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दिल्ली में ऑक्सीजन की कमी से हुई मौतों का जिम्मेदार : अरविंद केजरीवाल

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कोई व्यक्ति देश और मोदी विरोध में इतना अंधा कैसे हो सकता है कि अपने साथियों के साथ मिलकर पूरी दुनिया के सामने , लोगों के सामने , टीवी रेडियो , अदालत तक के सामने रो रो और पानी पी पी कर केंद्र सरकार को कोसता है।  जो ऑक्सीजन , जो अस्पताल , जो दवाइयाँ पूरे देश को मिल रही हैं , दी जा रही हैं वो सब कुछ – सभी कुछ ही सिर्फ और सिर्फ दिल्ली को नहीं मिल रही है और उसके अभाव में लोगबाग मारे जा रहे हैं।  और फिर सच सामने आता है कि ये सब जानबूझ कर किया जा रहा है।

इस राजनैतिक दल से जुड़े हुए तमाम , नेता से लेकर उद्योगपति तक अपने घरों , होटलों , दफ्तरों में न सिर्फ ऑक्सीजन सिलेंडर का अनुचित भंडारण करते हैं बल्कि ऐसे समय में भी ज़िंदगी और मौत का सौदा करके पैसे बनाने में लगे हैं।  घिन्न आती है ऐसी सोच और ऐसी मानसिकता पर।  लोगबाग तिल तिल कर तड़पने कर मरने के लिए विवश किये जा रहे हैं।  इसकी कमी जानबूझ कर पैदा की जा रही है ?? 

और ये सब किसलिए -सिर्फ इसलिए की केंद्र सरकार को बदनाम किया जा सके , उस केंद्र सरकार को जिसने कोरोना के पहले प्रवाह से लेकर अब इस दूसरी लहर तक , खुद और सेना , अन्य सुरक्षा दलों के साथ मिल कर हमेशा ही दिल्ली को इस संकट से उबारा है।

जिस सरकार को छ माह पूर्व ही , इस त्रासदी के लिए संभावित तैयारी करने हेतु ऑक्सीजन प्लांट लगाने के लिए पैसा और मंजूरी मिल गई थी वो सरकार , पूरे 250 करोड़ रूपए अपने उल जलूल विज्ञापनों पर फूँकती रही , देश और दुनिया को ये बताती रही कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी द्वारा स्थापित और संचालित मुहल्ला क्लीनिकों ने तो राजधानी की स्वास्थ्य व्यवस्था में एक चमत्कारिक परिवर्तन ला दिया है।  वो सरकार समय पड़ने पर ये कह कर हाथ खड़े कर देती है कि न ऑक्सीजन प्लांट है , न ही उन्हें आयात करने के लिए वाहन , और तो और उपलब्ध कराए गए ऑक्सीजन के भंडारण के लिए भी सरकार के पास कोई स्थान नहीं है।

अदालतें जो इन दिनों लगातार अपने अलग अलग निर्णयों और रुख से बार बार सब कुछ सुलझाने की बजाय उलटा अपने दंडात्मक रवैये से सब कुछ उलझाए बैठी है।  किसान आंदोलन पर कुछ और रुख तो , चुनावों पर कुछ और , ऑक्सीजन उपलब्धता पर कुछ और निर्णय तो टीकाकरण पर कुछ और।

आज कांग्रेस नेता संदीप दीक्षित ने स्पष्ट शब्दों में दिल्ली के मुख्यमंत्री को पिछले दिनों कोरोना के कारण अस्पतालों में उत्पन्न अव्यवस्था कर ऑक्सीजन की कमी से मारे गए सभी लोगों की ह्त्या का जिम्मेदार ठहराते हुए केजरीवाल पर मुकदमा चला कर गिरफ्तार करने की माँग रखी है और यही बात आज एक आम दिल्ली वासी के मन में भी है।

केजरीवाल में किसी तरह की नैतिकता और ग्लानि गलती के बोध की अपेक्षा रखना बेमानी है किन्तु , ऐसे समय में लोगों की जान के साथ खिलवाड़ करने वाले आम आदमी पार्टी के नेता और व्यापारी साथियों के साथ कैसा व्यवहार किया जाना चाहिए ये बताने पूछने की जरूरत नहीं है। कुछ न हो सके तो इन्हें उन तमाम लोगों के हवाले कर दें जिनके परिजनों ने पिछले दिनों इनके अपराध के कारण अपनी जान से हाथ धो लिए।

 

