Home Blog Page 6

लालकिले पर ट्रैक्टर स्टंट,धरना स्थल पर बलात्कार -तभी मनाना चाहिए था काला दिवस

0

इस देश का हाल अजब गजब है , क्यूंकि दुनिया में ये इकलौता अकेला ऐसा देश जहां कोरोना महामारी के कारण लाखों जानों पर प्राणघातक संकट छाया हुआ है , सरकार प्रशासन , अस्पताल डाक्टर पुलिस और खुद आम लोग भी इससे उबरने के लिए दिन रात संघर्ष कर रहे हैं , लड़ रहे हैं और दूसरी तरफ कुछ लोग अपने निजी स्वार्थ , राजनीति और पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर ऐसे ही दिन रात , षड्यंत्र रच रहे हैं , चिकित्स्कीय साधनों और संसाधनों की कालाबाज़ारी कर रहे हैं और छद्द्म आंदोलन/प्रदर्शन कर रहे हैं।

सरकार द्वारा किसान बिल में संशोधन के विरोध में , कांग्रेस और भाजपा विरोधी सरकारों की सरपरस्ती और उकसावे में किसानों के नाम पर पिछले कुछ महीनों से राजधानी दिल्ली और उसके आसपास जो भी कुछ किया जा रहा है /किया गया है उससे भी मन नहीं भरा तो रह रह के कुछ दिनों के बाद कुछ न कुछ नया शिगूफा छोड़ दिया जाता है।  इस किसान आंदोलन के तथाकथित अगुआ और नेता जो न तो सरकार से एक दर्जन बार बैठक करने के बाद कोई हल निकास सके और न ही खुद किसी नतीजे पर पहुंचे।

और तो और इस आंदोलन के नाम पर प्रत्यक्षतः अब तक इस धरने में शामिल कई वृद्ध , बीमार लोगों की मौत , लालकिले पर देश को शर्मसार करने वाला टैक्टर स्टंट , पुलिस और सुरक्षा बलों पर हमले और आख़िरकार प्रदर्शन स्थल पर सामूहिक बलात्कार और ह्त्या जैसे जघन्य अपराधों को कारित करने के बावजूद अब कल यानि 26 मई को काला दिवस मनाने की तैयारी में हैं और इसकी घोषणा भी कर चुके हैं।

सवाल ये है कि जब पहले ही दिन से अपने कुकर्मों और अपराधों के कारण लगातार मुँह काला करवा ही रहे हैं तो फिर काला दिवस मनाने के लिए इतना इंतज़ार क्यों ?? इन्हें तो पहले भी अनेकों बार ऐसे अवसर मिले हैं जहाँ पर अपना काला मुँह , काली नीयत , और काली नज़र के साथ ये काला दिवस मना सकते थे।  खैर देर आयद दुरुस्त आयद।  वैसे भी जैसे सावन के अंधे को हरा ही हरा दिखता है वैसे ही काली आत्मा वालों को भी सब काला ही काला दिखता है -कानून काला , विरोध करने के लिए ध्वज काला और अब दिवस भी काला।  

कोरोना के महाविनाश में इन कारणों की हुई अनदेखी

0

कोरोना महामारी का अचानक से बढ़ कर इतना विकराल रूप ले लेना और इतनी भयंकर तबाही मचा देने के अनेकों कारण ऐसे भी रहे जो पार्श्व में चले गए , आइए देखते हैं उनमें से कुछ को

नशे/मद्य /आदि का सेवन :- याद करिए वो दृश्य जब देशबन्दी में पूरे देश की जो जनता रामायण देख कर लहालोट हुई जा रही थी , भक्ति से ओतप्रोत थी , , देशबन्दी खुलते ही शराब की दुकानों पर महाभारत मचा रही थी।  अब एक दुसरा तथ्य भी जानिए कि इस कोरोना काल में भी पूरे देश के अलग अलग राज्यों की पुलिस ने पिछले एक वर्ष में 21  लाख करोड़ रुपये  के मूल्य की नशे की खेप ज़ब्त की है जो पकड़ में नहीं वो अलग हैं।  अब सोच के देखिये कि जो देश , समाज , नशे के जाल में पहले ही खुद को खाली और खोखला किए बैठा है उसका ऐसी महामारी में ये हश्र न हो तो क्या हो ??

इस देश के शीर्ष से लेकर निम्न स्तर तक जनसंख्या का एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा भी रहा है जिसने कभी इस बीमारी की भयावहता को गंभीरता से लिया यही नहीं।  सत्ता से लेकर समाज तक और परिवार से लेकर व्यक्ति तक जिसे जहां अवसर मिला उसने कोरोना को धोखा देने की जुगत में अपने और अपनों को ही धोखा दिया।  चुनाव , रैलियाँ , प्रदर्शन , आंदोलन , आयोजन क्या ही छोड़ा गया और क्या ही नहीं किया गया ??

