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10 quotes of love and life

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10 quotes of love and life

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Bookmark …..of words, dreams, books, flowers, laws ,news,memories ,humour

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ब्लॉग से साइट और साइट से यू ट्यूब तक मैं इन शब्दों ,चित्रों , आवाज़ों ,को आपस में गुंथा बंधा रहना चाहिए | इसी दिशा में किया गया ये प्रयास | आप चाहें तो मुझे सबस्क्राइब कर सकते हैं | मैं हूँ आपका अनाम आदमी

 

 

एक प्याली चाय

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एक प्याली चाय

एक प्याली चाय,
अक्सर मेरे,
भोर के सपनों को तोड़,
मेरी अर्धांगिनी,
के स्नेहिल यथार्थ की,
अनुभूति कराती है॥

 एक प्याली चाय,
अक्सर,बचाती है,
मेरा मान, जब,
असमय और अचानक,
आ जाता है,घर कोई॥

एक प्याली चाय,
अक्सर,बन जाती है,
बहाना,हम कुछ ,
दोस्तों के,मिल बैठ,
गप्पें हांकने का..

एक प्याली चाय,
अक्सर ,देती है,साथ मेरा,
रेलगाडी के,बर्थ पर भी..

एक प्याली चाय,
अक्सर मुझे,खींच ले जाती है,
राधे की,छोटी दूकान पर,
जहाँ मिल जाता है,
एक अखबार भी पढने को॥

एक प्याली चाय,
कितना अलग अलग,
स्वाद देती है,सर्दी में,
गरमी में,और रिमझिम ,
बरसात में भी॥

एक प्याली चाय,
को थामा हुआ,है मैंने,
या की,उसने ही ,
थाम रखी है,
मेरी जिंदगी,
मैं अक्सर सोचता हूँ ……

अक्सर चाय पीते हुए ये पंक्तियां मेरे मन में कौंधती हैं , पहले भी शायद कही थी ……आज फ़िर चाय पी …तो फ़िर कहने का मन किया …………और आपका …??

मफलर से आएगा वाई फाई नेटवर्क

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Chittha charcha fir se shuru - hindi blogging dobara lautane ka prayas

#खड़ीखबर :
केजरीवाल सरकार ने दिल्ली में दिया फ्री वाई फाई
नेटवर्क सिर्फ मफलर लपेटने पर ही मिलेगा

#खड़ीखबर
अजित पवार,सुप्रिया सुले और राज ठाकरे भी होंगे डिप्टी सीएम
विधायकों को बंधुआ बना कर रखने वाले होटल मालिक ने भी दावा ठोंका

#खड़ीखबर
अब कांग्रेस में अनुशासनहीनता को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा
यार ,हर बात में आप राहुल गांधी की और क्यों देखने लगते हैं

#खड़ीखबर :
प्याज पहुंचा सवा सौ रूपए किलो
पकौड़ा स्टार्टप उद्योग पर भारी संकट

#खड़ीखबर :
बलात्कार पर बने  क़ानून को और सख्त बनाया जाएगा
मुझ  नेत्रहीन को भी बता देना : कानून की देवी

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ऐसे लाना चाहिए था राफेल :खड़ीखबर

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खड़ीखबर
pic courtesy ANI News

राफेल की शस्त्र पूजा का तमाशा करने की क्या जरूरत थी :खड़गे
हमारी तरह चुपचाप घोटाले करके ले आना चाहिए था

काँच के शामियाने : स्त्री संघर्ष की एक गाथा

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कांच के शामियाने

किताबें पढना और बात और उन किताबों पर कुछ कहना या लिखना जुदा बात और ज्यादा कठिन इसलिए भी क्योंकि लेखनी से आप पहले से ही परिचित हों तो जी हाँ यह मैं, बात कर रहा हूं रश्मि रविजा के उपन्यास कांच  के शामियाने की। उपन्यास हाथ में आते हुई एक सांस में पढता चला गया और ये काम मैं पहली बार नहीं कर रहा था , खैर |

