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दो बड़े विधिक परिवर्तन : न्यायिक सुधार की कवायद

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case disposal system

अभी हाल ही में दो अलग अलग वादों पर की जा रही सुनवाई के संदर्भ में संबंधित पक्षों को नोटिस जारी कर सपष्टीकरण माँगा गया है . यह इन मायनों में बहुत गंभीर और महत्वपूर्ण हैं क्योंकि विधिक व्यवस्था में लाए जा रहे सुधार की दिशा में ये दोनों परिवर्तन दूरगामी प्रभाव व परिणाम देने वाले सिद्ध हो सकते हैं .

इनमें से पहला है केंद्र सरकार को , 138 निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट के तहत न्यायालयों में दर्ज और लंबित लाखों मुकदमे , तथा उनकी बढ़ती संख्या के मद्देनज़र इस तरह के वादों के लिए विशेष अदालतों के गठन की दिशा में विचार व कार्ययोजना प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है . असल में इसके पीछे आधार यह दिया गया है कि , चूंकि यह व्यवस्था , चेक लेन -देन , ऋण -अदायगी और भुगतान विषयक सारे वाद व्यवस्था जनित हैं इसलिए इनसे उत्पन्न वादों के निस्तारण के लिए विशेष प्रयास भी सरकार को ही करना अपेक्षित है . 

दूसरी व्यवस्था जिसमें नए परिवर्तन संभावनाओं पर विमर्श चल रहा है , वो है पुलिस जाँच /अन्वेषण को और अधिक प्रामाणिक/विधिक बनाने के लिए एक विधिक /न्यायिक अधिकारी -दंडाधिकारी (जाँच ) -पद/काडर के गठन की संभावनाएं .

पुलिस जांच में अक्सर अनियमितताओं , गलतियों के कारण कई बार अभियोजन कमज़ोर होने से वाद पर प्रतिकूल असर पड़ जाता है इन्हीं कमियों , गलतियों को पुलिस जाँच /अन्वेषण के दौरान ही दुरुस्त किए जाने की जरूरत को ध्यान में रखकर इस विकल्प पर विचार चल रहा है .

अदालतों में बरसों से निस्तारण की बाट जोह रहे करोड़ों मुकदमों को समाप्त करने में ये नए ने प्रयोग क्या और कितने सफल हो पाएंगे , ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा .

पत्रकारों पर हमले की समाजवादी परंपरा

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अभी दो दिन पूर्व अपने पिता जी के राजनैतिक शुचितापूर्ण व्यवहार की पुनरावृत्ति करते हुए युवा राजनेता और सपा के लोकप्रिय भैया जी अखिलेश ने भी विरोधी खेमे का करार देकर पत्रकारों पर अपनी खीज़े उतार दी . कुछ वर्षों पहले उनके पिताश्री जी ने एक -उन दिनों पत्रकार , बाद में आप के फेल नेता और आजकल टीवी डिबेट में जलालत झेल रहे एक उजले काले से महोदय के कान के नीचे टिका दिया था . अगले दिन बुला कर पुचकार भी दिया था .

ठीक ऐसा ही कुछ इनके रिश्तेदार और भैया तेजस्वी यादव की प्रेस वार्ता के दौरान भी कई बार किया/कराया जाता रहा है . सवाल ये है कि आखिर पत्रकारों के सवालों तक से असहज होकर उनके साथ मार -पीट तक कर बैठने वाले कैसे , आखिर किस मुँह से खुद को सार्वजनिक प्रतिनिधि कह बोल पाते हैं ??

ताज़ा स्थिति ये है कि दोनों पक्षों , यानि पत्रकार वार्ता के लिए आमंत्रित करने वाले और जिन्हें बुलाया गया था वो भी , दोनों तरफ से एक दूसरे के साथ मारपीट और बदसलूकी किए जाने का संज्ञान लेकर विधिक कार्यवाही करने की शिकायत/प्रातमिकी दर्ज करवा दी है .

यहाँ एक अहम सवाल ये है कि ऐसे राजनेताओं , जिन्हें आम पत्रकारों की उपस्थिति और प्रश्नों से मात्र इसलिए परेशानी हो जाती है क्योंकि बकौल इनके वो पत्रकार या चैनल किसी दल विशेष का समर्थक या विरोधी है , तो ऐसे में फिर पहले ही इन चैनल और पत्रकारों को अपने यहाँ आने से रोक देना चाहिए , जिसकी हिम्मत वे कभी नहीं दिखा पाते हैं . 