पौधों की सिंचाई -बागवानी की एक खूबसूरत कला – बागवानी मन्त्र

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बागवानी के अपने पिछले 15  वर्षों से अधिक के अनुभव को साझा करते हुए मैंने पिछली पोस्टों में बताया था कि , बागवानी में मौसम , मिट्टी , गमले , पौधे और निराई गुड़ाई का क्या कितना कैसा उपयोग और महत्त्व है।  आप सबके प्रश्नों , जिज्ञासाओं , समस्याओं को पढ़ते समझते उन पर विमर्श करते बहुत कुछ सीख और समझ रहा हूँ।

चलिए साप्ताहिक पोस्ट में और बागवानी मन्त्र की इस कड़ी में हम आज बात करेंगे -सिंचाई की।  पौधों में पानी डालना।  लो बस इतने से काम के लिए क्या सीखना समझना ?? जो इस काम को इतना सा काम समझते हैं उनके लिए बस इतना ही कि , बागवानी में पौधों की देखभाल और समुचित विकास के लिए पानी डालना और वो भी संतुलित ,नियंत्रित और कायदे से डालना सबसे ज्यादा जरूरी है नहीं तो आपकी बागवानी का पूरा काम ही हो जाएगा।

हर पौधे , गमले , स्थान ,  (धूप और छाया का अनुपात , इनडोर पौधों में तो ये सबसे ज्यादा जरुरी है ) ,मिट्टी का प्रकार, पर निर्भर करता है कि पौधे की सिंचाई में पानी की मात्रा कितनी कम या ज्यादा रखनी होगी।  ये बहुत कठिन भी नहीं है , गमले की मिटटी में नमी बनी रहे , यही बुनियादी शर्त है और इसके लिए मिटटी की निराई गुड़ाई लगातार की जानी जरूरी होती है ताकि पानी नीचे तक पहुँच सके और जड़ों को देर तक जल पोषण मिलता रहे।

पानी देने का सर्वोत्तम समय – तेज़ , तीखी धूप को छोड़कर कभी भी। और पौधों की जरूरत के अनुरूप ही।  उदाहरण के लिए  दिल्ली में इस अत्यधिक गर्मी वाले मौसम में -चन्द्रकान्ति उर्फ़ संध्या के पौधे में मुझे चार चार बार पानी देना पड़ता है , और अक्सर मैं पौधों में रात को भी पानी डाल देता हूँ जो किसी भी तरह से बेहतर विकल्प नहीं होता ,मगर पौधों के जीवन को बचाने के लिए और सुबह तक पूरी तरह से झुलस जाने से बचाने के लिये ऐसा करना पड़ता है कई बार।  फिर भी अँधेरे में पौधों में पानी देने से यथासंभव बचना चाहिए।

पानी हमेशा जड़ों में डालना चाहिए , अक्सर ऐसा होता है कि पानी देने वाले खड़े खड़े सीधा पाइप लेकर पौधों की जड़ों में तेज़ धार से भी पानी डालते हैं जो ठीक नहीं होता।  पानी हमेशा गमले के बिलकुल करीब जाकर और झुककर डालें।  विशेष सावधानी ये कि , कलियाँ ,फूल , फल और पौधे के शीर्ष पर पानी नहीं डाला जाना चाहिए , यदि बहुत जरुरी लगे तो छिड़काव ही किया जाना चाहिए।

जिस तरह पानी की कमी पौधे के विकास और जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है ठीक वैसा ही दुष्प्रभाव पौधे की जड़ में पानी की अधिकता के कारण भी पड़ता है।  गमलों में बागवानी करने सहित क्यारी में बागवानी करने वालों को भी इस बात की सावधानी रखनी चाहिए।  अक्सर कई मित्र भूलवश गमलों में पानी की निकासी के लिए कोई छिद्र आदि बनाना या फिर उस गमले में मिटटी भरते समय उस छिद्र पर मिट्टी पूरी तरह आ कर उसे दबा न दे इसके लिए एक गिटक का इस्तेमाल नहीं करते हैं।  नतीजा पौधे की जड़ में गलन शुरू हो जाती है।

बहुत सारे कीटनाशक , उर्वरक आदि जो भी जल मिश्रित छिड़काव प्रणाली से दिए जाते हैं उनमें पानी के साथ उनका अनुपात और छिड़काव करते समय बरती जानी वाली सावधानियों को ध्यान में रखा जाना आवश्यक होता है।

मेरी छत पर बनी क्यारियों में पहले वर्ष इतना वर्षा जल संचयित हो गया गया कि , बहुत मुशिकल से पौधों की जान बचाई , सीलन का ख़तरा अलग बन गया।  फिर अतिरिक्त पानी की निकासी के लिए क्यारियों में ड्रिलिंग करवा कर पाइप के टुकड़े लगवाए और ऊपर शेड्स भी।

आखिर में बस ये समझिये कि , पानी पौधों के लिए सबसे अच्छा टॉनिक है , भोजन तो है ही।  आज इतना ही , अपनी जिज्ञासा आप यहां साझा कर सकते हैं।  तो बागवानी करते रहिये और हमेशा हरे भरे रहिये।