चूंकि रश्मि मेरे मित्र समूह में हैं सो उनको मैं पढता तो लगभग रोज़ ही रहा हूँ और अपने आसपास घटती  घटनाओं , लोगों , समाचारों पर उनकी सधी हुई प्रतिक्रया अक्सर फेसबुक पर ही बहुत बडी बड़ी बहसों और विमर्शों का बायस बनी हैं | सो उनकी लेखनी से परिचय तो था ही हाँ उपन्यास के रूप में पढना अलग अनुभव रहा |

खुल 203 पन्नों  से सजा हुआ यह उपन्यास बेहद खूबसूरत कलेवर ,उत्कृष्ट पेपर क्वालिटी के साथ  पेपर बैक  में लगभग हर ऑनलाइन स्टोर में उपलब्ध है , | वैसे इसके बारे में पढने के बाद जो बात मेरे विचार में तुरंत आई वो ये थी कि , पढने , दोबारा पढने , सहेजने , अपने किसी मित्र ,दोस्त ,सखा व सहेलियों को उपहारस्वरूप देने योग्य एक उत्कृष्ट रचना साहित्य |
मैं आलोचक नहीं हूँ ,और हो भी नहीं सकता क्योंकि एक विशुद्ध पाठक की ही समझ अभी ठीक से बन नहीं पाई है । हाँ खुद इस अंचल से सम्बन्ध होने के कारण पूरे उपन्यास को पढ़ने के दौरान  मैं खुद कभी जया कभी राजीव ही नहीं बल्कि कभी घर आँगन और आसपास की सभी वस्तुओं में खुद को अनायास ही पाता रहा |
कहानी एक साधारण सी शख्सियत के असाधारण से संघर्ष की कहानी है असाधारण  इसलिए  क्योंकि   उसे  पूरे जीवन  में  भीतर बाहर संघर्ष करना  पड़ता  है  |  उसकी लड़ाई अपने आसपास की परिस्थितियों , अपने आसपास मौजूद परिवारजनों , उनकी दकियानूसी सोच , और विशेषकर अपने जीवन साथी राजीव के विचित्र पुरुषवादी मानसिकता से तब तक चलती रहती है जब तक कि वो इस कांच के शामियाने को तोड़ कर पूरी तरह से बाहर नहीं निकल जाती  है |हालांकि बच्चों में सबसे छोटी जया अपने ससुराल वालों विशेषकर पति के हर जुल्म , हर ताने , हर प्रताड़ना को इतने लम्बे समय तक झेलने के लिए क्यों अभिशप्त हो जाती है , वो भी तब जब वो क़ानून अदालत समझती है , फिर भी उसकी ये विवशता मुझ जैसे पाठक को कई बार बहुत ही क्षुब्ध कर देती है |

लेखिका ने किताब में शैली इतनी जानदार रखी है और रही सही सारी कसर बोलचाल की आसान भाषा ने पूरी कर  दी है | पाठक सरलता से जया के साथ साथ उस  पूरी दुनिया को जी पाता है  | लेखिका  होने के कारण जया  के संघर्षों उसकी स्थिति , शारीरिक व् मानसिक , उसकी व्यथा उसकी कहानी को जितनी प्रभावपूर्ण और मार्मिक रूप से न सिर्फ महसूस बल्कि उसे शब्दों में ढाल कर हमेशा के लिए हम पाठकों के दिमाग में बसा कर रख दिया | या यूं कही कि जाया कांच के शामियाने से निकल कर पाठकों के मन में बैठ गयी और हमेशा रहेगी ठीक उसी तरह जैसे गुनाहों का देवता  की सुधा |
उपन्यास जया की पूरी कहानी है इसलिए जीवन के हर रूप रंग और धुप छाया से रूबरू कराती है मगर आखिर में जाया के जीवन में खुशियों सफलता और आत्मविश्वास का जो इन्द्रधनुष जगा देती है वो पाठक को एक सुखान्त सुकून सा देती है | सच कहूं तो सच होते अनदेखे सपने वाला अंश एक पाठक के रूप में जया जैसे किसी पात्र के दोस्त के रूप में भी मुझे सबसे अधिक पसंद आया , कुल मिला कर संक्षिप्त में कहूं और एक पाठक के रूप में कहूं तो पैसा वसूल है , फ़ौरन ही पढ़ डालने योग्य |