इस महामारी में सबसे अधिक घृणित बात ये हुई कि शहरों का समाज जो दिनों दिन मृत प्रायः होता जा रहा था इस बार उसकी मृत देह से वो दुर्गन्ध उठी कि इंसान का सारा काला सच नग्न होकर अपनी पूरी कुरूपता से सबके सामने उघड़ गया।  अस्पातलाल से लेकर शमशान तक , कोई पीड़ित की देह नोंच रहा था तो कोई कफ़न। उफ़्फ़ ! इन समाचारों ने /घटाओं ने खुद समाज को जो घाव दिए उसने उसे तिल तिल कर मारा।  

जो लोग बीमारी को ही कभी गंभीरता से नहीं ले रहे थे /हैं जो मास्क , सेनेटाइजर ,सामाजिक दूरी तक जैसी बातें नहीं समझ पाए/नहीं समझ रहे हैं उनसे रेमडीसीवार , ऑक्सीजन लेवल , प्रोन पोजीशन आदि की समझ पाने की अपेक्षा करना ही बेमानी है और इसका दुष्परिणाम सामने है ही।

ये देश समाज का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है कि इस देश को खोखला करने वाले /बर्बाद करने वाले शत्रु/विरोधी/षड्यंत्रकारी सभी इस देश के अंदर ही मिल जाते हैं इसलिए इसे बाहरी दुश्मनों की जरूरत ही कहाँ पड़ती है।  तमाम विपक्षी/विरोधी एक भी रचनात्मक काम न करें , सहयोग न दें , सब चलता है किन्तु ऐसे समय में साज़िश रच कर देश समाज में जहर घोलने का घिनौना खेल खेलना आत्मघाती साबित हुआ है।

समय तो ये भी बीत ही जाएगा लेकिन इस विपत्ति काल में भारत में जो भी , जैसा भी हुआ /किया गया /कराया गया वो अगले बहुत सालों तक देश समाज की आत्मा को कचोटता रहेगा।

वैक्सीन कंपनियों ने वैक्सीन बेचने के लिए केजरीवाल के सामने रखी थी ये शर्मनाक शर्त

0

#खड़ीखबर : हमें वैक्सीन खरीदनी है आपसे : सड़ जी

लेकिन हमारी एक शर्त है , आप अगले 24 घंटे तक प्रचार करने टीवी रेडियो पर नहीं आएँगे : दवाई कंपनी 

दवा कंपनियों ने हमें वैक्सीन बेचने से मना कर दिया : अरविन्द केजरीवाल

#खड़ीखबर : झारखंड सरकार ने कोरोना से लड़ने के लिए लिया बड़ा फैसला 
मुख्यमंत्री शिबू सोरेन की सरकार सबको कफ़न “मुफ्त” दिलवाएगी 

#खड़ीखबर : हमने तीसरी लहर के लिए अभी से तैयारी शुरू कर दी है : मुख्यमंत्री दिल्ली सरकार
इस बार टीवी पर मैं अकेला नहीं मनीष सिसोदिया जी भी आएँगे , मैं ही अकेला क्यों गाली खाऊँ

#खड़ीखबर : ट्विट्टर के दफ्तर में छापेमारी अलोकतांत्रिक है : अखिलेश यादव
लेकिन मैंने जो टोटियाँ उखाड़ी थीं वो सच्चा समाजवाद था ; अजी हाँ

#खड़ीखबर : जीसस के कारण ख़त्म हो रहा है कोरोना : IMA अध्यक्ष
इसे कन्फर्म करने के लिए ईसा के पास सबको भेजने का कर रहे हैं प्रबंध

 

सुशांत सिंह राजपूत की मौत से शुरू हुई बॉलीवुड की बर्बादी की कहानी अब अपने अंजाम तक पहुँच रही है

0

गौर करके देखने से पता चल रहा है कि , युवा अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की असामयिक मौत , उस घटना/ दुर्घटना -हत्या/आत्महत्या के इर्द गिर्द का सारा घटनाक्रम सब संदेहास्पद और सबसे अधिक अखरने वाली बात राज्य प्रशासन और पुलिस का कुछ विशेष लोगों को बचाने के लिए की गई कोशिशें , इस पर सवाल उठाने वालों के साथ होने वाला सलूक – ये सारी बातें ऐसी थीं जिसने आम जनमानस को बुरी तरह से आहत किया और झकझोर कर रख दिया।