वेंटिलेटर पर रखी चिकित्सा व्यवस्था

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दशकों बाद कोई बहुत बड़ी विपत्ति या आपदा कहूँ विकराल रूप लेकर देश दुनिया और समाज को लीलने को खड़ी हो गई है . समस्या ये कि ऐसी सभी त्रासदियों से और इनके होने के बावजूद कभी कोई सबक नहीं सीखा जाता . ये कितनी निराशाजनक और चिंताजनक बात है कि विरासत और विलासिता के प्रतिरूप असंख्य चमत्कारिक भवनों के होने के बावजूद आज आज़ादी के 70 वर्षों तक निरंतर निर्माणों के होते रहने के बाद भी चिकित्सा के लिए स्थान मुहैया कराने वाले अस्पताल और चिकित्सा ससंथान ही कम पड़  गए हैं।

हालांकि चिकित्सक विशेषज्ञों का मत है की इस तरहकी चिकित्स्कीय आपातकाल की कल्पना कभी किसी देश समाज में नहींकी जा सकती थी और कितनी भी तैयारियां की जाएँ इस तरह की बड़ी आपदाओं/बीमारियों के समय वो नाकाफी साबित होते हैं।  किन्तु ये उतना भी सच नहीं लगता है।  जिस देश में आए दिन प्राकृतिक आपदाओं के साथ मानवीय जनित हादसों /दुर्घटनाओं का प्रवाह बना रहता है और पिछले कुछ समय में तो इनकी तीव्रता बढ़ी ही है तो इसके बावजूद भी इंसानों को बचाने।/बचा सकने लायक जरूरी और बुनियादी जरूरतों पर भी अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है।

इन सबके बावजूद भी जब भी आम लोगों की जान बचाने का समय आता है तो व्यवस्था ये तक सुनिश्चित नहीं कर पाती , और जिसका परिणाम ये निकलता है कि , कहीं अस्पतालों में पीड़ित मरीज़ ज़िंदा जल कर मर जा रहे हैं तो पूरे देश में प्राण वायु ऑक्सीजन की आपूर्ति न हो पाने के कारण अब तक तक सैकड़ों मरीज़ इसके अभाव में ही दम तोड़ गए।

ठीक तब जब व्यवस्था का संचालन अपने उच्चतम स्तर पर होना चाहिए ठीक उसी समय देश की चिकित्सा व्यवस्था मरणासन्न अवस्था में पहुंची हुई है और कहीं कहीं तो उसका दाह संस्कार भी हो गया है।  हालत उन महानगरों की  विनाशक हो चुकी है जिनके करता धर्ता करोड़ों रूपए खर्च करके दिन रात बताते रहे पिछले छ सालों से कि उनके मुहल्लों में खुले क्लिनिक की चर्चा अमरीका तक है और दूसरे वो जिन्होंने शुरू में ही कह दिया था कि और भी काम हैं ,ट्विट्टर , न्यूज चैनल वाले झगडे से लेकर गृह मंत्री तक उगाही के काम में मशगूल हैं इसलिए आप अपने अपने परिवार का खुद ही देखो।

अफ़सोस है कि ये व्यवस्था हमने खुद खडी की वो भी पिछले 70 वर्षों में , ठीक है माना कि पश्चिमी देशों में कोरोना ने कहर बरपाया मगर कम से कम यहां की तरह चिताओं पर तो धंधा नहीं किया , ऑक्सीजन , बेड , दवाई , इंजेक्शन तक की कालाबाज़ारी की गई और अब भी ये सब बदस्तूर जारी है।  ये हैं हम , हमने असल में ऐसा ही समाज बनाया है अपने लिए।

बीमारी नहीं अव्यवस्था और बदहाली डरा रही है

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अभी बस कुछ दिनों पहले ही ऐसा लगने लगा था मानो , भारत इस कोरोना महामारी के चँगुल से अपेक्षित और अनुमानित नुकसान से कम झेलते हुए बाहर को निकल आया है और ये भी कि वर्ष 2020 के बीत जाने से भी सबको लगा था कि अब तो निश्चय ही हम धीरे धीरे उबर जाएंगे इस संकट से।

और ऐसा सोचने वाले विश्व में सिर्फ अकेले हम नहीं थे , इज़राईल , आस्ट्रेलिया , उत्तर कोरिया आदि बहुत सारे देश अपने यहाँ कोरोना महामारी को बिलकुल ख़त्म करके आगे की ओर बढ़ने की तैयारी में हैं।  मगर अचानक से इस महामारी के नए रूप ने एक बार फिर से देश और दुनिया में दहशत और मौत का ताण्डव शुरू कर दिया है।