राजधानी पटना हुई पानी पानी

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bihar flood

 

राजधानी पटना आजकल फिर चर्चा में है |  हालांकि बिहार में आने वाली प्राकृतिक आपदाएं ,उनसे होने वाली क्षति ,जानमाल का नुकसान और सबसे बढ़कर सरकार और प्रशासन की  नाकामी और अदूरदर्शिता की आदत अब पूरे प्रदेश की जनता को हो चुकी है वो भी न जाने  कितने बरसों से | अभी कुछ माह पूर्व ही उत्तर बिहार के कुछ जिलों में भारी बारिश और बाढ़ ने भयानक त्रासदी मचाई थी | अभी इससे अच्छी तरह उबरे भी नहीं थे कि अब सिर्फ कुछ दिनों की बारिश ने राज्य की राजधानी को ही पूरा जलमग्न कर दिया है |

इस रिपोर्ट के लिखे जाने तक स्थिति में कोई विशेष सुधार न तो हुआ है और न ही भविष्य में इसकी बहुत उम्मीद की जानी चाहिए | असल में अपनी विपन्नता ,लोगों का पलायन ,राजनैतिक दरिद्रता व गरीबी ने कुल मिलाकर इस राज्य को अलग थलग सा कर  दिया है | बावजूद इसके कि नौकरी ,राजनीति , पत्रकारिता आदि जैसे क्षेत्रों में बिहार निवासियों का पूरे देश भर में कोई सानी नहीं है हर साल बिहार इन प्राकृतिक आपदाओं की त्रासदी को आदतन झेलता और भी भूलता चला जाता है |

और होता भी क्या है ज्यादा ,अपना सब कुछ खो चुके और बिलकुल धरातलहीन होकर बचे खुचे लोग भी विवशतः पूरे देश में खानाबदोशों की तरह निकल पड़ेंगे ट्रेनों में बैठ कर | लेकिन ये इतने भी निरीह नहीं हैं कि ऐसी स्थितियों के लिए इन्हें बिलकुल जिम्मेदारी मुक्त किया जा सकता है विशेषकर तब जबकि इन आपदाओं में सबसे ज्यादा प्रभावित यही तबका होता है जो जमीन से जुड़ा होता है |

इसमें कोई संदेह नहीं कि दशकों में इस तरह से बरसने वाले बादलों ने यदि कहर बरपाने की सोच ली थी तो फिर ऐसे में कोई कितनी भी तैयारी कर लेता होता कमोबेश यही फिर जब मुम्बई नगरपालिका इन बारिशों में हांफने लगती है तो फिर पटना का पानी ही क्यों चर्चा में हो और उस बहाने प्रशासन पर साधा जाने वाला निशाना |

देखिए सवाल प्राकृतिक आपदा के आने उसे रोके जाने या उससे निपटे जाने का अलग है लेकिन उससे अलग एक बिंदु ये है कि आखिर क्या जरूरत है  नागरिकों को आम लोगों को फिर सरकार की उसे इतने भारी भरकम करों को देने की जब आप कुछ बुनियादी शर्तें नहीं पूरी कर सकते | जिस तरह से लोग लाचार और हताश तथा असुरक्षित दिखाई दे रहे थे/हैं उसमें तो आपको दिन रात उस बारिश में छाते के नीचे रहकर लोगों के बीच पहुंचकर कठिनाई देखनी बांटनी थी | आप कहते हैं लोगों को धैर्य रखना चाहिए | नतीजा सामने है