महाराष्ट्र की सत्तासीन पार्टी जो खुद अपना एक स्थानीय अखबार निकालती है वो तक एक निजी समाचार चैनल द्वारा उनके ऊपर आधारित खबरों , घटनाओं , समस्याओं , अपराधों को उठाने के लिये खुद ही उस चैनल और पत्रकारों के विरुद्ध एक अघोषित युद्ध छेड़ बैठे . “सामना” से पूरी दुनिया पर निशाना साधने वाले लोग खुद ही एक समाचार चैनल का सामना नहीं कर सके . 

यहाँ , सोचना तो पत्रकारों को भी चाहिए कि , बार बार मर्यादा लाँघ कर वे अपनी और पत्रकारिता की छवि दोनों को ही भारी नुकसान पहुँचा रहे हैं . खबरों का सरोकार सिर्फ सत्य से होना चाहिए जो अब बाज़ार से तय हो रहा है .

देश छोड़ कर सालों पहले भाग गए अंग्रेज : हाय री किस्मत अब आ गए तैमूर और चंगेज़

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विश्व की कुछ सबसे जरूरी महत्वर्पूण खगोलीय घटनाओं में से एक पिछले दिनों घटी जिसकी प्रतीक्षा कम से कम , खुद को नौटंकी बना चुका मीडिया तो बड़ी बेसब्री से कर ही रहा था . और ये घटना थी नवाब साहब के यहां तैमूर के बाद पैदा होने वाले चश्मो चराग की .

आखिरकार वो दुर्लभतम क्षण भी आ ही गया और मिसेज नवाब बेबो को बेबी हुआ -यानी छोटे नवाब से एक और छोटा नवाब आ गया . पहले वाले छोटे नवाब साब का नाम बड़े ही भारी विचार विमर्श के बाद मुगलिया सल्तनत के परचम को फहराए रखने के लिए दुनिया के कुछ सबसे क्रूरतम और सनकी आक्रमणकारियों में से एक तैमूर लंग से प्रेरणा पाकर तैमूर रखा गया था .

अब जब तैमूरलंग के बाद एक छोटे नवाब और आ गए हैं और दुनिया में “यलगार हो ” का नारा ए तकबीर बुलंद किया ही जा रहा है तो सभी कयास लगा रहे कि यही सही वक्त है कि दुनिया को एक चंगेज़ खान तो अब मिलना ही चईये कि नई ???और आपके हाँ या न से असल में कोई फर्क भी नहीं पड़ने वाला क्योंकि चंगेज़ न आया तो बाबर , औरंगज़ेब कोई न कोई तो आएगा ही . 

तेल देखो और तेल की धार देखो

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पेट्रोल 100 रुपए पार चला गया और ये कयामत से भी ज्यादा भयानक बात है . वो भी उस देश में जो कई बार टमाटर प्याज भी 100 रुपये किलो खा पचा चुका है , तो उस देश में 100 रुपए पेट्रोल हो गया और जब ऐसी अनहोनी घट जाए तो फिर उसका प्रभाव भी हाहाकारी ही साबित होना है .

आपने गौर किया ही होगा कि पेट्रोल की बढ़ी हुई  कीमत के कारण सड़कों पर पसरा हुआ सन्नाटा , बिल्कुल सुनाएं पड़े पेट्रोल पम्प , रास्तों पर ताँगे , टमटम , सायकल रिक्शे आदि चलने लगे हैं , बस कार मोटरसायकिल सब गायब ! क्या कह रहे हैं आप ?? ऐसा नहीं हुआ है बल्कि दिन रात सड़कों की छाती रौंदते पेट्रोल पीकर ज़हर उगलते वाहन अब भी और यदि पेट्रोल 500 रुपए प्रति लीटर हो जाए तो भी ये रेलम पेल यूं ही बदस्तूर चलते रहेगा . 

ज़रा सा , बस थोड़ा सा पीछे जाकर वो समय और उस समय ज़ाहिर की गई खुशी की भी एक बार कल्पना करिए कि जब देशबंदी के कारण सारा आवागमन रुक गया था . हवा में धुआँ और ज़हर घुलना बंद होते ही कैसे कुदरत ने थोड़े समय के लिए ही सही प्रदूषण के घुटन से फुर्सत पाई थी .