ये कोरोनाकाल के इस महाआपदा की शुरुआत भी थी और जैसे जैसे इस घटना की जांच बढ़ी , राज्य पुलिस की सारे मामले की लीपापोती की कोशिश के बाद केंद्रीय जांच एजेंसियों ने इस अपराध का अन्वेषण शुरू किया और जिस तरह से हिंदी सिनेमा के बड़े बड़े नामचीन सितारों का एक के बाद एक ऐसे समय में भी ,नशे ,व्याभिचार , अनैतिकता के घिनौने संसार और व्यापार की बात लोगों के सामने आई इस सच ने तो जैसे दशकों से इन्हें अपना हीरो , अपना आदर्श , अपना मसीहा मानने समझने वालों को हतप्रभ करके रख दिया और इस काले सच ने मानो बॉलीवुड का असली चेहरा सबके सामने रख दिया।

एक एक करके बड़े बड़े सितारों का ड्रग्स की पार्टियों में नशे का सेवन , ड्रग्स पैडलर से लेकर ड्रग्स सिंडिकेट तक से मेल जोल , सुशांत सिंह और इन जैसे तमाम अभिनेताओं की संदिग्ध मौत पर चुप्पी साध लेना , खान गैंग द्वारा किए जा रहे षड्यंत्रों से सोनू निगम , अभिजीत , अरिजित जैसे गायकों , सुशांत , दिशा , जिया जैसे अदाकारों की संदिग्ध मौत सबका सारा गंदा खेल सबके सामने उजागर हो गया और यहीं से शुरू हो गई उस बॉलीवुड के बर्बादी की कहानी जो एक एक सिनेमा से करोड़ों रूपए कमा कर उस पैसे से ये अब कर रहे थें।

रही सही कसर पूरी कर दी कोरोनाकाल के दौरान ,;लगातार होने वाली देशबन्दी ने। जब देश भर में सिनेमा और मनोरंजन के नाम पर उलटे सीधे पैसे वसूलने वाले हज़ारों मल्टीप्लेक्स पर ताला लग गया।  इसकी भरपाई करने की कोशिश की गई DTH सेवा से लोगों के घरों में लगे टीवी के माध्यम से कमाई करने की , मगर जनता ने वहाँ भी अब इन्हें बुरी तरह नकारना शुरू कर दिया।

एक वर्ष से अधिक हो चुके हैं और बॉलीवुड अब अभी तक अपने सबसे निम्न स्तर पर पहुँच चुका है , यही हाल रहा तो ये सब जो करोड़ों अरबों की कमाई करने के बावजूद देश समाज और लोगों पर आपदा ,विपदा आने के समय अपने अपन घरों में छिप जाते हैं और एक रुपया किसी की मदद के लिए नहीं खर्च करते उन्हें अपने खर्च के भी लाले पड़ जाएंगे।

सुशांत सिंह राजपूत की संदिग्ध मौत आखिरकार बॉलीवुड के ताबूत में आखिरी कील साबित हो गई है और अब पाप की ये दुनिया अपनी अंतिम परिणति पर पहुंच चुका है।

बीबीसी हिंदी सेवा – एक खास एजेंडे पर चलता मीडिया संस्थान ,अब परोस रहा है अश्लीलता

0

एक समय था जब बीबीसी विश्व सेवा अपनी निष्पक्षता और स्पष्टवादिता के लिए इतनी प्रखर हो गई थी की ख़ुद ब्रितानी सरकार के लिए उससे आँख मिला पाना बहुत मुश्किल हो गया था।  ये वो दौर था जब अमेरिका और ब्रिटेन जैसे बड़े शक्तिशाली देशों ने एक प्लांटेड खबर , कि इराक जैविक हथियारों का परीक्षण निरीक्षण कर रहा है को आधार बना कर उस पर हमला कर दिया था , और ये सच बीबीसी ने ये जानते हुए कि खुद उनका देश भी कटघरे में खड़ा कर दिया जाएगा इस पर न सिर्फ बेबाकी से साड़ी ख़बरें चलाईं बल्कि इसके लिए बीबीसी के तत्कालीन प्रमुख को तो अपने पद से इस्तीफा तक देना पड़ा था।  और ये उन दिनों की बात थी जब पूरी दुनिया में समाचार रेडियो पर सुने जाते थे और बीबीसी की अंतर्राष्ट्रीय सेवा का प्रसारण कई देशों में , उन देशों की भाषाओं में किया जाता था।

समय बदला और बीबीसी भी।  बीबीसी बदलते बदलते इतनी बदल गई कि समाचार , प्रस्तुति , रिपोर्ट और खुद बीबीसी का नज़रिया भी इतना नकारात्मक हो गया कि कोई भी साफ़ समझ सकता था कि अब वो एक पक्षीय और एजेंडे वाली समाचार एजेंसी बन कर रह गई है।

देखिये बीबीसी के ट्विटर हैंडल से लिए गए ये स्क्रीन शॉट और शीर्षक पढ़ कर आप खुद अंदाज़ा लगाएं कि इनके द्वारा समाचारोंके नाम पर क्या और कैसे परोसा जा रहा है ??