अब बात थोड़ी कड़वी जो शायद इस समय उपयुक्त भी नहीं लेकिन फिर अगर अब न कही जाए तो मतलब की भी नहीं ,जिस राज्य में बेटियों में शादी में लाखों रूपये दहेज़ में लिए दिए जाते है अब भी ,मृत्युभोज ,संस्कार आदि के  नाम पर आडम्बरों में लाखों रुपये खर्च करने वाला ये समाज आज तक अपना भला नहीं कर सका है तो उसकी कुछ वजहें रही हैं |  छोटे छोटे जनप्रतिनिधियों ने यहां बिहार को दीमक की तरह चाटना जारी रखा है | देश को राजनीति में पूरा एक स्कूल बिहार स्कूल ऑफ पॉलिटिक्स देने वाले राज्य के जनप्रतिनिधियों ने आज तक गंभीरता से अपने गृहराज्य को ही नहीं लिया |

इसका एक बड़ा दुष्परिणाम ये हुआ कि विवश होकर मेधा का इस राज्य से पलयान शुरू हुआ जो होता रहा होता रहा और अब तक हो ही रहा है | बिहार के निवासियों की जीवटता की परिक्षा पहले भी कुदरत लेती रही रही लेकिन हर बार ऐसे समय वो अपने उन खोखले नेताओं की तरफ आस से देखने लगती है जिन्हें चुनने से पहले उन्हें उनकी नीयत का अंदाज़ा होता है |

आप महाशक्ति बनने के दावे ,चाँद को चूमने की हुंकार और बारिश से पूरी राजधानी का बंटाधार जैसे समाचार एक साथ पढ़ भी कैसे सकते हैं। …..सरकार जी आप लोगों से  पूछिए उनकी समस्या ,उस समस्या का हल ,और फिर दीजिये उसे ठीक करने का मौका। ….

सोशल नेट्वर्किंग :समाज को बदलता एक तंत्र

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social networking behavior

वर्त्तमान युग को यदि सोशल नेट्वर्किंग  को युग कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी | आज इंसान  के साथ मोबाइल उसकी अनिवार्य वस्तुओं में उसी तरह से शामिल हो गया है जिस तरह से कभी कर्ण के शरीर से उसके कवच कुण्डल जुड़े  हुए थे | आज लोगों ने अपने जीवन को विभिन्न सोशल नेट्वर्किंग साइट्स के नाम से यूँ समर्पित कर रखा है मानो दिन से लेकर रात तक और खुशी से लेकर गम तक सब कुछ लगभग सब कुछ सभी साझा करने को आतुर हैं | क्या किसी ने भी पहले कभी ये सोचा होगा कि तकनीक उसमें भी कम्प्यूटर तकनीक उसमें भी विशेषतया मोबाइल कम्प्यूटिंग तकनीक और उसमे भी सबसे कहर बरपाती ये सोशल नेट्वर्किंग वाली परंपरा | देखा जाए तो कहने को आभासी कही जाने वाली इस दुनिया से अपने अंदर असली दुनिया को भींच कर रख लिया है |

हालांकि ये भी बहुत दिलचस्प बात है की कंप्यूटर तकनीक के दोषों की चर्चा कम्प्यूटर पर और मोबाइल तकनीक के दुरुपयोग की बात मोबाइल पर ही करने जैसे ही ये आलेख जो सोशल नेट्वर्किंग साइट्स के साथ आज के इंसान के व्यवहार और सामंजस्य निर्भरता आदि पहलुओं की पड़ताल करेगा तो ये सब आखिरकार होगा तो एक सोशल नेट्वर्किंग साइट यानि किसी वेबसाइट पर ही | दो बाते हैं एक सोशल नेट्वर्किंग ,उसका दायरा चरित्र खतरे उपयोग भविष्य आदि एक एक पहलू पर बहुत विस्तृत अध्ययन की जरूरत होगी मगर आज इन सोशल नेट्वर्किंग साइट्स का इंसान के जीवन पर पड़ता प्रभाव ,उससे परिलक्षित परिणाम ,आदि पर निश्चित रूप से चर्चा की जा सकती है और की जानी जरूरी भी है ,क्यों ??