हालाँकि पिछ्ले एक वर्ष पहले की स्थिति से तुलना करें तो हम बहुत बेहतर जानकारी और योजना के साथ अब इस बीमारी से निपटने में सक्षम हो चुके हैं।  इलाज के साथ साथ प्रतिरोधी टीकाकरण अभियान भी जोरों शोरों पर है।लेकिन इन सबके बावजूद भारतीय चिकित्सा व्यवस्था में किसी भी आपात स्थिति में उसका पूरी तरह से चरमरा जाना , बेबस , असहाय और लाचार हो जाना बीमारी से ज्यादा दुःखदाई हो जाता है।

इन हालातों  में अक्सर , अस्पतालों , बेड , गहन चिकित्सा केंद्रों , के साथ साथ जब ऑक्सीजन और इंजेक्शन तक की कमी और कालाबाज़ारी जैसी खबरें रोज़ , पल पल आम लोगों को देखने सुनने को मिलती हैं तो इस महामारी के माहौल में वो ज्यादा डराने और निराश करने वाला साबित होता है।

चिकित्सा को धंधा बना कर माफिया की तरह चलाने वाले कुछ व्यापारी चिकित्सक इन हालातों को अपने लिए लॉटरी निकलने जैसा समझ कर सारी नैतिकताओं को ताक पर रख कर बहुत कुछ अमानवीय और गैर कानूनी तक कर डालते हैं।  मृतक को भी गहन चिकित्सा केंद्र में रख कर लाखों रूपए का बिल बना देना , मृतक की देह उनके परिजनों को नहीं सौंपना , दवाई और अन्य ईलाज़ के अधिक पैसे लेना आदि सब कारनामे खूब किए जाते हैं और अब भी वही सब हो रहा है।

अफसोस ये है कि , हर आपदा की तरह इस आपदा की मार भी सबसे अधिक गरीब और मध्यम वर्ग के परिवार लोगों को ही उठानी पड़ेगी और वो उठा ही रहा है।

झूठे दिलासे वाली : मौत की दहलीज़ पर खड़ी दिल्ली

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सुबह साढ़े आठ बजे ही फोन बजने लगता है।  इन दिनों हालात और हाल ऐसे हैं क़ी , असमय और अकारण ही किसी का भी नाम फोन पर चमकते ही एक अनजान सा डर फोन की रिंग के साथ धड़कने लगता है।

दूसरी तरफ से एक सहकर्मी की मरी मरी सी आवाज़ , सर छोटे भाई की मिसेज अस्पताल में भर्ती है कोई इंजेक्शन बता रहे हैं , वो कहीं भी उपलब्ध नहीं हो पा रही है।  कोई है आपका , मैं सर फोटो खींच कर भेजता हूँ।  कह रहे हैं ब्लैक हो रही है बहुत ही इफेक्टिव है इसलिए बाजार से गायब कराई जा रही है।

थोड़ी देर बाद , एक रिश्तेदार का फोन। ……पिताजी अस्पताल में भर्ती हैं परसों से ही , ऑक्सीजन लेवल बहुत कम चला गया था।  लेकिन न तो डाक्टर देखने आ रहा है न ही स्थिति में कोई सुधार है।  आप किसी से कहिए न , कोई है क्या मदद करने वाला ?????

आप कैसे मना कर रहे हैं ऐसे कि , कोई बेड खाली नहीं , एडमिट नहीं कर सकते , आपके एप्प पर तो देख कर ही आए थे और ये देखिये , देखिये अभी भी मोबाइल में खाली दिखा रहा है बेड। शोर बढ़ता जा रहा है और चीख पुकार भी।

आज कमोबेश पूरी दिल्ली का यही हाल हो गया है।  आज से ठीक एक साल पहले जब कोरोना महामारी ने अपने खूनी पंजे फैलाना शुरू किया था तब से लेकर अब तक यदि किसी को कोई फर्क नहीं पड़ा तो वो है दिल्ली सरकार।  ज्यादा मामले बढे तो भाग कर पहुँच गए केंद्र सरकार के पास , और सँभलते ही अपना प्रचार प्रसार शुरू।

एक समय जब ऐसा लगाने लगा था कि कोरोना अब कम से कम भारत में तो लोगों को और अधिक डराने मारने में सफल नहीं हो पाएगा और ज़िंदगी दोबारा से पटरी पर लौटने लगी ही थी कि ऐसा लगा मानों को चार कदम पीछे हट कर दुगुने वेग से आठ कदम आगे आ गया है।  आज चारों तरह हाहाकार मचा हुआ है।

अस्पताल , डाक्टर , व्यवस्था , दवाइयाँ सब बेबस असहाय से होकर रह गए हैं और इन सबके बीच सबसे अधिक दुख दाई स्थिति उनकी है जो अपने इन राजनेताओं के बड़े बड़े वादों कर झूठे दिलासों के भरोसे बैठे रहे आज वो इसकी कीमत अपनी जान देकर चुका रहे हैं।

आसान है सब्जियों की बागवानी : बागवानीमन्त्र

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बागवानी अक्सर फूल या बिना फूल के खूबसूरत पौधों के आकर्षण में शुरू की जाती है मगर फिर कब आपको इन फूल पौधों और गमलों की खाली पड़ी मिट्टी से एक स्नेह हो जाता है , एक रिश्ता जुड़ जाता है , ये आपको पता भी नहीं चलता .

