वर्त्तमान युग को यदि सोशल नेट्वर्किंग को युग कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी | आज इंसान के साथ मोबाइल उसकी अनिवार्य वस्तुओं में उसी तरह से शामिल हो गया है जिस तरह से कभी कर्ण के शरीर से उसके कवच कुण्डल जुड़े हुए थे | आज लोगों ने अपने जीवन को विभिन्न सोशल नेट्वर्किंग साइट्स के नाम से यूँ समर्पित कर रखा है मानो दिन से लेकर रात तक और खुशी से लेकर गम तक सब कुछ लगभग सब कुछ सभी साझा करने को आतुर हैं | क्या किसी ने भी पहले कभी ये सोचा होगा कि तकनीक उसमें भी कम्प्यूटर तकनीक उसमें भी विशेषतया मोबाइल कम्प्यूटिंग तकनीक और उसमे भी सबसे कहर बरपाती ये सोशल नेट्वर्किंग वाली परंपरा | देखा जाए तो कहने को आभासी कही जाने वाली इस दुनिया से अपने अंदर असली दुनिया को भींच कर रख लिया है |
हालांकि ये भी बहुत दिलचस्प बात है की कंप्यूटर तकनीक के दोषों की चर्चा कम्प्यूटर पर और मोबाइल तकनीक के दुरुपयोग की बात मोबाइल पर ही करने जैसे ही ये आलेख जो सोशल नेट्वर्किंग साइट्स के साथ आज के इंसान के व्यवहार और सामंजस्य निर्भरता आदि पहलुओं की पड़ताल करेगा तो ये सब आखिरकार होगा तो एक सोशल नेट्वर्किंग साइट यानि किसी वेबसाइट पर ही | दो बाते हैं एक सोशल नेट्वर्किंग ,उसका दायरा चरित्र खतरे उपयोग भविष्य आदि एक एक पहलू पर बहुत विस्तृत अध्ययन की जरूरत होगी मगर आज इन सोशल नेट्वर्किंग साइट्स का इंसान के जीवन पर पड़ता प्रभाव ,उससे परिलक्षित परिणाम ,आदि पर निश्चित रूप से चर्चा की जा सकती है और की जानी जरूरी भी है ,क्यों ??
आँकड़ों पर नज़र डालें तो सिर्फ पिछले वर्ष ही आधिकारिक रूप से मोबाइल से सेल्फी लेने खींचने के दौरान मौत के मुँह में चले जाने वाले कुछ इंसानों की संख्या रही 1234 व्यक्ति | सोचिए ,क्या सचमुच एक सेल्फी पूरे इंसानी जीवन से कहीं ज्यादा अहमियत रखती है ?? आप सोचिये तब तक ये भी जानिये कि पिछले वर्ष ही पूरी दुनिया में कुल 316 लोगों ने सोशल नेट्वर्किंग साइट्स पर लाइव होकर मौत को गले लगा लिया | इससे बड़ी त्रासदी और कुछ नहीं हो सकती | ये घटनांए इस बात का सबूत बन गईं कि इंसानों का एक बहुत बड़ा वर्ग आज इन सोशल नेट्वर्किंग साइट्स का अभ्यस्त होकर वास्तविक दुनिया से अपने समाज से कबका दूर हो चुका है | ये किसी भी समाज के लिए स्वस्थ बात नहीं हो सकती कि उसके लोग भीड़ में भी अकेले से घूमते हुए सा महसूस करें |
यदि पश्चिमी देशों में इन सोशल नेट्वर्किंग साइट्स के उपयोग व इनके प्रति व्यवहार कुशलता की तुलना भारतीय परिप्रेक्ष्य में करें तो कहीं कोई साम्य नहीं दिखाई देगा | इस पूरी आपाधापी में एक सबसे जरूरी बात जो पार्श्व में रह जाती है वो ये कि इन सोशल साइटों में लगे प्लग इन का खेल जिनमे फंस कर लोग कब कहाँ अपने आंकड़े उनके हवाले कर देते हैं पता भी नहीं चलता | नित नई की जिज्ञासा वाला आज का तेज़ रफ़्तार वर्ग रोज़ाना नई नई शक्लों के साथ सामने आते सोशल नेट्वर्किंग साइट्स को हाथों हाथ ले लेता है |
इस दुनिया में कुछ दिनों तक या कहा जाए कि अब भी सेल्फी के इर्दगिर्द जितनी कहानी सोशल नेट्वर्किंग साइसट्स की रही अब कुछ कुछ उसी ढर्रे पर वायरल पोस्ट वीडियो ऑडियो टैक्स्ट की हो रही है आजकल | भारत जैसे विस्तृत देश में जहां सेकेंडों में किसी भी उत्पाद के उपयोगकर्ता लाखों में पहुँच जाती है ऐसे में इन पर चैक एन्ड बैलेंस के लिए जो और जितना होना चाहिए वो निश्चित रूप से नहीं हो सका है | आज भी देश में सबसे आसान सिम ले लेना ही है |
चलते चलते इतना कहा जा सकता है कि इन आभासी तंत्रों ने हाड मांस के बने इंसान को इस कदर अपने बाहुपाश में ले लिया है कि वो कहीं न कहीं इसे ही अपना सब कुछ अपना बहुत कुछ कहने मानने लगा है और अभी तो ये महज़ एक शुरआत है