ऐसे समय में जब भारत देश के प्रधानमंत्री मोदी , पूर्ववर्ती सरकारों को ऊर्ज़ा के खपत के लिए 70 वर्षों तक निरंतर अपनी निर्भरता और आयात बढ़ाकर अन्य वैकल्पिक ऊर्ज़ा स्रोतों की भयंकर उपेक्षा से जो स्थिति बना दी है . ये सब उसी का परिणाम है .

देश में लगातार बढ़ते वाहनों की संख्या , अंतरराष्ट्रीय हालातों में तेल उत्पादक व वितरक देशों के बीच बदलता हुआ समीकरण और सबसे ज्यादा कोरोना के कारण पूरी तरह चरमराई वैशिवक अर्थव्यवस्था के कारण यदि पेट्रोलियम तेल के पदार्थों में वृद्धि होती भी है तो इसके लिए सिर्फ केंद्र सरकार को ही कैसे दोषी ठहराया जा सकता है . तो तब तक , तेल देखिए और तेल की धार देखिए . हैं जी

कौआ उड़ , तोता उड़ : संसद में खेलता एक कबूतर बाज

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संसद में हमेशा अपने अलग अलग करतबों से दुनिया को अपनी काबलियत का परिचय देने वाला गाँधी परिवार और कांग्रेस की सल्तनत के आखिरी राजकुमार जनाब राहुल गाँधी जी ने हाल ही में लोकसभा में “कौआ उड़ , तोता उड़ , कौआ उठ , तोता उठ ” नामक लोकप्रिय खेल खेला।

कभी फर्रे  लेकर पढ़ते हुए तो कभी आँख मार कर , कभी संसद सत्र के दौरान झपकी लेते हुए तो कभी अपने हाथ के इशारे से साथी सांसदों को उठ बैठ करवाते हुए।  संसदीय कार्य प्रणाली , नियम , नीतियाँ , संसदीय भाषा व्यवहार और गरिमा -इन सबसे तो दूर दूर तक भी कोई सरोकार नहीं है कांग्रेस नेता को।

अब जिस सेना के कप्तान की चाल ही अढ़ाई घर के गर्दभ वाली तो फिर उनको सर माथे बिठाए उनकी मूषक फ़ौज तो उन्हें बैग पाईपर मान कर उनकी बीन पर फिर वही करेगी कहेगी जो वो कहते हैं।

और इनका कसूर भी आखिर क्यूँ मानें।  अगले को पता है कि अगर एक से सौ तक भी गिनने के लिए किसी ने कह तो उसमें भी पिच्चतीस गलतियां कर बैठेंगे तो फिर बजट  जैसे गूढ़ विषय पर अपने पप्पू पने में जो कुछ भी उद्गार व्यक्त करेंगे उसको अगले दस दिनों तक फिर श्री सूजेवाला जी को अपने सूजे हुए विचारों से रफ़ू करते रहना पड़ेगा . 

कांग्रेस की भी जिद है कि चाहे कुछ भी हो जाए बच्चा तो हमरा ऐसे ही खेलेगा और जैसे ही मौका मिलेगा ढेला मार कर भाग जाएगा या फिर हारने की नौबत आते ही तीनों विकेट उखाड़ का भाग निकलेगा . अजी हां .  

आंदोलन के नाम पर अराजकता और हठधर्मिता : आखिर कब तक

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चलिए ,सड़क ,शहर , लालकिले के बाद अब रेल की पटरियों पर आन्दोलनजीवी खेती किए जाने की मुनादी की गई है।  संगठनों ने मिल कर सोचा और फैसला किया है तो जाहिर है पहले की तरह ही कुछ बड़ा सोच कर ही किया होगा।

क्यूंकि गणतंत्र दिवस को ट्रैक्टर रैली निकाल कर किसानों की किस समस्या का कौन सा हल निकला ये बताने समझाने के बदले अगले प्रदर्शन , अशांति , विरोध की नियति तय की जा रही है मानो कोई इवेंट मैनेजमेंट चल रहा हो।