फूलों के बाद अगली कोशिश , आम तौर पर फल उगाने की होती है या फिर साग सब्जी . बागवानी के अपने अनुभव के आधार पर कहूँ तो साग सब्जी उगाना बागवानी के कुछ सरलतम पाठों में से एक है .

अक्सर बागवानी में हाथ आजमाने वाले मित्रों को मेरा यही कहना होता है कि , जब खुद बागवानी शुरू करने का मन करे , मिट्टी में हाथ और खुरपी चलाने की हसरत हिलोरें मारने लगे तो , कुछ मत करिए , रसोई घर में घुसिए .

जितने भी जो भी साबुत मसाले , धनिया , लहसुन , मेथी , मिर्च ,और जाने क्या क्या सब कुछ एक एक चुटकी ले आइए और शुरू हो जाइये .

फल और फूल की तरह इनमें भी , ये बात कि गमला कैसा होना चाहिए ये इस बात पर निर्भर करता है कि , लगाया या बोया क्या जाना है . धनिया पालक मेथी चौलाई पुदीना आदि तमाम साग पात के लिए गमले चौड़े और मिर्च टमाटर प्याज लहसन आलू बैंगन के लिए गमले गहरे हों तो बहुत बेहतर रहता है .

सब्जियों की बागवानी की एक खूबसूरत बात ये है कि आप सालों भर कोई न कोई सब्जी लगाई जा सकती है और बहुत सारी सब्जियाँ तो वर्ष भर उगाई खाई जा सकती हैं .बस सावधानी ये रखनी है कि मौसम के अनुकूल और अनुसार ही सब्जियों की बागवानी की जानी चाहिए .

क्या एक छोटे परिवार के उपयोग लायक सब्जियाँ उगाई जा सकती हैं ??? -हाँ , बहुत आराम से . यदि नियोजित तरीके से बागवानी की जाए तो बहुत आसानी से ये किया जा सकता है . हाँ धूप , सब्जियों की खेती का एक महत्वपूर्ण और जरूरी तत्व है .मगर कम धूप में भी बहुत कुछ उगाया लगाया जा सकता है .

बीज , मिट्टी , खाद , गमले और उगाने , लगाने के सारे उपाय भी , सब कुछ यहीं अंतर्जाल पर सहज ही उपलब्ध है .ये समझिए की धान गेहूँ को छोड़कर सब कुछ उगाया लगाया जा सकता है और ये कोई भी कर सकता है .

इस हिसाब से मकबूल फ़िदा हुसैन के लिए क्या सजा मुकर्रर की जानी चाहिए थी ????

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तन से जुदा , मन से जुदा , बस एक इसी में तो बचा है खुदा।

कुछ यही मंसूबा और अपने माथे पर नारा ए तकबीर ,अपनी खंज़रों ,तलवारों पर लिखकर घूमने वालों से सिर्फ इतना पूछा जाना चाहिए कि यदि _______की शान में कुछ कहना क्या सोचना तक गुनाहे अजीम है और उससे क़यामत आ जाती है तो इस हिसाब से उस कमज़र्फ मकबूल के लिए क्या सज़ा तय की जानी चाहिए थी जो अपनी दो कौड़ी की फूहड़ता को अपनी कुत्सित सोच में रंग कर हिन्दू देवियों की अपमानजनक तस्वीरें उकेरी थीं।

अभी दो महीने पूर्व ही दर्जन भर सिरफिरे बदजुबान कर हिन्दू देवी देवताओं , परम्पराओं ,मान्यताओं का उपहास उड़ा कर अपनी रोजी रोटी कमाने वाले भिखमंगे अदालत से “आजादी -आजादी ” कहते एड़ियाँ रगड़ रहे थे -किसी ने मंदिर में कुकर्म दिखाने की साजिश , तो कोई देवी देवताओं को ही निशाने पर लेकर फूहड़ता कर रहा है , अपमानजनक भाषा कर शब्दों का प्रयोग कर रहा है फिर चाहे वो पी के में आमिर खान हो या वो दो टके का अली अब्बास।

