सुबह साढ़े आठ बजे ही फोन बजने लगता है। इन दिनों हालात और हाल ऐसे हैं क़ी , असमय और अकारण ही किसी का भी नाम फोन पर चमकते ही एक अनजान सा डर फोन की रिंग के साथ धड़कने लगता है।
दूसरी तरफ से एक सहकर्मी की मरी मरी सी आवाज़ , सर छोटे भाई की मिसेज अस्पताल में भर्ती है कोई इंजेक्शन बता रहे हैं , वो कहीं भी उपलब्ध नहीं हो पा रही है। कोई है आपका , मैं सर फोटो खींच कर भेजता हूँ। कह रहे हैं ब्लैक हो रही है बहुत ही इफेक्टिव है इसलिए बाजार से गायब कराई जा रही है।
थोड़ी देर बाद , एक रिश्तेदार का फोन। ……पिताजी अस्पताल में भर्ती हैं परसों से ही , ऑक्सीजन लेवल बहुत कम चला गया था। लेकिन न तो डाक्टर देखने आ रहा है न ही स्थिति में कोई सुधार है। आप किसी से कहिए न , कोई है क्या मदद करने वाला ?????
आप कैसे मना कर रहे हैं ऐसे कि , कोई बेड खाली नहीं , एडमिट नहीं कर सकते , आपके एप्प पर तो देख कर ही आए थे और ये देखिये , देखिये अभी भी मोबाइल में खाली दिखा रहा है बेड। शोर बढ़ता जा रहा है और चीख पुकार भी।
आज कमोबेश पूरी दिल्ली का यही हाल हो गया है। आज से ठीक एक साल पहले जब कोरोना महामारी ने अपने खूनी पंजे फैलाना शुरू किया था तब से लेकर अब तक यदि किसी को कोई फर्क नहीं पड़ा तो वो है दिल्ली सरकार। ज्यादा मामले बढे तो भाग कर पहुँच गए केंद्र सरकार के पास , और सँभलते ही अपना प्रचार प्रसार शुरू।
एक समय जब ऐसा लगाने लगा था कि कोरोना अब कम से कम भारत में तो लोगों को और अधिक डराने मारने में सफल नहीं हो पाएगा और ज़िंदगी दोबारा से पटरी पर लौटने लगी ही थी कि ऐसा लगा मानों को चार कदम पीछे हट कर दुगुने वेग से आठ कदम आगे आ गया है। आज चारों तरह हाहाकार मचा हुआ है।