और यदि चल भी रहा हो तो हैरानी कैसी ? जब टूल किट मुहैया कराई जा सकती है तो फिर इवेंट को मैनेज क्यों नहीं ? सरकार खुद संसद में एक एक बात स्पष्ट कर रहीहै , और आपकी भी पता है कि सरकार और प्रधानमंत्री की मंशा सिर्फ और सिर्फ जन कल्याण  की है।  गांव और किसान के प्रति प्रधानमंत्री की दूरदृष्टि , सोच और उनकी योजनाएं ही बताती हैं कि ये सरकार कभी भी किसानों के अहितकर कोई कानून कभी नहीं बनाएगी।

सरकार अगले 18 महीने तक इस नए संशोधन को पूरी तरह स्थगित करके अच्छे विधिक विकल्पों  के लिए वार्ता बातचीत को तैयार है , बार बार न सिर्फ कहा है , बल्कि एक दर्जन बार बैठ कर बही खाते के साथ सब दुरुस्त करने को बैठी है , मगर जब उद्देश्य हठधर्मिता दिखाना है , मीडिया सोशल मीडिया में चेहरा चमकाना और टीवी स्टूडियो में बैठ कर अपनी टीआरपी बढ़वाना हो तो वो फिर आंदोलन बचता ही कहाँ है ??

और असर तो देखिये , शाहीन बाग़ एन्ड कंपनी जी न्यायालय से मांगने कहने गए थे कि हमारे वाले सड़क बंदी में क्या कमी थी हाकिम हमें भी फिर से वही सब। ..हां वही सब करने की परमीसन तो दी ही जाए , अदालत ने मना कर दिया ,ये किस्सा फिर सही।  मगर ये सब आखिर रुकेगा कब ? कब लोग समझना शुरू करेंगे की आज के कठिन समय में सबको अपने अपने हिस्से की जिम्मेदारी उठानी होगी।  ये मांगने से अधिक देश के लिए अपना देने का समय है।

हमरा भेलकम काहे नहीं हुआ जी : ई इंस्लट नहीं न चलेगा हो

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लालू जी बब्बा तनिक बीमार क्या हुए , तेजस्वी भैया बस इत्तु से मार्जिन से चीप मुनिस्टर बनते बनते क्या रह गए , मने ई गुंडागर्दी लोग मचा देगा , कोनो मर्यादा कोनो डिसिप्लीन कुछो नहीं।  पूरा मीडिया उडिया कैमरा भिडीयो लाईभ सब के साथ आए , खबर भी पाहिले ही भेजवा दिए थे मगर देखिये कोई भेलकम करे , अरे ऊ होता है न बुक्का गुलदस्ता वैसा , लेकर नहीं निकला जी -ई तो इंसल्ट न हुआ हमरा जी।  

मने इहे सब लोग है जिनके कारण बाबूजी इतना जोर से बीमार पड़ गए हैं , इहे राजकाज हाथ से निकलता देख कमजोरा गए हैं।  बताइये तो ? पहले भी हमारे चेला लोग को भगा दिहिस है कई बार , कहता है की अपाइंटमेन्ट का पर्ची लेकर ही आना होगा।

अरे बताइये ! कोनो मुनिस्टर मिनिस्ट्री अफसर से मिलने जा रहे हैं क्या जी।  आगे हमरे बिहाफ पे ई हमारा चेला बोलेगा थोड़ी देर रुक कर सोचेंगे कि आगे और क्या क्या बोल कर हड़काना है।

अरे ऊ वाले जमाने का बात ही और होता था , पार्टी प्रसीडेंट लोग भेल्कम करे खड़ा रहता था हमारे -तब का।  बाबूजी का डिसिप्लिन बहुते टाइट था ई मामले में।  फैमिली को तो रिसपेक्सट करना , बोलिये तो मैंडेटरी रूल न था जी।

हम सिटिंग विधायक भी न हैं जी , पब्लिक फीगड़ भी न हुए , ऊ हिसाब से भी जनार्दन बाबू को , हमारे भेल्कम के लिए रहना चाहिए था खासकर जब मीडिया को लेकर आए थे हम।

मिस्टर केजरीवाल : रिंकू की हत्या वाला वीडियो दिखा या नहीं ??

