के मुकदमेबाजी के लिए खर्च किए जाने का आरोप इन पर लगने लगा था।  सरकार ,पुलिस और प्रशासन अब इस सारे खेल की तह तक जाने को तैयार हैं।

सरकार द्वारा बिना किसी अनुमति/अधिकृत आदेश के मज़हबी आधार पर प्रमाणपत्र जारी करना , इस प्रमाणीकरण के लिए भारी भरक शुल्क वसूला जाना और सबसे गंभीर आरोप ये कि इस पैसे का उपयोग देश विरोधी गतिविधियों /आतंकी घटनाओं में लिप्त आरोपियों पर चल रहे मुकदमे में उनकी पैरवी के लिए किया जा रहा है।  विदेश निर्यात के लिए इस आवश्यक बनाया बताया जाना , खाद्य मांस पदार्थों के अतिरिक्त अन्य वस्तुओं यहां तक कि वस्त्रों के लिए भी किया जाने वाला हलाल प्रमाणीकरण के ऊपर प्रश्न खड़े होना स्वाभाविक ही था।  जबकि हलाल प्रमाणीकरण कर रही संस्थाऐं जिनमे जमीयत उलेमा भी हैं का तर्क माना जाए तो ये शरीयत से चलने वाले मुस्लिमों और ऐसे ही मुस्लिम देशों से  व्यापार के लिए ही इस प्रमाणीकरण की व्यवस्था को बनाया गया है और बिना इसके वहां इन वस्तुओं का विक्रय संभव नहीं है।

सार सक्षेप में समझा जाए तो हलाल और हराम  के इस खेल में अकेले भारत में ही अब आठ लाख करोड़ की अर्थव्यवस्था और विश्व में 166 लाख  करोड़ की बन चुकी ये प्रमाणन अर्थव्यवस्था अब वैश्विक स्तर पर गैर वाजिब दबाव बनाया जा रहा है।  इसके विरोध में बहुत सारे मुस्लिम व्यापारियों का समूह भी आ गया है।  1974 से शुरू किया गया हलाल प्रमाणीकरण अब एक समानांतर अर्थव्यवस्था वो भी अनियंत्रित व अनियोजित हो चुका है।

हलाल प्रमाणीकरण में लिप्त संस्थाओं जैसे हलाला इण्डिया , जमीयत उलमा ए हिंद हलाल ट्रस्ट आदि के विरूद्ध शिकायत के बाद जांच/कार्रवाई शुरू हो चुकी है और भारत जैसे धर्म निरपेक्ष देश में ऐसे मज़हब आधारित निजी प्रमाणपत्रों की कोई आवश्यकता नहीं है , न ही गैर खाद्य वस्तुओं के लिए और न ही भारत के अंदर व्यापार करने के लिए।

महुआ मोइत्रा के विरुद्ध सीबीआई जांच शुरू : विपक्षी सांसदों का नैतिक पतन बना चिंता का सबब

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आखिरकार आज केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो के अधिकारियों ने तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा के विरुद्ध , संसद सत्र के दौरान अपनी लॉग इन आई डी गलत मंशा से साझा करने और पैसे अथवा प्रलोभन के प्रभाव में संसद में प्रश्न पूछे जाने के आरोपों पर अपनी जांच शुरू कर दी।  ज्ञात हो कि पिछले संसद सत्र में महुआ द्वारा पूछे गए प्रश्नों में अधिकाँश मशहूर उद्योगपति अडानी समूह के प्रतिद्वंदी व्यापारिक समूह के हितों को ध्यान रख कर पूछे गए प्रश्न थे।

भाजपा सांसद निशिकांत दूबे की शिकायत पर , संसद की नैतिक समिति ने भ्र्ष्टाचार निरोधी लोकपाल की अनुशंसा पर महुआ के विरूद्ध कैश फॉर क्वेरी यानि पैसे या प्रलोभन लेकर संसद में गौतम अडानी समूह के प्रतिद्वंदी हीरानंदानी समूह के हितों से जुड़े सवाल पूछे जाने के मामले का राजफाश होने पर उक्त कार्रवाई को अंजाम दिया गया।  ज्ञात हो कि आरोप के साबित होने पर महुआ की संसद सदस्य्ता तो जाएगी ही उनका राजनैतिक करियर भी ख़त्म होने की बात कही जा रही है।