देखिये हमास और फिलिस्तीन के चहेतों को हीरो की तरह पेश करने की कोशिश हो या फिर बंगाल के नारदा घोटाले को जानबूझ कर नारदा मामला लिखा।  और ये सब जान बूझ कर लिखा /दिखाया जाता है ताकि एक ख़ास तरह कर नैरेटिव सैट किया जा सके।

अब  इस खबर पर नज़र डालिये और देखिये कितनी चालाकी से यहां उन अपराधियों /आरोपियों को सामजिक कार्यकर्ता बता कर छोड़ने की अपील की जा रही है जो देशद्रोह सहित कई गंभीर अपराधों में जेल की सलाखों के पीछे हैं।  और कोरोना के नाम पर उन्हें मानवीयता दिखाते हुए जेल से छोड़ने की बात की जा रही है

पाकिस्तानियों को खुश करने के लिए किस तरह का एजेंडा चल रहा है वो इस खबर से अनुमान लगाइये।  जो पाकिस्तान भारत के लिए प्रायोजित आतंकवाद से नासूर की तरह न सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया के लिए सर दर्द बना हुआ है वहाँ से प्यार का सन्देश मिलता सिर्फ बीबीसी को ही दिखाई दे रहा बाकी पूरी दुनिया को मोतियाबिंद हो रखा है

और इसे और अधिक स्पष्ट समझने के लिए सिर्फ इस खबर का प्रस्तुतीकरण , चित्रण और उपयोग की गई तस्वीर से ही सब कुछ स्पष्ट हो जाता है और कोई साधारण सा व्यक्ति भी सब कुछ आसानी से समझ सकता है।  इस खबर के थंबनेल में और अंदर भी जानबूझ कर सिर्फ भाजपा सांसद गौतम गंभीर के चित्रों का इस्तेमाल किया गया है।

अब अंदर की खबर पर भी नज़र डालिये , रेखांकित किए गए शब्दों को देखिये और सोचिए कि कैसे सबको छोड़ कर सिर्फ भाजपा को निशाने पर लेने के लिए मोदी सरकार को असफल , भ्रष्ट बताने के लिए बाकी सबको पार्श्व में रखा गया है।

चलते चलते एक और बात जो शायद अब भी जस की तस है वो है बीबीसी हिंदी सेवा की वेबसाइट पर अश्लील विज्ञापनों की भरमार जिसकी शिकायत लेखक ने खुद ईमेल द्वारा कई बार की है।

इस पोस्ट के लेखक जो बीबीसी हिंदी सेवा के रेडियो सेवा के सर्वकालिक श्रोता लगभग दो दशकों से अधिक तक रहे हैं और खुद कई बार बीबीसी के स्टूडियो से देश भर के श्रोताओं का प्रतिनिधित्व करते हुए कार्यक्रम प्रसारित कर चुके हैं।  उन दिनों आदरणीय अचला शर्मा जी बीबीसी हिंदी सेवा की प्रमुख हुआ करती थीं।  अफ़सोस है कि आज वो बीबीसी पतन के अपने निम्नतम स्तर पर पहुँच चुकी है।

खर्च किए गए 47 हज़ार 634 करोड़ रूपए :नए अस्पताल -0 ,ऑक्सीजन प्लांट -0 -हम दिल्ली के मालिक हैं 

0

खर्च किए गए 47 हज़ार 634 करोड़ रूपए :नए अस्पताल -0 ,ऑक्सीजन प्लांट -0 -हम दिल्ली के मालिक हैं

नई तरह की राजनीति करने , नहीं नहीं माफ़ करियेगा , गंदी हो चुकी राजनीति को बदलने के लिए आए कुछ लोग जो जनता को “जनलोकपाल ” बना कर सब कुछ स्वच्छ , साफ़ और स्पष्ट करने के लिए ख़ुद राजनीति में उतरते हैं और जल्दी ही धूर्तता , मक्कारी , भ्रष्टाचार और तुष्टिकरण के खेल में इतने माहिर हो जाते हैं कि सत्ता की मलाई चाटना ही सिर्फ और एकमात्र अकेला उद्देश्य बच जाता है और वे इसी पर चलने लगते हैं।

