आरक्षण की बैसाखी : न टूटे , न छूटे

 

 

 

पूरी दुनिया आज विश्व के सामने आ रही चुनौतियों , समस्याओं के लिए अपने अपने स्तर पर शोध , खोज , विमर्श कर रहे हैं , इससे इतर कुछ मज़हबी कट्टरता से दबे देशों का समहू लगा हुआ है अपने विध्वसंकारी मंसूबों की पूरा करने में।  इन सबसे अलग भारत जो अब विश्व के प्रभावशाली देशों में शामिल है वाहन की राष्ट्रीय राजनीति के बहस ,  मंथन का विषय है -आरक्षण व्यवस्था।  दुखद आश्चर्य है कि देश की स्वतंत्रता के सत्तर वर्ष के पश्चात भी आज भारतीय समाज , राजनीति , सब कुछ जातियों का निर्धारण , पुनर्निधारण , वर्गीकरण और अंततः आरक्षण  व्यवस्था के इर्द गिर्द ही घूम रही है।

सर्वोच्च प्रशासनिक सेवाओं में योग्य व्यक्तियों की नियुक्ति का फैसला और फिर उसे आरक्षण व्यवस्था के अनुरूप न पाए जाने को लेकर हाल ही में रद्द की गई लेटरल भर्ती योजना की बात हो या फिर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा हाल ही में निर्णीत एक वाद के आदेश की मुखालफत का जिसमें माननीय अदालत ने वर्षों से चली आ रही आरक्षण व्यवस्था के अभी तक के परिणामों प्रभावों का आकलन विश्लेषण करके आइना दिखा दिया था।  और इस आदेश की प्रतिक्रिया का हाल ये रहा कि केंद्र सरकार और स्वयं प्रधानमंत्री द्वारा ारसखान व्यवस्था को किसी भी प्रकार से कमोज़र न किए जाने की बात कहने के बावजूद भी देश भर में हड़ताल बंद और प्रदर्शन किया गया।

देश का सबसे पुराना राजनैतिक दल और अब विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस के सर्वोसर्वा राहुल गांधी अपनी अतार्किक बातों बयानों में जिस तरह से सरकार से एक एक व्यक्ति की जाती पूछने बताने के बालहठ पर अड़े हैं उसकी गंभीरता इसी बात से समझी जा सकती है की वे भारतीय सुंदरियों की विजेताओं की सूची में जाती तलाश रहे थे और  कोई भी आरक्षित जातियों में से क्यों नहीं है , ये सवाल उठा रहे थे।

कुछ वर्षों पूर्व बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी क्रिकेट तथा अन्य खेलों में आरक्षण व्यवस्था को लागू करने की बात कही थी।  ये बातें , बयान , और सोच बताते हैं कि दलितों , वंचितों शोषितों के सामाजिक उत्थान तथा अवसरों में समानता संतुलन के लिए बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर ने जिस आरक्षण व्यवस्था की कल्पना की थी , ये उससे कहीं दूर और अलग है।

देश में पचास वर्षों से अधिक सत्ता और शासन में बैठी कांग्रेस  और इसके नेता वर्तमान में सबसे बड़ी वैचारिक दरिदता से गुजर रहे हैं इसलिए लगातार तीन चुनावों में बुरी तरह हारने के बावजूद भी देश को जबरन जातीय जनगणना करके दिखाने का दवा कर रहे हैं।  कांग्रेस की दिक्कत ये भी है की विपक्ष में उसके साथ बैठे अन्य दुसरे दल , इस मुद्दे पर कांग्रेस के साथ उतनी प्रतिबद्धता से नहीं दिखाई दे रहे हैं।  कोई भी कांग्रेस की आरक्षित जातियों की इस स्व घोषित ठेकेदार बनने से खुश नहीं दिख रहे।

विश्व में भारत , नेपाल , बांग्लादेश जैसे गिनती के दो तीन देशों को छोड़कर आज कोई भी देश समाज सरकार आरक्षण या ऐसी किसी भी व्यवस्था अपने यहाँ अपनाए हुए हैं जिसमें सिर्फ जाती को मेधा और योग्यता के ऊपर वरीयता दी जाती हो।  यहाँ तो जातियों को उपजातियों में बांटने की योजनाएं चल रही हैं।  सबसे बड़ी विडंबना यह है की दशकों से चली आ रही इस विवशता के आकलन विश्लेषण , परिणाम और परिवर्तन को लेकर न्यायपालिका के मंतव्य को समझने के बावजूद आरक्षण व्यवस्था वो घंटी बन गई है जिसे बजाना हर कोई चाहता है , बाँधना कोई नहीं।  

किसी भी देश समाज में सामाजिक समरसता और संतुलन के लिए देश समाज द्वारा प्रयास किया जाना कोई अनुचित प्रयोग नहीं है किन्तु भारतीय समाज को कभी न कभी तो जबरन थामी इस बैसाखी का सहारा छोड़ योग्यता के आधार पर जीना बढ़ना होगा क्यूंकि दुनिया यही कर रही है और यही सबसे उपयुक्त है।

ताज़ा पोस्ट

यह भी पसंद आयेंगे आपको -

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

ई-मेल के जरिये जुड़िये हमसे