शुरूआती जांच से ये पता चला है और खुद महुआ ने अपने कई साक्षत्कारों में इस बात को माना भी है कि संसद सत्र के दौरान सांसदों को जारी किया जाने वाला गोपनीय वन टाइम पासवर्ड उन्होंने जाने अनजाने किन्हीं अन्य लोगों से भी साझा किया था और ये भी कि पूछे गए प्रश्नों में से भी बहुत सारे प्रश्न भी उन्हीं लोगों ने लिखे और तैयार किए थे।  किसी भी सांसद जैसे महत्वपूर्ण पद पर बैठे व्यक्ति से ऐसे आचरण और व्यवहार की उम्मीद नहीं की सकती है।

ज्ञात हो कि लोकतंत्र के इस गिरते स्तर का ही ये परिणाम और प्रभाव है कि कभी शासन के लिए एक सचेत प्रहरी और आलोचक का काम करने वाला विपक्ष और विपक्ष के सांसद आज अपने कार्य और आचरण में इतना नीचे गिर गए हैं जो असल में न सिर्फ संसदीय गरिमा बल्कि खुद भारत के लोकतंत्र का अपमान है।

ये पहली घटना नहीं जब विपक्ष का कोई सांसद इस तरह के गैर जिम्मेदार और भ्रष्ट आचरण में लिप्त पाया गया है।  अभी हाल ही में आम आदमी पार्टी के सासंद ने भी संसद से निलंबन की सजा इसलिए पाई क्यूंकि उन्होंने अपने द्वारा प्रस्तावित किसी मसौदे पर सहमति दिखाए /दर्ज़ कराए सांसदों में से कई के फ़र्ज़ी हस्ताक्षर कर /दिखा कर उसे सम्मलित करने की कोशिश की थी।  उनका ये फर्जीवाड़ा पकड़ में आ गया और उन्हें निलंबन की सजा झेलनी पड़ी।

असल में ये सब विपक्ष के तमाम राजनैतिक दलों के नकारात्मक रवैये और सत्ता लोलुपता की भयंकर चाहत के कारण हो रहा है।  विपक्ष आज सत्ता पक्ष या सरकार द्वारा लाए जा रहे कानूनों , लागू की जा रही नीतियों , नियमों , योजना परियोजनाओं का आकलन विश्लेषण करके एक स्वस्थ आलोचना करने , बेहतर विकल्प देने या कुछ भी अलग सकारात्मक कहने करने से बिलकुल उलट सिर्फ प्रधानमन्त्री मोदी , उनके कथ्य , जीवन , दिन चर्या आदि पर ही सारा ध्यान दिए हुए है सिर्फ एक व्यक्ति की आलोचना , और अब तो अपमान करने में ही अपना सारा समय व ऊर्जा लगा रहा है , इसका दुष्परिणाम फिर यही होना है।

 

नहीं रुक पा रही पराली जलाने की घटनाएं : राजधानी फिर वायु प्रदूषण आपातकाल की ओर

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अभी कुछ वर्षों पूर्व भी एक समय ऐसे और इससे भी बुरे वायु पदूषण आपातकाल जैसे हालात हो  गए थे राजधानी दिल्ली में जब लोगों  घर दफ्तर तक में मास्क लगा कर सांस लेने पर विवश होना पढ़ा था और ये कोरोना महामारी से  पहले की बात थी।  हैरानी बिलकुल भी नहीं होती यदि आज दिल्ली के कूड़ों के पहाड़ , प्रदूषित यमुना से बाढ़ग्रस्त यमुना और हर साल शीत ऋतु में बायु प्रदूषण आपातकाल , इनमें से किसी भी , किसी भी एक समस्या के लिए भी कुछ प्रभावी , दूरदर्शी नहीं सोचा किया गया।

वायु प्रदूषण का बढ़ता बिगड़ता स्तर और संतुलन अब भी सिर्फ प्रकृति के भरोसे ही है जबकि इसके लिए दिख रहे , समझे जा रहे कुछ स्पष्ट कारणों में से एक पराली जलाने , और इसे आदतन , इरादतन जलाने वालों पर भी कोई रोक टोक नहीं डाली जा पा रही है। कुछ यही सारो सार था अभी माननीय न्यायपालिका के पास लगे एक संदर्भित वाद में।

अदालत ने न्यायालय में उपस्थित पंजाबा के प्रतिनिधि अधिकारियों द्वारा रखे गए स्पष्टीकरण को पर्याप्त न मानते हुए अगली पेशी पर ये बताने को कहा है कि पिछले दिनों पराली जलाते हुए पकडे जाने वालों पर क्या और कितनी , कैसी कार्रवाई की गई , जुर्माना सिर्फ लगा भर देकर खानापूर्ति की गई या लगाया  गया जुरमाना वसूला भी गया है।

