प्रदूषण से मरती मिटती दिल्ली

अभी हाल ही में लगभग पांच हज़ार लोगों से पूछा गया कि यदि मौक़ा मिले तो क्या वे राजधानी दिल्ली से किसी दूसरे शहर में स्थाई निवास बनाना चाहेंगे , आश्चर्य नहीं कि 4367 लोगों ने इस प्रश्न का जवाब हाँ में दिया और विशेषकर यदि अभी ऐसा सर्वेक्षण किया जाए तो लगभग सभी यही कहेंगे कि दिल्ली की जहरीली आबोहवा से अब कहीं दूर  ही जाकर रहना भला है।

दिल्ली में पिछली हर सर्दियों की तरह स्कूल , संस्थान , प्रतिष्ठान आदि तमाम बंद किये जा चुके हैं , किसी भी तरह के निर्माण कार्य और पुराने डीजल वाहनों पर भी प्रतिबन्ध लगाया जा चुका है और जब तक कि ईश्वरीय कृपा से बारिश हवा धूप आदि इस प्रदूषण के प्रकोप को थोड़ा सा कम न कर दें तब तक स्थति ऐसी या इससे बदतर  ही रहेगी।  पिछले एक दशक से दिल्ली की कमान संभाल रही और आम साधारण इंसान की खैर फ़िक्र करने वाली आम आदमी पार्टी की सरकार हो या फिर पूरे देश में विकास और बदलाव की बयार बहाने वाली केंद्र सरकार , दोनों ही सरकारें , दिल्ली की हवा पानी नदी सबको अपने एजेंडे से दूर और उपेक्षित रखे हुए हैं उसने दिल्ली और आसपास के क्षेत्र के लिए एक गंभीर  संकट खड़ा कर दिया है।

आज दिल्ली की हवा में , धुँए , धुल और जहरीली गैसों के मिश्रण ने उसे दस सिगरेट पीने के बराबर दूषित कर दिया है और हर साल की तरह सरकार से लेकर अखबार तक और अदालत से लेकर राजनैतिक दिखावट तक सिर्फ चिल्ला चिल्ली मचा रहे  हैं , धरातल पर प्रदूषण को ख़त्म करना तो दूर उसे गम्भीरतापूर्व समझने देखने को तैयार नहीं हैं।

सबसे बड़ी अफ़सोस की बात ये है कि ये समस्या जो अब लाइलाज दिख रही है ये पिछले एक दशक से धीरे धीरे यूँ पैर पसारती जा रही है और सरकार , प्रशासन और सम्बंधित सभी एजेंसियां हर साल हर बार वही घिसे पिटे कारण और उनसे निपटने की गैर प्रभावी उपायों को दिखा बता कर अपने कर्तव्यों की इति कर लेती है।  इस बार हाल ये हो गया है कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय को सख्ती से सरकार को स्कूल कालेज और दफ्तरों को बंद करने को कहा गया है और बिना अनुमति के इन्हें न खोले जाने की ताकीद की गई है।

विश्व में अग्रणी देशों में शुमार किये जावे वाले देश की राजधानी की ऐसी हालत कर उससे अधिक इसे ठीक न किये जा सकने वाली बेबसी सच में ही शर्मनाक है।

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