महुआ मोइत्रा के विरुद्ध सीबीआई जांच शुरू : विपक्षी सांसदों का नैतिक पतन बना चिंता का सबब

आखिरकार आज केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो के अधिकारियों ने तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा के विरुद्ध , संसद सत्र के दौरान अपनी लॉग इन आई डी गलत मंशा से साझा करने और पैसे अथवा प्रलोभन के प्रभाव में संसद में प्रश्न पूछे जाने के आरोपों पर अपनी जांच शुरू कर दी।  ज्ञात हो कि पिछले संसद सत्र में महुआ द्वारा पूछे गए प्रश्नों में अधिकाँश मशहूर उद्योगपति अडानी समूह के प्रतिद्वंदी व्यापारिक समूह के हितों को ध्यान रख कर पूछे गए प्रश्न थे।

भाजपा सांसद निशिकांत दूबे की शिकायत पर , संसद की नैतिक समिति ने भ्र्ष्टाचार निरोधी लोकपाल की अनुशंसा पर महुआ के विरूद्ध कैश फॉर क्वेरी यानि पैसे या प्रलोभन लेकर संसद में गौतम अडानी समूह के प्रतिद्वंदी हीरानंदानी समूह के हितों से जुड़े सवाल पूछे जाने के मामले का राजफाश होने पर उक्त कार्रवाई को अंजाम दिया गया।  ज्ञात हो कि आरोप के साबित होने पर महुआ की संसद सदस्य्ता तो जाएगी ही उनका राजनैतिक करियर भी ख़त्म होने की बात कही जा रही है।

शुरूआती जांच से ये पता चला है और खुद महुआ ने अपने कई साक्षत्कारों में इस बात को माना भी है कि संसद सत्र के दौरान सांसदों को जारी किया जाने वाला गोपनीय वन टाइम पासवर्ड उन्होंने जाने अनजाने किन्हीं अन्य लोगों से भी साझा किया था और ये भी कि पूछे गए प्रश्नों में से भी बहुत सारे प्रश्न भी उन्हीं लोगों ने लिखे और तैयार किए थे।  किसी भी सांसद जैसे महत्वपूर्ण पद पर बैठे व्यक्ति से ऐसे आचरण और व्यवहार की उम्मीद नहीं की सकती है।

ज्ञात हो कि लोकतंत्र के इस गिरते स्तर का ही ये परिणाम और प्रभाव है कि कभी शासन के लिए एक सचेत प्रहरी और आलोचक का काम करने वाला विपक्ष और विपक्ष के सांसद आज अपने कार्य और आचरण में इतना नीचे गिर गए हैं जो असल में न सिर्फ संसदीय गरिमा बल्कि खुद भारत के लोकतंत्र का अपमान है।

ये पहली घटना नहीं जब विपक्ष का कोई सांसद इस तरह के गैर जिम्मेदार और भ्रष्ट आचरण में लिप्त पाया गया है।  अभी हाल ही में आम आदमी पार्टी के सासंद ने भी संसद से निलंबन की सजा इसलिए पाई क्यूंकि उन्होंने अपने द्वारा प्रस्तावित किसी मसौदे पर सहमति दिखाए /दर्ज़ कराए सांसदों में से कई के फ़र्ज़ी हस्ताक्षर कर /दिखा कर उसे सम्मलित करने की कोशिश की थी।  उनका ये फर्जीवाड़ा पकड़ में आ गया और उन्हें निलंबन की सजा झेलनी पड़ी।

असल में ये सब विपक्ष के तमाम राजनैतिक दलों के नकारात्मक रवैये और सत्ता लोलुपता की भयंकर चाहत के कारण हो रहा है।  विपक्ष आज सत्ता पक्ष या सरकार द्वारा लाए जा रहे कानूनों , लागू की जा रही नीतियों , नियमों , योजना परियोजनाओं का आकलन विश्लेषण करके एक स्वस्थ आलोचना करने , बेहतर विकल्प देने या कुछ भी अलग सकारात्मक कहने करने से बिलकुल उलट सिर्फ प्रधानमन्त्री मोदी , उनके कथ्य , जीवन , दिन चर्या आदि पर ही सारा ध्यान दिए हुए है सिर्फ एक व्यक्ति की आलोचना , और अब तो अपमान करने में ही अपना सारा समय व ऊर्जा लगा रहा है , इसका दुष्परिणाम फिर यही होना है।

 

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