ये जोश उस वटक क्यों नहीं उबाल मारता है तुम्हारा भई ओवैसी  , अमानतुल्ला जब कबीलाई वहशी भीड़ बन कर किसी मंदिर कसबे , मोहल्ले पर उसी तरह टूट पड़ते हो जैसे गिद्ध के झुण्ड लाशों पर मंडरा कर टूट पड़ते हैं।  पहले से ही आने वाली नस्लों को दूध के साथ मज़्हबाई उन्माद का रक्तपान कराते हुए बकौल तुम्हारे ही पूरी दुनिया में 56 देश हैं , मगर नाजुक इतने कि ऊँगली दिखाने से मुरझाने का ख़तरा हो जाता है।  अपना मन करे तो सड़क पर आ लोटो और न मन करे तो नकाब बुर्का और जाने कितने परदों में ढका छिपा कर रखो मगर दूसरों के , देवी देवताओं , मंदिरों , मूर्तियों और पुजारियों सबको “तन से जुदा” , माशाअल्लाह क्या तरकीब है , क्यों ???

दुनिया सीखते समझते सभ्य हो गई कम से कम वहशी जहालत से एक दूसरे को ही मारने काटने वाली कबीलाई मानसिकता से बाहर निकल गई मगर तुम दिनोंदिन बदतर होते चले गए।  जाने कितने सालों , दशकों , शताब्दियों पहले शुरू हुआ ये वहशी कत्ले आम का ख़त्म होना , या कम होना तो दूर अब तो ये वहशत दीवानगी की हद तक जा पहुँचीं है।

गर्मियों में अपने पौधों को ऐसे बचा सकते हैं आप _बागवानी मन्त्र

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#बागवानीमन्त्र
जुलाई से पहले या कहें किः ग्रीष्म ऋतू के ढलने तक और वर्षा ऋतु के आगमन तक बागवानी शुरू करने के इच्छुक तमाम मित्रों को जरूर रुकना चाहिए।  विशेषकर वे जो मैदानी क्षेत्रों में और छत /बालकनी ,प्रांगण में गमलों में बागवानी करना चाहते हैं।

बागवानी कर रहे वे मित्र जो छतों बालकनी में पौधे लगाए हुए हैं उनके लिए ये समय है अपने गमलों के स्थान को बदलने का।  बहुत तेज़ तीखी धूप पूरे दिन न पड़ती रहे , बस उसका विकल्प तलाशना है।  सीढ़ियों , कमरों ,छाएदार कोनों जहां जिसे रखा जा सके उसे वहां रखना ही ठीक रहता है।

जितना अधिक संभव हो सके पौधों को एक दूसरे के नज़दीक चिपका चिपका कर रखना गर्मियों में पौधों के लिए लाभदायी और सुरक्षित हो जाता है।  एक दूसरे की ओट में न सिर्फ उनकी जड़ों में नमीं बनी रहती है बल्कि वाष्पीकरण से हवा में उत्पन्न नमी भी सभी को मिल जाती है।  बड़े पौधों की छाया छोटों को मिल जाती है वो अलग।

गर्मियों में बेलदार पौधे लगाने का दोहरा लाभ होता है , एक इसकी जड़ों में व्याप्त नमी ही इनके पोषण और अच्छी धूप इनके विकास के लिए अनिवार्य होता है इसलिए अपेक्षाकृत ग्रीष्मकाल के लिए सर्वथा अनुकूल , घीया , तोरी , करेला , सीताफल , खीरा , फूलों में अपराजिता , मधुमालती , आदि।  बेलों के पत्तों में जल की प्रचुरता होने के कारण नीचे तथा उनके आसपास का स्थान यहां तक की दीवारों तक पर वे नमी छोटे हैं।  इससे आसपास के पौधों को हवा में जरुरी नमी मिलती रहती है।

#जड़ों में नमी बनाए  उपाय -देखिये भयंकर गर्मी में गमलों के पौधों को छत बालकनी में ही रखे रहने के बावजूद भी झुलसने , मरने से बचाने के लिए ,स अबसे बड़ा नियम है , जितनी बार डाल सकते हैं उतनी बार पानी डालें , नमी बनी रहे और जड़ों की मिट्टी गीली रहे।

अब  इसके लिए आप खुद तत्पर होते हैं , समय निकाल पाते हैं कई तरह के उपलब्ध जुगाड़/तकनीक में से कोई अपना लेते हैं ,करते हैं ये जरूर मायने रखता है।  सबसे सरल होता है ये कि पौधों की जड़ों में पत्तों की एक ऎसी तह बिछा कर रखना जो गमले में डाले गए पानी के वाष्पीकरण की रफ़्तार को बहुत धीमा कर दे।