पिछले पाँच छह वर्षों में देश और विदेश तक में , जहाँ तक हो सके अपनी अभूतपूर्व उपलब्धियों और नई योजनाओं के नाम पर अपना चेहरा चमकाने दिखाने में करोड़ों रूपए फूँक कर बताते दिखाते हैं कि किस तरह से दिल्ली की नई सरकार ने राजधानी की चिकित्सा और शिक्षा व्यवस्था में आमूल चूल परिवर्तन करने के लिए कई नायाब प्रयोग किए , और न सिर्फ किए बल्कि खुद ही ये प्रमाणपत्र भी दे देते हैं कि आज तक न तो ऐसा कभी सोचा गया न ही कभी हुआ है।  देश विदेश से प्रोत्साहान और अनुदान बटोर कर वाहवाही पाती रहती है सरकार।

फिर आता है महामारी का समय और पिछले पाँच वर्षों में चिकित्सा व्यवस्था पर लगभग 48 हज़ार करोड़ रूपए खर्च किए जाने के बावजूद ये पता चलता है कि राजधानी दिल्ली वालों के लिए सरकार ने न तो एक भी नया अस्पताल बनवाया और न ही एक भी ऑक्सीजन प्लांट , नतीजा दिल्ली के लोग दवा , इलाज और साँस के चंद कतरे के लिए तरसने लगते हैं , मरते जाते हैं।

सरकार को अच्छी तरह पता होता है कि उसने क्या कितना और कहाँ ठीक या गड़बड़ी की है। फिर शुरू हो जाता है वही पुराना राग -मोदी , भाजपा और केंद्र सरकार को कोसने का काम , उन पर आरोप लगाने का काम ,उनसे दवाई , चिकित्सा उपकरण और ऑक्सीजन तक की माँग और न मिलने पर रोज़ रोज़ टेलीविजन पर आकर अपनी मजबूरी जाहिर करने ,रोने धोने का सिलसिला जो निर्बाध निरंतर अब भी चल रहा है।

अब लोग खुद अनुमान लगाएं कि , ईमानदारी , शुचिता की बात करके सत्ता तक पहुँच बना लेने वाले ये लोग उनसे भी ज्यादा खतरनाक और धूर्त निकले जो खुलेआम ये करके राजनीति में पहले से ही बदनाम रहे थे।  लोग कुछ नहीं भूलते मगर याद भी नहीं रखते हैं और इस पर भी लीपापोती हो ही जाएगी , लेकिन अब जब अगली बार दिल्ली सरकार बजट में हज़ारों करोड़ रूपए का प्रावधान रखे तो उनसे पूछा जाना चाहिए कि -उनका पैसा कहाँ ,कैसे खर्च किया जाएगा ????

बागवानी के लिए जरूरी बातें -बागवानी मन्त्र

0

#बागवानीमन्त्र :
आज बागवानी से जुड़ी कुछ साधारण मगर जरुरी बातें करेंगे।

बागवानी बहुत से मायनों में इंसानों  के लिए हितकर है , बल्कि बाध्यकारी भी है।  प्रकृति के साथ सहजीवन और सामंजस्य के लिए सबसे सरल साधन बागवानी ही है।  दायरा देखिए कि इंसान बाग़ बगीचे उगाएं इसके लिए प्रकृति कभी इंसाओं की मोहताज़ नहीं रही है उसे कुदरत ने ये नियामत खूब बख्शी हुई है।  तय हमें आपको करना है कि हम कितना और क्या क्या कर सकते हैं।

बागवानी घर , बाहर जमीन पर भी छत पर भी और बालकनी में भी।  बच्चे से लेकर बूढ़े तक और धनाढ्य परिवार से लेकर साधारण व्यक्ति तक कोई भी , कभी भी कर सकता है।  शौक के रूप में शुरू की गई बागवानी इंसान के लिए तआव ख़त्म करने का एक बेहतरीन विकल्प होने के कारण जल्दी ही आदत और व्यवहार में बदल जाती है।  बागवानी शुरू करने के सबसे आसान तरीकों में से एक ये की माली से गमले सहित अपेक्षाकृत आसान और सख्तजान पौधों से शुरआत करना बेहतर होता है जैसे -गुलाब , तुलसी , एलोवेरा , गलोय

बागवानी के लिए मिट्टी , बीज , पौधे , मौसम पानी इन सभी बिंदुओं पर थोड़ा थोड़ा सीखते समझते रहना जरूरी होता है।  मसलन पौधों में पानी देना तक एक कला है ,विज्ञान है और उसकी कमी बेशी से भी बागवानी पर भारी असर पड़  सकता है।  बागवानी विशेषकर अपने क्षेत्र (मेरा आशय मैदानी ,पहाड़ी या रेतीली ) को ध्यान में रखते हुए सबसे पहले वहां के स्थानीय , आसानी से उपलब्ध और उगने लगने वाले पौधों को लेकर शुरुआत करना श्रेयस्कर  रहता है।  मसलन -राजस्थान में बोगनवेलिया और महाराष्ट्र में अंगूर , बिहार में आम अमरूद , उत्तर प्रदेश में गेंदा गुलाब आदि।