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असल में इतनी बार टीवी , रेडियो ,ऑटो , मेट्रो सब पर देखते सुनते हैं तो एकबारगी थोड़ा अलग सा लगता भी है लेकिन जैसे  ही देखते कि , अंकित शर्मा जैसे जाबांज़ अधिकारी और देश के सच्चे सपूत को चाकुओं से गोद डालने से लेकर रिंकू शर्मा जैसे तरुण की पीठ में छुरा भोंके जाने जैसी तमाम वो वारदातें जिनमें किसी हिन्दू को क़त्ल कर दिया जाता है पर आँख मूँद कर , मुँह सी कर बैठ जाते हैं तोउसी समय आपका असली चरित्र , सत्ता प्रेम और वोटों केलिए तुष्टिकरण की वही घटिया राजनीतिक से लिथड़ा चेहरा दिखाई दे जाता है।

सीएम साब जी ,उस वक्त आपकी नकली ईमानदारी और शराफत उधड़ कर नीचे गिर जाती जब एक खास वीडियो में सिर्फ हिन्दू ही गुंडे अपराधी दिखाई देने लगते हैं आपको . अपनी दिल्ली के आपराधिक मुकदमों और जेलों में निरुद्ध अपराधियों , आरोपियों , विचाराधीन कैदियों को खुद कभी गिन कर , पहचान करके आइए न एक बार . 

सड़ जी , आपने रिंकू की मॉब लिंचिंग वाला वीडियो , गलती से भी देखा तो नहीं न ?? जय श्री राम बोलने के कारण हत्या की गई है तो यकीनन ही आपके वोट बैंक का नहीं होगा इसलिए , हज़ार लाख करोड़ तो दूर , उसके माता पिता से मिल कर ढांढस देना तो दूर , संवेदना या चिंता का एक शब्द भी नहीं निकला मुँह से , इसी को मक्कारी और दोगलापन कहते हैं .

और फिर जरूरत ही क्या है कुछ कहने की ? बेकार में आपके अपने अमानतुल्ला से लेकर ताहिर हुसैन तक , शर्जील इमाम से लेकर उमर खालिद तक सब आपके अपने मुहल्ले , कुनबे और कैडर वाले लोग नाराज़ न हो जाएंगे . लेकिन याद रहे , ये देश सब कुछ देख भी रहा और समझ भी रहा है .

NCC : तरुण देशभक्तों की फ़ौज

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दिल्ली स्थित जनरल करियप्पा ग्राउंड में वार्षिक राष्ट्रीय कैडेट कोर यानी एनसीसी रैली 2021 का आयोजन आज किया जाना प्रस्तावित है । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रैली को संबोधित करेंगे। पीएम मोदी का सुनने के लिए एनसीसी कैडेट्स खासे उत्साहित हैं। साथ में उत्साह है गणतंत्र दिवस परेड के बाद आयोजित होने वाली एनसीसी रैली का। साल 1948 में केवल बीस हजार कैडेट्स के साथ शुरू हुई NCC के आज पूरे देश में करीब 14 लाख से ज्यादा कैडेट्स हैं। प्राकृतिक आपदा हो या स्वच्छ भारत अभियान और पल्स पोलियों जैसी पहल या फिर कोई अन्‍य आपदा आम लोगों की सहायता के लिए एनसीसी कैडेट्स ने हर बार अपने हाथ बढ़ाये हैं। इसका जीता जागता रूप कोविड-19 महामारी के दौरान देखने को मिला, जब कोरोना वॉरियर बनकर एनसीसी कैडेट्स ने लोगों तक मदद पहुंचाई।

NCC का इतिहास

राष्ट्रीय कैडेट कोर यानी NCC सबसे पहले जर्मनी में 1666 में शुरू किया गया था। भारत में राष्ट्रीय कैडेट कोर की स्थापना 16 अप्रैल 1948 में की गई थी। लेकिन इसके तार यूनिवर्सिटी कोर से जुड़ी हैं, जिसे इंडियन डिफ़ेस एक्ट 1917 के तहत बनाया गया था। NCC को सैनिकों की सहायता के उद्देश्य से बनाया गया था। इससे पहले साल 1920 में जब इंडियन टेरिटोरियल एक्ट पारित किया गया तो यूनिवर्सिटी कोर की जगह यूनिवर्सिटी ट्रेनिंग कोर (UTC) ने ले ली। जिसका उद्देश्य था कि UTC का दर्ज़ा बढ़ा दिया जाए और इसे युवाओं के लिए और आकर्षित बनाया जाए। लेकिन युद्ध और आपात काल के लिए इन्हें तैयार करने के लिए एक खास ट्रेनिंग की आवश्यकता के चलते एनसीसी की स्‍थापना की गई। कर्नल गोपाल गुरुनाथ बेवूर को 31 मार्च 1948 को राष्ट्रीय कैडेट कोर का पहला निदेशक बनाया गया। इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है।