ज्ञात हो कि कुछ वर्ष  पूर्व दिल्ली और पंजाब में दो अलग अलग राजनैतिक दलों की सरकार होने के कारण एक दूसरे पर  दोषारोपण का खेल चल जाता था किन्तु अब दोनों राज्यों में आम आदमी पार्टी की सरकार होने के कारण पराली जलाने की घटनाओं में कमी आने का अनुमान लगाया गया था।  किन्तु हुआ इसका ठीक उलट।  इसका दुष्परिणाम भी तुरंत ही सामने आ गया और धुंए तथा गैस की काली चादर जो दिसंबर जनवरी तक शिकंजा फैलाती थी उसने सर्दियों की आहट से कहीं पहले ही स्थति नारकीय कर दी।

अभी हाल ही में पस्चिमी विक्षोभ से प्रभावित वर्षा ने कुछ समय के लिए प्रदूषण के इस आपातकाल से राहत जरूर दी लेकिन जल्दी ही स्थिति फिर जानलेवा हो गई है।  यहाँ यह उल्लेख करना  कि वायु गुणवत्ता के खराब होते स्तर से विवश होकर लाखों लोगों को घरों ,दफ्तरों , होटलों तक में वायुशोधक यंत्रों को लगाना पड़ा जाहिर है कि ये सभी उपाय भी स्थाई कर सौ प्रतिशत कारगर उपाय नहीं है।

जहां तक दिल्ली राज्य सरकार की बात है तो जब स्वास्थ्य से लेकर शिक्षा मंत्री तक आर्थिक घपले घोटाले के आरोपों में गिरफ्तार हों , महीनों एक जनामन्त भी नहीं पा सके हैं ऐसे में वाय गुणवत्ता बेहतर करना तो दूर बदतर न हो इसके लिए जैसे गैर पराओगिक व निष्प्रभावी योजनाएं , रेड लाइट ऑन , गाडी ऑफ़ तथा ऑड ईवन सहित तमाम योजनाएं सिर्फ विज्ञापनबाजी बन कर रह गई।

प्रदूषण के विरूद्ध पारस्थितिकी तैयार करने में सबसे प्रभावी होते हैं वन क्षेत्र।  दिल्ली सरकार व सम्बंधित संशताओं ने इस दिशा में भी कोई प्रभावी कार्य नहीं किया।  प्रतिवर्ष पौधे लगाने का दिवस मना  तक सब वहीँ का वहीँ।  राज्य और केंद्र सरकार की जिम्मेदारी , भूमिका के विमर्श से इतर समझने और आज अभी समझने वाली बात है कि फिर कैसे भारत अपनी राजधानी में विश्व के सभी देशों को बुला कर कह सकेगा कि आओ मिलकर दुनिया को हरित और स्वच्छ करते हैं।

आज राजधानी दिल्ली में ढाई करोड़ की विशाल जनसंख्या के लिए हवा पाई स्वास्थ्य जैसे बुनियादी जरूरतों को सुनिश्चित करना जितनी बड़ी चुनौती है यदि समय रहते इस पर गम्भीरता से काम नहीं शुरू किया गया तो सबसे बड़े अफ़सोस की बात ये होगी कि कभी अपने खेतों से हरा सोना उगाने वाले पंजाब प्रांत के कृषक समाज पर पराली जला कर शहरों की हवा में जहर घोलने का इल्ज़ाम भी हमेशा के लिए लग जाएगा।

गाँधी परिवार से वसूली शुरू : प्रवर्तन निदेशालय ने ज़ब्त किए 752 करोड़ मूल्य की संपत्ति

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गाँधी परिवार को देना होगा हिसाब किताब

मोदी सरकार जिन दो बातों के लिए पहले ही दिन से नो टोलेरेंस की नीति अपनाए हुए थी वो थी आतंकवाद के विरुद्ध खड़े होना और दूसरी भ्रष्टाचार के खात्मे का संकल्प।  प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट चेतावनी देते हुए कहा था कि ” देश और लोगों की संपत्ति में न तो खुद खाऊँगा और न ही किसी को खाने दूँगा।  उस वक्त शायद उन्होंने ये नहीं कहा था कि , अब तक जो खाया और अघाया घूम रहा हैं वो भी सारा निकाल लूंगा।