बागवानी की इच्छा रखने मगर समयाभाव के कारण नहीं कर सकने वालों को पाम म क्रोटन , एलोवेरा , कैक्टस आदि और इनडोर पौधों से शुरुआत करना बेहतर रहता है क्यूंकि अपेक्षाकृत बहुत काम श्रम व् समय माँगते हैं  ये पौधे।  लम्बे समय तक हरियाली बनाए रखते हैं तथा बाहु के लिए बेहद लाभकारी होते हैं।  खिड़की व बालकनी में बागवानी करने के लिए बेलदार पौधों का भरपूर उपयोग करना बेहतर विकल है क्यूंकि इससे उनकी जड़ छाया में और बेल धूप  हवा में रह कर अच्छा विकास कर पाती है -जैसे मधुमालती ,अपराजिता आदि।

बागवानी में सिद्धहस्त होने तक पौधे उगाने लगाने से बचते हुए पहले से विकसित पौधों की देखभाल , खाद पानी डालना , काटना छांटना निराई गुड़ाई आदि धीरे धीरे सीख कर फिर खुद उगाने लगाने की शुरुआत करनी चाहिए।  यदि फिर भी खुद करने का मन कर ही रहा है तो फिर घरेलु बागवानी के लिए धनिया ा, पालक , मेथी आदि जैसे बिलकुल सहज  साग सब्जी से शुरू करना ठीक रहता है।

बागवानी में सबसे जरूरी होता है धैर्य और सबसे बड़ा सुख आता है अपने बोए बीज को अंकुरित ,पुष्पित -पल्ल्वित होते हुए देखना।  मिटटी के अनुकूल होने से लेकर पौधे के फूल फल आने की आहात तक एक खूसबूरत सफर जैसा होता है।  बागवानी धीरे धीरे मिटटी , पानी , बनस्पति , हवा , पक्षी और सुबह शाम तक से सबका परिचय करवाने का एक खूसबूरत माध्यम है।

नए पौधों को लगाने , उगाने और स्थानांतरित करने का सबसे उपयुक्त समय शाम का होता है।  गमलों के पौधों की जड़ों में पानी देना सुरक्षित रहता है और कई बार शीर्ष पर या कलियों , फूल आदि पर पानी पड़ने /डालने से नुकसानदायक हो जाता है।  बागवानी में सबसे ज्यादा अनदेखी हो जाती है जड़ों की निराई गुड़ाई।  जबकि वास्तविकता ये है की ,जड़ों की मिट्टी को ऊपर नीचे करके , निराई गुड़ाई नियमित पानी डालने से ही आप बागवानी का आधा और जरूरी दायित्व निभा लेते हैं।

विदेशी वैक्सीन का बाज़ार बनाने के लिए वैश्विक मीडिया कर रहा भारत को बदनाम 

0

कल्पना करिये -एक तरफ भारत कोरोना की इस दूसरी और अधिक प्रलयकारी लहर से जूझ रहा था , शमशान और धरती जलती चिताओं से तप रही थी और आसमान लोगों की दारुण चीख पुकार से आहत , लेकिन ऐसे में भी कुछ लोग थे जिन्होंने अमानवीयता और हैवानियत की सारी हदें पार कर दी थीं।

ये वो लोग जिन्होंने भारत में जल्दी चिताओं , मौतों की तस्वीरों और समाचार पर भी व्यापार करने का घिनौना षड्यंत्र रचा और सिर्फ देश ही नहीं बल्कि विदेशों में रह रहे भारत के विरोधियों /शत्रुओं तक को इसमें शामिल कर लिया।  सोच कर देखिये कि विदेशी मीडिया ने भारत को बदनाम करने के लिए भारत की जलती चिताओं की जिन तस्वीरों को दिखाया उन्हें वहाँ तक पहुँचाने वालों को इस एवज में हजारों डॉलर और पाउण्ड का भुगतान किया गया।  उबकाई आ जाती है , वितृष्णा हो जाती है ये ख्याल भर मन में आते ही।  