महिला कैडेट्स

साल 1948 में एनसीसी गर्ल्स डिविज़न बनाया गया ताकि स्कूल-कॉलेज जाने वाली लड़कियों को बराबरी का मौका दिया जा सके। साल 1950 में एयर विंग बना और 1952 में नेवल विंग। स्कूल-कॉलेज स्तर पर लड़कों की तरह लड़कियां भी एनसीसी ज्वाइन करने के लिए स्वतंत्र हैं। उन्हें भी लड़कों की तरह ट्रेनिंग दी जाती है।

गर्ल्स कैडेट्स की भागीदारी 33% हुई

हाल ही में एनसीसी का विस्तार किया गया है, जिसके तहत एनसीसी में गर्ल्स कैडेट्स की भागीदारी 28 फीसदी से बढ़कर 33 फीसदी हो गई है। इस बात की घोषणा स्‍वयं रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने की। उन्‍होंने कहा कि एनसीसी के माध्यम से महिला सशक्तिकरण की दिशा में हम आगे बढ़ रहे हैं। उन्‍होंने यह भी बताया कि एनसीसी के एक लाख कैडेट विस्तार योजना के तहत फॉरवर्ड और तटीय क्षेत्रों के 1104 स्कूल और कॉलेजों को एनसीसी आवंटित की गई है।

एनसीसी की पहचान

एनसीस में शामिल कैडेट्स के लिए खाकी वर्दी ड्रेस होती है। ‘एकता और अनुशासन’ कोर का आदर्श वाक्य है। NCC के झंडे में तीनों सेनाओं को प्रदर्शित करते तीन रंग होते हैं। लाल आर्मी के लिए, गहरा नीला नेवी के लिए और हल्का नीला वायुसेना के लिए। भारत में राष्ट्रीय कैडेट कोर के माध्यम से विद्यालयों, महाविद्यालयों और पूरे भारत में विश्वविद्यालयों के कैडेटों को छोटे-युद्ध अभ्यास और परेड में बुनियादी सैन्य प्रशिक्षण, खेल-कूद प्रदान करता है।

युद्ध में जवानों के साथ लिया था हिस्सा

1965 और 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध के दौरान एनसीसी कैडेट सुरक्षा की दूसरी कतार के रूप में काम किया। उन्होंने सामने से हथियार और गोला बारूद की आपूर्ति, आयुध कारखानों की सहायता के लिए शिविर का आयोजन किया और भी दुश्मन पैराट्रूपर्स पर कब्जा करने के लिए गश्ती दल के रूप में काम किया। इसके अलावा एनसीसी के कैडट्स का सेना में शामिल होना बदस्तूर जारी है। एनसीसी कैडेट्स को सेना में प्रवेश के समय विशेष वरियता भी दी जाती है। NCC युवाओं में चरित्र, मिल-जुलकर काम करने की क्षमता का विकास करती है। इसके अलावा NCC युवाओं में नेतृत्व की क्षमता और सेवा की भावना भी विकसित करता है। यह युवाओं को सैन्य प्रशिक्षण देकर पहले से तैयार एक रिज़र्व बल बनाता है, जिसका उपयोग राष्ट्रीय आपातकाल के समय सशस्त्र बल के रूप में किया जा सके।

कब ज्वाइन कर सकते हैं एनसीसी

सर्वांगिण विकास और अनुशासन के लिए एनसीसी की शुरूआत स्कूल या कॉलेज लेवल पर होती है। एनसीसी में ट्रैकिंग, माउंटेनिंग, साइकल एक्सपेडिशन जैसे रोमांचक खेल तो होते ही हैं, साथ ही व्यक्तित्व विकास के लिए रचानात्मक कार्य, वाद-विवाद प्रतिगयोगिता, भाषण प्रतियोगिता जैसी गतिविधियां भी कराई जाती है। स्कूल-कॉलेज स्तर पर कैडेट्स के लिए जिले या दूसरे जिले में कैंप लगाए जाते हैं। जहां उन्हें अलग-अलग तरह की ट्रेनिंग और खेल-खूद कराए जाते हैं।

