आज वसीम रिज़वी का नाम देश ही नहीं बल्कि दुनिया भर की मुगलिया रियाया में नफरत और हिकारत से लिया जा रहा है . कोई ज़हर भरे बोल से उन्हें बद्दुआ दे रहा है . तो कोई गर्दन उड़ा देने की धमकी दे रहा है , और तो और उनके अपने परिवार वाले , बीवी , बच्चे तक सभी वसीम को छोड़कर चले गए .
आखिर उनका गुनाह भी था इतना बड़ा -इतना भयंकर कि जिसकी कल्पना करना भी दुरूह है . फिर क्यों न हो ? जहां एक कार्टून बनाने वाले को , उस कानून को चित्रित , प्रदर्शित करने वाले को इसके लिए ऊके पूरे देश को आतंकित किया जा सकता है , लोगों का गला रेता जा सकता है और मासूम बेगुनाहों पर ट्रक बस चढ़ाया जा सकता है तो फिर तो उस आसमानी किताब में दर्ज किसी भी शब्द , वाक्य , आयात पर सवाल उठाने की. उसमें किसी भी तरह का दोष दिखाने/गिआन की हिमाकत कोई कैसे कर सकता है भला – वो तो शुक्र है कि ये कहने -करने वाला स्वयं उसी सम्प्रदाय से है अन्यथा अभी तक तो जाने क्या क्या न हो गया होता ?? कयामत और जलजला दोनों ही आ चुके होते .
अब जरा इस पहलू पर भी विचार करिए , मज़हबी कट्टरता को ही जीवन का मकसद मां बैठे , और उसके लिए ज़िंदा कौम और पूरी इंसानियत को खलाक कर देने पर उतारू हो जाने वालों में से कोई भी तब कुछ नहीं बोलता करता जब इसी कट्टरता का चोला ओढे , पूरी दुनिया में अन्य मज़हब के मानने वालों को उनके धर्म प्रतीकों के साथ ही खत्म करने की कसमे दिन रात खाई जाती हैं . जब अफगानिस्तान में बुद्ध की मूर्तियां तोड़ी जाती हैं और भारत के अक्षरधाम मंदिर में आतंकी हमला . वो सब कुछ ज़ायज़ है वो सब कुछ मान्य है .
पूरी दुनिया में अब भी , आज भी जेहाद के नाम पर रोज़ कत्ल किए जा रहे मासूम निर्दोष लोगों के हक में और आत्मघातियों के इन जाहिल कबीलों की मानसिकता पर लानत भेजने के लिए दो अल्फ़ाज़ नहीं निकलते देखा गया कभी . बेशक वसीम रिज़वी ने सर्वोच्च अदालत में एक वाद ससंथापित कर के जो माँग रखी है वो प्रथम दृष्टया न्यायालयीय अधिकारिता से परे विषय है और यदि सच में उन शब्दों , पंक्तियों ,आयतों में कुछ भी त्रुटिपूर्ण , दोषपूर्ण या भ्रामक है तो ये उस समाज को स्वयं तय करना होगा , खुद ही विचार विमर्श करके इसका हल निकलना होगा .