अब धीरे धीरे ये राज़ भी खुलता जा रहा है कि जो पश्चिमी जगत और बाकी के अन्य देश कोरोना की पहली लहर में ही बुरी तरह से त्रस्त पस्त हो चुके थे वो सभी भारत जैसे विकासशील और तीसरी दुनिया के देश भारत का इन सबसे उबर जाना , न सिर्फ खुद बाहर आ जाना बल्कि , पूरी दुनिया के लिए दवाई , चिकित्सा सहायता करके संकटमोचन बन जाना और सबसे अधिक इतने कम समय में ही एक नहीं बल्कि दो दो -वैक्सीन की खोज कर लेना -आदि भारत की बढ़ती ताकत और कद को देख कर बुरी तरह से खीज उठा और उसे ये अनुमान हो चला था कि अब वो दिन लद गए जब भारत ऐसी असाधारण परिस्थतियों में भी किसी दूसरे देश पर निर्भर रहेगा और यहीं से शुरू हुई ये सारी साजिश और इसे अंजाम तक पँहुचने का काम।

भारत की विशालतम जनसंख्या , चिकित्सा व्यवस्था की स्थिति और सबसे अधिक देश के अंदर ही देश को तोड़ने वाले गिद्ध से भी बदतर राजनेताओं के बावजूद भारत जैसे तैसे इन सबसे उबरने की कोशिश कर रहा था और पश्चिमी देशों के कुछ इन जैसे ही जो ऐसे ही अवसर पर भारत को अपने उत्पादोंका बाज़ार बनाने देने के मौके में रहते हैं उन्होंने इसे नया नज़रिया देना शुरू किया।

इण्डियन स्ट्रेन , बेकाबू कोरोना , मौतों के आंकड़ों , जलती चिताओं , वैक्सीन पर पहले सवाल उठा कर फिर वैक्सीन की कमी का हल्ला मचा कर ये सब सिर्फ और सिर्फ भारत में अपना व्यापार करने , उसे भुनाने के लिए किया जा रहा था।  देश में रहने वाली एक लॉबी भी इसके लिए सरकार पर दबाव बना रही थी।

और इसका असर अब दिखने भी लगा और सबको समझ भी आ रहा है।

pic credit -google image search

पश्चिम बंगाल -भारत का नया फिलिस्तीन

0

तो आखिरकार वही सब हो रहा है जिसकी आशंका जताई जा रही थी और आशंका ही क्यों ममता के पिछले दस सालों में जिस तरह से बांग्लादेशी रोहिंग्यों की घुसपैठ करवा कर स्थानीय मज़लिमों के साथ एक जेहादी गठजोड़ तैयार किया गया था और उसे तरह तरह के (क्लब परिपाटी – पश्चिम बंगाल सरकार की एक योजना जिसके तहत स्थानीय युवाओं को मनोरंजन करने के नाम पर प्रति माह 5000 रुपए दिए जाते हैं और इन क्लबों में जुएबाजी , नशाखोरी से लेकर तमाम तरह के अपराधों की साजिश रचने का काम किया जाता है ) प्रलोभनों से तथा शासकीय संरक्षण में उन्हें इसी सब के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा था उसकी परिणति यही होनी थी।

बस थोड़ा सा पीछे जाकर एक मिनट को देखिये , सड़क पर चलते हुए मुख्यमंत्री ममता के कान में “जय श्री राम ” का नारा सुनाई देता है और वो सारी मर्यादा , नैतिकता , प्रशासनिक प्रमुख के पद की गरिमा को भूल कर किसी छुटभैये और टटपुँजिये नेता की तरह वहीँ अपना लाव लश्कर रोक न सिर्फ उनसे उलझ जाती हैं बल्कि उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी देती हैं।

दुर्गा पूजा में हज़ारों तरह के विघ्न और माँ भवानी की प्रतिमा विसर्जन पर भी सैकड़ों प्रशानिक बंदिशों का लगाया जाना , सिर्फ पिछले एक वर्ष में सैकड़ों हिन्दुओं का सरे आम क़त्ल , भाजपा राजनेताओं  से लेकर निरीह समर्थकों तक पर भयंकर अत्याचार , हिन्दुओं की संपत्ति , सम्मान को लूटा जाना आदि जैसी तमाम घटनाएं ये बताने के काफी हैं कि अब जबकि इस बार ममता ने इस चुनाव में अपनी जीत और हार को अपने अहं का प्रश्न बना लिया था तो फिर उनके जीतने के बाद , उनके विरोधियों से प्रतिशोध लेने और तृणमूल के अपने समर्थकों को बदला लेने की छूट देने का ही अंजाम है जो आज भारत के ये चरमपंथ से ग्रस्त होता राज्य हिन्दुओं के लिए नर्क सामान हो गया है।

भारतीय जनता पार्टी जो दूसरी बार देश में प्रचंड बहुमत से सरकार बनाने के बावजूद भी न तो दिल्ली और देश में मुजलिमों , कांग्रेसियों , वामपंथियों द्वारा किए गए बहुत बड़े षड्यंत्र से भड़के दंगों पर   सख्ती दिखा सकी और न ही पिछले एक साल से साजिशन दिल्ली और आसपास के राज्यों को बंधक बना कर उनमें अव्यवस्था और अराजकता फैलाते आढ़तियों को ही खदेड़ सकी।

