इस हिसाब से मकबूल फ़िदा हुसैन के लिए क्या सजा मुकर्रर की जानी चाहिए थी ????

 

तन से जुदा , मन से जुदा , बस एक इसी में तो बचा है खुदा।

कुछ यही मंसूबा और अपने माथे पर नारा ए तकबीर ,अपनी खंज़रों ,तलवारों पर लिखकर घूमने वालों से सिर्फ इतना पूछा जाना चाहिए कि यदि _______की शान में कुछ कहना क्या सोचना तक गुनाहे अजीम है और उससे क़यामत आ जाती है तो इस हिसाब से उस कमज़र्फ मकबूल के लिए क्या सज़ा तय की जानी चाहिए थी जो अपनी दो कौड़ी की फूहड़ता को अपनी कुत्सित सोच में रंग कर हिन्दू देवियों की अपमानजनक तस्वीरें उकेरी थीं।

अभी दो महीने पूर्व ही दर्जन भर सिरफिरे बदजुबान कर हिन्दू देवी देवताओं , परम्पराओं ,मान्यताओं का उपहास उड़ा कर अपनी रोजी रोटी कमाने वाले भिखमंगे अदालत से “आजादी -आजादी ” कहते एड़ियाँ रगड़ रहे थे -किसी ने मंदिर में कुकर्म दिखाने की साजिश , तो कोई देवी देवताओं को ही निशाने पर लेकर फूहड़ता कर रहा है , अपमानजनक भाषा कर शब्दों का प्रयोग कर रहा है फिर चाहे वो पी के में आमिर खान हो या वो दो टके का अली अब्बास।

ये जोश उस वटक क्यों नहीं उबाल मारता है तुम्हारा भई ओवैसी  , अमानतुल्ला जब कबीलाई वहशी भीड़ बन कर किसी मंदिर कसबे , मोहल्ले पर उसी तरह टूट पड़ते हो जैसे गिद्ध के झुण्ड लाशों पर मंडरा कर टूट पड़ते हैं।  पहले से ही आने वाली नस्लों को दूध के साथ मज़्हबाई उन्माद का रक्तपान कराते हुए बकौल तुम्हारे ही पूरी दुनिया में 56 देश हैं , मगर नाजुक इतने कि ऊँगली दिखाने से मुरझाने का ख़तरा हो जाता है।  अपना मन करे तो सड़क पर आ लोटो और न मन करे तो नकाब बुर्का और जाने कितने परदों में ढका छिपा कर रखो मगर दूसरों के , देवी देवताओं , मंदिरों , मूर्तियों और पुजारियों सबको “तन से जुदा” , माशाअल्लाह क्या तरकीब है , क्यों ???

दुनिया सीखते समझते सभ्य हो गई कम से कम वहशी जहालत से एक दूसरे को ही मारने काटने वाली कबीलाई मानसिकता से बाहर निकल गई मगर तुम दिनोंदिन बदतर होते चले गए।  जाने कितने सालों , दशकों , शताब्दियों पहले शुरू हुआ ये वहशी कत्ले आम का ख़त्म होना , या कम होना तो दूर अब तो ये वहशत दीवानगी की हद तक जा पहुँचीं है।

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