मोदी सरकार के आते ही और सबसे बढ़कर शासन की नीति और प्रशासन का रुख देख कर सालों से घोटाले कर रहे , फर्जी धन्ना सेठ लोग अपने ऊपर क़ानून का शिकंजा कसता देख कर निकल भागे और ऐसा भागे कि आज तक विदेश में भागे भागे छिपे छिपे फिर रहे हैं और सरकार ने उन देशों से भी मित्र नीति के तहत वहां उनका जीना मुहाल किया हुआ है।

इससे इतर राजनीति का चोला पहन कर , गरीबों के कल्याण और गरीबी हटाओ के नारों से दशकों तक देश  शासन करने वाले लोगों के घोटालों की जब फेहरिश्त खुली तो आज हालात ये हो गए कि , सब के सब , भ्रष्टाचार के हमाम में बिलकुल नंगे निकले।  आज सब के सब अदालतों से विभिन्न तरीकों और आधार पर जमानत लेकर अपनी खाल बचाने की जुगत में लगे हैं।

देश की राजनीति में कभी एक रसूख रखने वाला गाँधी परिवार भी , आर्थिक अनियमितताओं और उससे भी अधिक इरादतन किए गए आर्थिक अपराधों में संलिप्तता के आरोप से खुद को नहीं बचा सका।  बार बार लोगों द्वारा उठाया गया प्रश्न कि बिना किसी , कारोबार व्यापार के आखिर गांधी परिवार की आय और संपत्ति में इतने दिनों तक इतना बड़ा इज़ाफ़ा कैसे होता रहा के उत्तर में लोगों को गांधी परिवार द्वारा किए ,कराए जा रहे घोटालों के सच के रूप  में सामने आया ,

ऐसा ही एक घोटाला है नेशनल हेराल्ड घोटला। नेशनल हेराल्ड की स्थापना और संपादन जवाहरलाल नेहरू ने भारत के पहले प्रधान मंत्री बनने से पहले किया था। अखबार ने 2008 में अपना परिचालन निलंबित कर दिया था क्योंकि उस पर ₹90 करोड़ से अधिक का कर्ज था, जिसे कथित तौर पर चुकाया नहीं गया था,वर्ष 2015 में श्री सुभ्रमण्यम स्वामी द्वारा दायर एक शिकायती वाद में ये आरोप लगाया गया कि गाँधी परिवार ने गैर कानूनी तरीके से करोड़ों रुपये का लाभ कमाया।

अदालत द्वारा मामले का संज्ञान लेकर मुकदमा चलाए जाने के विरुद्ध गांधी परिवार निचली अदालत से लेकर सर्वोच्च न्यायलय तक पहुंचा लेकिन मामले की गंभीरता को देखते हुए और गांधी परिवार को प्रथम दृष्टया दोषी मानते हुए गांधी परिवार की दलील खारिज कर मुकदमा जारी रखने का आदेश दिया।  यही कारण रहा कि राहुल सोनिया को जमानत याचिका दायर कर जमानत भी लेनी पड़ी तथा दोनों आरोपी अभी जमानत पर ही हैं।  

उधर प्रवर्तन निदेशालय ने लगातार  पूछताछ और जाँच के बाद कल गांधी परिवार की 752 करोड़ रूपए के मूल्य की संपत्ति ज़बात कर ली।  इस कार्रवाई को चुनाव से पहले सरकार द्वारा विपक्षी दलों पर दबाव बनाने जैसा ही घिसा पिटा राग बेशक कांग्रेस गा रही लेकिन लेकिन देश की जागरूक अवाम अब ये सारे खेल और दांव पेंच पहले ही देख चुकी है।

समय आ गया है कि देर सवेर , ऐसे तमाम राजनैतिक अपराधी जिन्होंने देश और सरकारी कोष की संपत्ति अपने और अपनी परवारों के नाम कर ली उन्हें न सिर्फ उनके अपराध के लिए दंड मिले बल्कि ऐसी तमाम संपत्ति जब्त कर दोबारा राजकोष में जमा कर दिया जाए।

कोरोना से लेकर प्रदूषण तक : बेबस और बेकाम दिल्ली सरकार

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कुछ वर्षों पूर्व जब पूरी दुनिया चीन द्वारा फैलाई गई महामारी कोरोना की चपेट में आकर पूरी दुनिया में हाहाकार मचा हुआ था।  उन दिनों भी दुनिया और देश भर में कुछ लोग व् सरकारें ऐसी भी थीं जिनके गैर जिम्मेदाराना व्यवहार , व्यवस्था और नीतियों के कारण दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों में चिकित्सीय व्यवस्था की स्थिति और अधिक नारकीय व दयनीय होकर रह गई थी।