और ऐसा सिर्फ इसलिए हुआ क्यूंकि शासन और सत्ता में होते हुए भी एक नैतिकता के बोध का लबादा ओढ़े हुए “सबका साथ सबका विकास ” की अपनी नीति पर चलती रही।  और कई बार कमोबेश खुद भी उन्हीं सब तुष्टिकरण वाली राजनीतिक का शिकार हुई जो सालों से कांग्रेसी सरकारें करती चली आ रही थीं।

भारतीय जनता पार्टी को दो दो बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने के बावजूद भी जिस तरह से अधिकाँश गैर भाजपाई सरकार वाले राज्यों ने केंद्र सरकार , संघीय ढाँचे , संविधान में प्रदत्त व्यवस्थाओं को अपने ठेंगे पर रख दिया उसने निश्चित रूप से एक बहुत भद्दी और खतरनाक परिपाटी को जन्म दे दिया है।

दिल्ली , महाराष्ट्र , केरल , पश्चिम बंगाल अब धीरे धीरे ऐसे राज्यों की संख्या बढ़ती जा रही है जहां भाजपा सरकार , मोदी , योगी के विरोध को हिन्दुओं के प्रति नफरत फैला कर , उनका दमन शोषण करके अपना वोटबैंक पक्का करने के अचूक और आजमाए फार्मूले को अपनाया और बार बार आजमाया जा रहा है और वर्तमान हालातों में वे इसमें सफल भी हो रहे हैं।

आज फिर ममता बनर्जी एक मुख्यमंत्री होते हुए , केंद्रीय जाँच एजेंसी -CBI द्वारा नारदा घोटाले में लिप्त आरोपियों और अपने मंत्रियों की गिरफ्तारी के बाद जिस तरह से छ घंटे तक उन्हें घेर कर बैठ गईं वो अपने आप में एक बहुत बड़ा अपराध है और ये और भी संगीन हो जाता है जब हज़ारों उपद्रवियों की भीड़ , जाँच अधिकारियों और पुलिस वालों पर उसी तरह से पथराव करती जैसे जम्मू कश्मीर में आतंकियों को बचाने के लिए वहाँ उनके समर्थक स्थानीय लोग किया करते थे।

इस पूरे परिदृश्य में , केंद्र सरकार का दृढ़ और सख्त रवैया न अपनाया जाना सबसे हताश कर भयभीत करने वाला रहा है।  और तो और शीर्ष नेतृत्व द्वारा दृढ़ता से इसका प्रतिरोध भी नहीं किया जाना बहुत ही दुखद है और ये आने वाले समय में अधिक हाहाकारी और विनाशकारी साबित होने वाला है।

सपा विधायक इरफान अपने समर्थक को छुड़ाने पहुंचा था थाने : योगी की पुलिस ने विधायक का ही चालान काट दिया

0

इस कोरोना महामारी काल में भी , मोदी योगी और पूरी भाजपा सरकार से खार खाया विपक्ष अपनी घटिया राजनीति और ओछे पन से बाज नहीं आ रहा है उतना ही नहीं , कोरोना के समय में सरकार द्वारा जारी दिशा निर्देशों की जानबूझ कर अवहेलना करना , कानून को अपने हाथ में लेकर फसाद और विवाद करना एक प्रवृत्ति सी बनती जा रही है .

गैर  भाजपा शासित प्रदेशों में तो ये मनमानी अपने चरम पर है ही , जहाँ ये सत्त्ता में नहीन हैं  भी इनका यही हाल है . अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश के समाजवादी पार्टी के नेता इरफ़ान ने अपने समर्थकों के साथ ऐसा ही कुछ उपद्रव करने की कोशिश की।

समाचारों के अनुसार , पुलिस ने विधायक के कुछ समर्थकों का कोविड नियमों का पालन नहीं करने और मास्क न लगा होने के कारण चालान कर दिया।  इससे नाराज़ होकर विधायक इरफ़ान थाने जाकर उलटा पुलिस वालों को ही उन्हें नौकरी से निकलवाने की धमकी देने लगा और उनसे मारपीट करने की कोशिश करने लगा।

पुलिस ने भी सख्ती दिखाते हुए , खुद विधायक इरफ़ान का ही 1000 का चालान करके सारे हेकड़ी निकाल दी।  ज्ञात हो कि योगी राज में कानून का डंडा इतना सख्त चल रहा है कि ऐसे तमाम फन्ने खान सकते में हैं।