आँकड़ों पर नज़र डालें तो सिर्फ पिछले वर्ष ही आधिकारिक रूप से मोबाइल से सेल्फी लेने खींचने के दौरान मौत के मुँह में चले जाने वाले कुछ इंसानों की संख्या रही 1234 व्यक्ति | सोचिए ,क्या सचमुच एक सेल्फी पूरे इंसानी जीवन से कहीं ज्यादा अहमियत रखती है ?? आप सोचिये तब तक ये भी जानिये कि पिछले वर्ष ही पूरी दुनिया में कुल 316 लोगों ने सोशल नेट्वर्किंग साइट्स पर लाइव होकर मौत को गले लगा लिया | इससे बड़ी त्रासदी और कुछ नहीं हो सकती | ये घटनांए इस बात का सबूत बन गईं कि इंसानों का एक बहुत बड़ा वर्ग आज इन सोशल नेट्वर्किंग साइट्स का अभ्यस्त होकर वास्तविक दुनिया से अपने समाज से कबका दूर हो चुका है | ये किसी भी समाज के लिए स्वस्थ बात नहीं हो सकती कि उसके लोग भीड़ में भी अकेले से घूमते हुए सा महसूस करें |

यदि पश्चिमी देशों में इन सोशल नेट्वर्किंग साइट्स के उपयोग व इनके प्रति व्यवहार कुशलता की तुलना भारतीय परिप्रेक्ष्य में करें तो कहीं कोई साम्य नहीं दिखाई देगा | इस पूरी आपाधापी में एक सबसे जरूरी बात जो पार्श्व में रह जाती है वो ये कि इन सोशल साइटों में लगे प्लग इन का खेल जिनमे फंस कर लोग कब कहाँ अपने आंकड़े उनके हवाले कर देते हैं पता भी नहीं चलता | नित नई की जिज्ञासा वाला आज का तेज़ रफ़्तार वर्ग रोज़ाना नई नई शक्लों के साथ सामने आते सोशल नेट्वर्किंग साइट्स को हाथों हाथ ले लेता है |

इस दुनिया में कुछ दिनों तक या कहा जाए कि अब भी सेल्फी के इर्दगिर्द जितनी कहानी सोशल नेट्वर्किंग साइसट्स की रही अब कुछ कुछ उसी ढर्रे पर वायरल पोस्ट वीडियो ऑडियो टैक्स्ट की हो रही है आजकल | भारत जैसे विस्तृत देश में जहां सेकेंडों में किसी भी उत्पाद के उपयोगकर्ता लाखों में पहुँच जाती है ऐसे में इन पर चैक एन्ड बैलेंस के लिए जो और जितना होना चाहिए वो निश्चित रूप से नहीं हो सका है | आज भी देश में सबसे आसान सिम ले लेना ही है |

चलते चलते इतना कहा जा सकता है कि इन आभासी तंत्रों ने हाड मांस के बने इंसान को इस कदर अपने बाहुपाश में ले लिया है कि वो कहीं न कहीं इसे ही अपना सब कुछ अपना बहुत कुछ कहने मानने लगा है और अभी तो ये महज़ एक शुरआत है

व्हाटसअप ग्रुप पर हाई अलर्ट

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खड़ीखबर : दस फोन कॉल से डेंगू को हराओ :सड़ जी दिल्ली वाले 
हमने पहले ही अपने व्हाट्सअप ग्रुप पर हाई अलर्ट जारी किया हुआ है :
प्रधान, डेंगू मच्छर असोसिएशन ,दिल्ली क्षेत्र