पोस्ट अंश और समाचार :प्रसार भारती समाचार सेवा से साभार लिया गया है

दिल्ली , महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल : 3 अकर्मठ , अकर्मण्य सरकारों से त्रस्त राज्य 

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कहते हैं अनाड़ी का खेल राम , खेल का सत्यानाश।  ठीक यही हाल आज देश के तीन प्रमुख राज्यों , दिल्ली महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल का हो गया है।  चाहे कोरोना काल में सामाजिक राजनैतिक और प्रशासनिक दायित्वों के वहां की बात हो या फिर केंद्र राज्य संबंधों में कड़वाहट हो या अन्य कोई भी स्थानीय /राष्ट्रीय मुद्दा।  इन सभी मोर्चों पर ही इन राज्य सरकारों और इनके अगुआ राजनेताओं ने निहायत ही अपरिपक्वता का परिचय देते हुए स्थितियों को और अह्दिक बदतर ही किया है।

देश की राजनीति और स्वयं देश का केंद्र , राजधानी दिल्ली की सरकार , विशेषकर इनके मुखिया कर पार्टी ने पिछले कुछ समय में दिल्ली की पूरी सूरत-सीरत सब बदतर करके रख दिया है।  अपने पिछले कार्यकाल में राजयपाल से हर प्रशासनिक निर्णय पर विवाद और अब केंद्र सरकार के साथ ऐसा ही गतिरोध।  कोरोना की वर्तमान आपदा , प्रदुषण , स्वास्थ्य और यहना तक की प्रदेश की साफ़ सफाई , पेयजल आदि जैसी तमाम बुनियादी समस्याओं में से किसी एक पर भी कोई ठोस कार्य , कोई दूरगामी योजना , कोई समाधान आदि कुछ भी नहीं कर सके।  हाँ विभिन्न समाचार माध्यमों में बार बार प्रकट होकर आत्मप्रचार और दूसरों पर दोषारोपण जरूर करते रहे।  दिल्ली को संभालने में पूरी तरह से नाकाम रही आम आदमी पार्टी अब अन्य राज्यों की तरफ रुख करने का भी मन बना रही है।

देश की आर्थिक राजधानी और मायानगरी मुम्बई के प्रदेश महाराष्ट्र में गठबंधन की सरकार चला रही शिवसेना और इनके अगुआ उद्धव ठाकरे तो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल से भी ज्यादा कठिन दौर में दिखाई देते रहे।  अपने पुत्र का नाम विवादों में आने , साधु संतों पर हमले ह्त्या , फ़िल्मी सितारों की संदिग्ध मृत्यु , साइन जगत में फैला ड्रग्स का कारोबार , कभी अभिनेत्री कंगना राणावत तो कभी समाचार चैनल और उसके सम्पादक से विवाद और इन सबके बीच उच्चा न्यायपालिका से प्रदेश सकरार को लगातार पड़ती लताड़ ही वो कुछ प्रमुख उपलब्धियां हैं जो पिछले दिनों महाराष्ट्र को देश दुनिया में सुर्ख़ियों में रखती रही।

तीसरा और अंतिम राज्य पश्चिम बंगाल जहां की ममता सरकार यूँ तो अब कुछ समय की मेहमान भर रह गई है , मगर इस सरकार का पूरा कार्यकाल , तृणमूल से असहमत रहने वालों , और सनातन समाज के लिए किसी दुःस्वप्न से कम नहीं रहा है।  कोरोना जैसी महामारी के समय में भी राज्य सरकार द्वारा पीड़ितों और मृतकों की संख्या न बताना , केंद्र द्वारा राज्यों को दिए जाने वाले अनुदान और सहायता योजनाओं को लागू न होने देना ,और बात बात पर खुद सरकार की मुखिया द्वारा अभद्र भाषा और व्यवहार का परिचय।  बस यही कुछ देखने को मिला है पश्चिम बंगाल में।  कानून व्यवस्था प्रशासन ,पुलिस आदि विषयों पर तो इनका रिकॉर्ड और अधिक बदतर है।

पश्चिम बंगाल को तो आने वाले चुनावों में निश्चित रुप से एक अकर्मठ और गैर जिम्मेदार सरकार से मुक्ति मिलती दिख रही है हाँ दिल्ली और महाराष्ट्र के नसीब में अभी कुछ समय और ये सब देखने सुनने को मिलता रहेगा।