दो बड़े विधिक परिवर्तन : न्यायिक सुधार की कवायद

case disposal system

अभी हाल ही में दो अलग अलग वादों पर की जा रही सुनवाई के संदर्भ में संबंधित पक्षों को नोटिस जारी कर सपष्टीकरण माँगा गया है . यह इन मायनों में बहुत गंभीर और महत्वपूर्ण हैं क्योंकि विधिक व्यवस्था में लाए जा रहे सुधार की दिशा में ये दोनों परिवर्तन दूरगामी प्रभाव व परिणाम देने वाले सिद्ध हो सकते हैं .

इनमें से पहला है केंद्र सरकार को , 138 निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट के तहत न्यायालयों में दर्ज और लंबित लाखों मुकदमे , तथा उनकी बढ़ती संख्या के मद्देनज़र इस तरह के वादों के लिए विशेष अदालतों के गठन की दिशा में विचार व कार्ययोजना प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है . असल में इसके पीछे आधार यह दिया गया है कि , चूंकि यह व्यवस्था , चेक लेन -देन , ऋण -अदायगी और भुगतान विषयक सारे वाद व्यवस्था जनित हैं इसलिए इनसे उत्पन्न वादों के निस्तारण के लिए विशेष प्रयास भी सरकार को ही करना अपेक्षित है . 

दूसरी व्यवस्था जिसमें नए परिवर्तन संभावनाओं पर विमर्श चल रहा है , वो है पुलिस जाँच /अन्वेषण को और अधिक प्रामाणिक/विधिक बनाने के लिए एक विधिक /न्यायिक अधिकारी -दंडाधिकारी (जाँच ) -पद/काडर के गठन की संभावनाएं .

पुलिस जांच में अक्सर अनियमितताओं , गलतियों के कारण कई बार अभियोजन कमज़ोर होने से वाद पर प्रतिकूल असर पड़ जाता है इन्हीं कमियों , गलतियों को पुलिस जाँच /अन्वेषण के दौरान ही दुरुस्त किए जाने की जरूरत को ध्यान में रखकर इस विकल्प पर विचार चल रहा है .

अदालतों में बरसों से निस्तारण की बाट जोह रहे करोड़ों मुकदमों को समाप्त करने में ये नए ने प्रयोग क्या और कितने सफल हो पाएंगे , ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा .

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