तीन दिन में एक बार पौधों की जड़ों में खूब सारा यानी एक ही दो राउंड या तीन भी , जब तक गमले में मिट्टी पानी को तुरंत सोखना न बंद कर दे या कहा जाए की मिट्टी संतृप्त हो जाए तब तक पानी डालना ठीक रहता है।

सुबह धूप के तेज़ होने से पहले और शाम को तपिश कम होने तक का समय पौधों को सींचने के लिए सर्वथा उत्तम माना गया है।  गर्मियों में कई बार तो मैं देर रात भी पौधों में पानी डालता हूँ।

गर्मियों में नए प्रयोग वाली बागवानी से यथासंभव बचा जाना चाहिए और कृत्रिम उर्वरक का प्रयोग बिलकुल नहीं करना ही श्रेयस्कर होता है।  कई बार रसायनों की उच्च प्रतिक्रया पौधे पर प्रतिकूल प्रभाव छोड़ देती है।

एक आखरी बात , किती ही कोशिशों के बावजूद भी पौधे ख़त्म हो जाते हैं तो आने वाली बारिशों में उस गमले में कोई दूसरा जादू उगाने का अवसर मिलने जा रहा है आपको , बागवानी करने वालों को हमेशा यही सोचना चाहिए।

 

 

निराई गुड़ाई की बहुत अहमियत है बागवानी में

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बागवानी मन्त्र

चलिए आज की इस कड़ी में हम बात करेंगे बागवानी से जुड़े उस विषय की जो होता तो सबसे जरूरी है मगर आश्चर्यजनक रूप से सबसे अधिक उपेक्षित विषय है और वो है जड़ों की निराई गुड़ाई , जड़ों की मिट्टी का ऊपर नीचे किया जाना।  पिताजी किसान थे , वे अक्सर कहा करते थे जिस तरह सुबह उठ कर फेफड़ों की सफाई के लिए श्वास नलिका और नासिका में अवरुद्ध पित्त्त कफ्फ़ को साफ़ रख कर हम नित्य उन्हें अवरोध मुक्त रखते हैं इसी तरह से पौधों की जड़ों तक हवा ,पानी ,नमी और धूप के संतुलित आहार के लिए पौधों का निराई गुड़ाई बहुत जरूरी बात है।

मैंने अनुभव किया है और देखा पाया है कि अधिकाँश मित्र अक्सर जाने अनजाने पौधे के  ऊपरी हिस्से पर बहुत अधिक श्रम और ध्यान देते हैं मगर अपेक्षाकृत- जड़ों की तरफ उदासीनता बनी रह जाती है बेशक कई बार ये जानकारी न होने के कारण भी होता है।

यदि मैं पूछूँ कि , आप अपने पौधों की जड़ों की मिट्टी को कितनी बार हाथ से छू कर देखते हैं , मौसम के अनुसार क्या आपको उनमें बदलाव महसूस होता है , क्या आपने सुनिश्चित किया है कि गमले में जितना पानी आप दे रहे हैं उसकी नमी उस गमले की सबसे नीचे की आखरी जड़ों और रेशों तक पहुँच रही है , जड़ों में अक्सर लग जाने वाली चीटीयों और अनेक तरह के कीटों का सबसे सटीक उपाय और इलाज – निराई गुड़ाई है।  यदि मैं कहूँ कि मैं अपने पौधों में हर दूसरे दिन निराई गुड़ाई करता हूँ और क्यारियों में हर चौथे पाँचवे दिन तो शायद बहुत से दोस्तों को नई बात लगेगी क्यूंकि बकौल उनके वे सप्ताह या पंद्रह दिन में एक बार निराई गुड़ाई करते हैं।

निराई गुड़ाई जितनी जरूरी और लाभदायक नन्हें छोटे पौधों के लिए होती है उतनी ही जरुरी बड़े बड़े वृक्षों विशेषकर फल देने वालों के लिए भी होती है।  आम लीची केले के बागानों में अक्सर जड़ों की निराई गुड़ाई और जड़ों की मिट्ठी दुरुस्त किए जाने का काम होता है।  खीरे , कद्दू, लौकी , आदि तमाम बेलों की जड़ों पर अच्छी तरह से मिट्ठी चढ़ाते रहने का काम जरूरी होता है अन्यथा जड़ें कमज़ोर होकर गलने लगती हैं और कई बार बेलों के अकारण खिंच जाने से टूट भी जाती हैं।

धनिया ,पुदीना , पालक आदि साग पात में निराई गुड़ाई की गुंजाइश सिर्फ क्यारियों में ही उचित होती है गमलों में नहीं और अमरूद आँवला की जड़ें रेशेदार होती हैं इसलिए खुरपी चलाते समय ये डर न हो कि मिट्टी ऊपर नीचे करते समय वो रेशे कट रहे हैं। थोड़े दिनों में वे अपने आप अपनी जगह पकड़ लेते हैं।

