पेट्रोल 100 रुपए पार चला गया और ये कयामत से भी ज्यादा भयानक बात है . वो भी उस देश में जो कई बार टमाटर प्याज भी 100 रुपये किलो खा पचा चुका है , तो उस देश में 100 रुपए पेट्रोल हो गया और जब ऐसी अनहोनी घट जाए तो फिर उसका प्रभाव भी हाहाकारी ही साबित होना है .
आपने गौर किया ही होगा कि पेट्रोल की बढ़ी हुई कीमत के कारण सड़कों पर पसरा हुआ सन्नाटा , बिल्कुल सुनाएं पड़े पेट्रोल पम्प , रास्तों पर ताँगे , टमटम , सायकल रिक्शे आदि चलने लगे हैं , बस कार मोटरसायकिल सब गायब ! क्या कह रहे हैं आप ?? ऐसा नहीं हुआ है बल्कि दिन रात सड़कों की छाती रौंदते पेट्रोल पीकर ज़हर उगलते वाहन अब भी और यदि पेट्रोल 500 रुपए प्रति लीटर हो जाए तो भी ये रेलम पेल यूं ही बदस्तूर चलते रहेगा .
ज़रा सा , बस थोड़ा सा पीछे जाकर वो समय और उस समय ज़ाहिर की गई खुशी की भी एक बार कल्पना करिए कि जब देशबंदी के कारण सारा आवागमन रुक गया था . हवा में धुआँ और ज़हर घुलना बंद होते ही कैसे कुदरत ने थोड़े समय के लिए ही सही प्रदूषण के घुटन से फुर्सत पाई थी .
ऐसे समय में जब भारत देश के प्रधानमंत्री मोदी , पूर्ववर्ती सरकारों को ऊर्ज़ा के खपत के लिए 70 वर्षों तक निरंतर अपनी निर्भरता और आयात बढ़ाकर अन्य वैकल्पिक ऊर्ज़ा स्रोतों की भयंकर उपेक्षा से जो स्थिति बना दी है . ये सब उसी का परिणाम है .
देश में लगातार बढ़ते वाहनों की संख्या , अंतरराष्ट्रीय हालातों में तेल उत्पादक व वितरक देशों के बीच बदलता हुआ समीकरण और सबसे ज्यादा कोरोना के कारण पूरी तरह चरमराई वैशिवक अर्थव्यवस्था के कारण यदि पेट्रोलियम तेल के पदार्थों में वृद्धि होती भी है तो इसके लिए सिर्फ केंद्र सरकार को ही कैसे दोषी ठहराया जा सकता है . तो तब तक , तेल देखिए और तेल की धार देखिए . हैं जी