इन्ही में से एक रही दिल्ली सरकार और उनके नुमाइंदे।  कोरोना तो चलिए खैर बीती बात हो गई अभी दो माह पूर्व ही एक बार फिर से दिल्ली सरकार , मुसीबत पड़ते ही भाग खड़ी हुई और आदतन सारा ठीकरा दूसरों पर फोड़ दिया।  ये अवसर था जब पंजाब हरियाणा से होता हुआ अथाह वर्षा जल राजधानी दिल्ली में एक सप्ताह तक बाढ़ की त्रासदी ले आया।  दिल्ली सरकार चुपचाप तमाशबीन होकर सब देखते रहने के अलावा कुछ भी नहीं कर सकी।

उपरोक्त दोनों ही आपदाएं अचानक आईं थीं इसलिए हो सकता है की सरकार और मशीन री को इनसे निपटने के लिए पर्याप्त समय और संसाधन शायद नहीं मिल सका हो , परन्तु इन दिनों राजधानी क्षेत्र की भयंकरतम दूषित हवा से निपटने के दावे तो पिछले पांच सात वर्षों से किए जा रहे हैं परन्तु इसका परिणाम और प्रभाव वही -ढाक के तीन पात।

प्रदूषण को नियंत्रित करके वातावरण स्वच्छ किये जाने का लक्ष्य तो दूर ,हालात तो दिनों दिन अधिक भयावह होते जा रहे हैं और ऐसे में एक बार फिर से दिल्ली सरकार अपने ढाई करोड़ नागरिकों को इस वायु प्रदूषण से राहत  देने के लिए सिर्फ यही कारगर ऊपर लाइ है कि पड़ोसी राज्यों तथा केंद्र की भाजपा सरकार पर सारा दोष मढ़ दिया जाए।

इत्तेफाक से पिछले कुछ वर्षों से पंजाब सरकार द्वारा स्थानीय किसानों को पराली जलाने से नियंत्रित नहीं कर पाने के लिए पूर्व की कांग्रेस सरकारों को कोसने वाली आम आदमी पार्टी की ही अपनी सरकार पंजाब में भी बन जाने के बाद अब पंजाब पर दोषारोपण का खेल भी खटाई में पड़ गया है।

दीपावली के कुछ ही दिनों बाद जब महापर्व छठ पूजन के लिए सभी यमुना नदी और घाटों पर पहुँचेगे तो हर साल की तरह इस बार भी यमुना नहीं के भयानक प्रदूषण स्तर  की बात भी निकल फिर सामने आ जाएगी।  सरकार  पूरी तत्परता से केंद्रीय सरकार व् एजेंसियों पर सारा दोषारोपण करके इतिश्री कर लेगी।

असल में प्रदूषण सहित किसी भी बड़ी बुनियादी जरूरत और समस्या पर दिल्ली की राज्य सरकार ने कभी भी गम्भीरतापूर्वक कुछ नहीं किया यही वजह है कि अभी हाल ही में दिल्ली सरकार द्वारा प्रस्तावित रेड लाइट ऑन गाड़ी ऑफ़ जैसे अव्यवहारिक योजना को न्यायपालिका ने बिना जांचे परखे दोबारा लागू करने से रोक दिया।  देखा जाए तो सरकार का इसमें कोई दोष भी नहीं है क्यूंकि जैसे जैसे कारनामे/घोटाले को अंजाम देने में राज्य सरकार और उसके नुमाइंदे लगे रहे उसके बाद प्रदूषण जैसे छोटी मोटी समस्याओं के लिए समय ही कहाँ मिल पाता है।

बहरहाल , थोड़े दिनों में तेज़ हवाएं और बारिश शायद दिल्ली और आसपास के क्षेत्र पर छाए धुंए और धुल के गुबार को काम और ख़त्म तो कर देंगे किन्तु इस बीच जाने कितने ही नवजात शिशु, वृद्ध और रोगी , स्वच्छ हवा में सांस की कमी के कारण असमय ही काल कवलित हो चुके होंगे और जाने कितने और इस कतार में शामिल हो जायेंगे।

यह बहुत दुखद स्थिति है कि , अपनी समस्याओं के समाधान खोजने और निपटने के लिए ही समाज अपने लिए सरकारोंब का गठन करती है , बड़े विशवास के साथ अपने मत देकर अपना प्रतिनिधि बना कर जिन्हें चुनती है वे सालों साल सरकार  में बने रहते हैं और उधर दूसरी तरह ये समस्याएं भी सालों साल यूँ ही बनी रहती हैं।