खाद डालने से पहले निराई गुड़ाई उतनी ही जरुरी और लाभदायक होती है जितनी कि कोई पीने वाली दवाई की शीशी को उपयोग करने से पहले जोर जोर से हिलाना।  खाद चाहे सूखी डालनी हो या गीली घोल वाली , मिटटी की निराई गुड़ाई किए रहने से वो जड़ों तक अधिक तेज़ी और प्रभावी रूप में पहुंचती है।

अब कुछ ध्यान देने वाली बातें , बरसातों में यथासंभव निराई गुड़ाई नहीं की जानी चाहिए जब तक कि जड़ों में अतिरिक्त पानी जमा होकर जड़ों को नुकसान पहुंचाने की संभावना न हो जाए।  निराई गुड़ाई इस तरह से बिलकुल न करें कि जड़ों में अपना घर बनाए केंचुए और जोंक सरीखे मिटटी की उर्वरा शक्ति बढ़ाने वाले जीव जंतु परेशान हों , उन गमलों में निराई गुड़ाई की जरुरत नहीं जीव खुद ब खुद कर लेते हैं

निराई गुड़ाई करें किससे -सबसे मजेदार उत्तर।  किसी भी चीज़ से , खुरपी से लेकर चमच्च और कई बार काँटे छुरी तक से वैसे कायदे से तो ग्लव्स पहन कर पतली खुरपी से किया जाना चाहिए यही सुरक्षित भी होता है मगर जरूरी है की आप करें यदि ये न भी उपलब्ध हों तो भी

तो सबसे बड़े काफ़िर घोषित हो गए वसीम रिज़वी

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आज वसीम रिज़वी का नाम देश ही नहीं बल्कि दुनिया भर की मुगलिया रियाया में नफरत और हिकारत से लिया जा रहा है . कोई ज़हर भरे बोल से उन्हें बद्दुआ दे रहा है . तो कोई गर्दन उड़ा देने की धमकी दे रहा है , और तो और उनके अपने परिवार वाले , बीवी , बच्चे तक सभी वसीम को छोड़कर चले गए .

आखिर उनका गुनाह भी था इतना बड़ा -इतना भयंकर कि जिसकी कल्पना करना भी दुरूह है . फिर क्यों न हो ? जहां एक कार्टून बनाने वाले को , उस कानून को चित्रित , प्रदर्शित करने वाले को इसके लिए ऊके पूरे देश को आतंकित किया जा सकता है , लोगों का गला रेता जा सकता है और मासूम बेगुनाहों पर ट्रक बस चढ़ाया जा सकता है तो फिर तो उस आसमानी किताब में दर्ज किसी भी शब्द , वाक्य , आयात पर सवाल उठाने की. उसमें किसी भी तरह का दोष दिखाने/गिआन की हिमाकत कोई कैसे कर सकता है भला – वो तो शुक्र है कि ये कहने -करने वाला स्वयं उसी सम्प्रदाय से है अन्यथा अभी तक तो जाने क्या क्या न हो गया होता ?? कयामत और जलजला दोनों ही आ चुके होते .

अब जरा इस पहलू पर भी विचार करिए , मज़हबी कट्टरता को ही जीवन का मकसद मां बैठे , और उसके लिए ज़िंदा कौम और पूरी इंसानियत को खलाक कर देने पर उतारू हो जाने वालों में से कोई भी तब कुछ नहीं बोलता करता जब इसी कट्टरता का चोला ओढे , पूरी दुनिया में अन्य मज़हब के मानने वालों को उनके धर्म प्रतीकों के साथ ही खत्म करने की कसमे दिन रात खाई जाती हैं . जब अफगानिस्तान में बुद्ध की मूर्तियां तोड़ी जाती हैं और भारत के अक्षरधाम मंदिर में आतंकी हमला . वो सब कुछ ज़ायज़ है वो सब कुछ मान्य है . 

पूरी दुनिया में अब भी , आज भी जेहाद के नाम पर रोज़ कत्ल किए जा रहे मासूम निर्दोष लोगों के हक में और आत्मघातियों के इन जाहिल कबीलों की मानसिकता पर लानत भेजने के लिए दो अल्फ़ाज़ नहीं निकलते देखा गया कभी . बेशक वसीम रिज़वी ने सर्वोच्च अदालत में एक वाद ससंथापित कर के जो माँग रखी है वो प्रथम दृष्टया न्यायालयीय अधिकारिता से परे विषय है और यदि सच में उन शब्दों , पंक्तियों ,आयतों में कुछ भी त्रुटिपूर्ण , दोषपूर्ण या भ्रामक है तो ये उस समाज को स्वयं तय करना होगा , खुद ही विचार विमर्श करके इसका हल निकलना होगा .