कोरोना के महाविनाश में इन कारणों की हुई अनदेखी

कोरोना महामारी का अचानक से बढ़ कर इतना विकराल रूप ले लेना और इतनी भयंकर तबाही मचा देने के अनेकों कारण ऐसे भी रहे जो पार्श्व में चले गए , आइए देखते हैं उनमें से कुछ को

नशे/मद्य /आदि का सेवन :- याद करिए वो दृश्य जब देशबन्दी में पूरे देश की जो जनता रामायण देख कर लहालोट हुई जा रही थी , भक्ति से ओतप्रोत थी , , देशबन्दी खुलते ही शराब की दुकानों पर महाभारत मचा रही थी।  अब एक दुसरा तथ्य भी जानिए कि इस कोरोना काल में भी पूरे देश के अलग अलग राज्यों की पुलिस ने पिछले एक वर्ष में 21  लाख करोड़ रुपये  के मूल्य की नशे की खेप ज़ब्त की है जो पकड़ में नहीं वो अलग हैं।  अब सोच के देखिये कि जो देश , समाज , नशे के जाल में पहले ही खुद को खाली और खोखला किए बैठा है उसका ऐसी महामारी में ये हश्र न हो तो क्या हो ??

इस देश के शीर्ष से लेकर निम्न स्तर तक जनसंख्या का एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा भी रहा है जिसने कभी इस बीमारी की भयावहता को गंभीरता से लिया यही नहीं।  सत्ता से लेकर समाज तक और परिवार से लेकर व्यक्ति तक जिसे जहां अवसर मिला उसने कोरोना को धोखा देने की जुगत में अपने और अपनों को ही धोखा दिया।  चुनाव , रैलियाँ , प्रदर्शन , आंदोलन , आयोजन क्या ही छोड़ा गया और क्या ही नहीं किया गया ??

इस महामारी में सबसे अधिक घृणित बात ये हुई कि शहरों का समाज जो दिनों दिन मृत प्रायः होता जा रहा था इस बार उसकी मृत देह से वो दुर्गन्ध उठी कि इंसान का सारा काला सच नग्न होकर अपनी पूरी कुरूपता से सबके सामने उघड़ गया।  अस्पातलाल से लेकर शमशान तक , कोई पीड़ित की देह नोंच रहा था तो कोई कफ़न। उफ़्फ़ ! इन समाचारों ने /घटाओं ने खुद समाज को जो घाव दिए उसने उसे तिल तिल कर मारा।  

जो लोग बीमारी को ही कभी गंभीरता से नहीं ले रहे थे /हैं जो मास्क , सेनेटाइजर ,सामाजिक दूरी तक जैसी बातें नहीं समझ पाए/नहीं समझ रहे हैं उनसे रेमडीसीवार , ऑक्सीजन लेवल , प्रोन पोजीशन आदि की समझ पाने की अपेक्षा करना ही बेमानी है और इसका दुष्परिणाम सामने है ही।

ये देश समाज का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है कि इस देश को खोखला करने वाले /बर्बाद करने वाले शत्रु/विरोधी/षड्यंत्रकारी सभी इस देश के अंदर ही मिल जाते हैं इसलिए इसे बाहरी दुश्मनों की जरूरत ही कहाँ पड़ती है।  तमाम विपक्षी/विरोधी एक भी रचनात्मक काम न करें , सहयोग न दें , सब चलता है किन्तु ऐसे समय में साज़िश रच कर देश समाज में जहर घोलने का घिनौना खेल खेलना आत्मघाती साबित हुआ है।

समय तो ये भी बीत ही जाएगा लेकिन इस विपत्ति काल में भारत में जो भी , जैसा भी हुआ /किया गया /कराया गया वो अगले बहुत सालों तक देश समाज की आत्मा को कचोटता रहेगा।

ताज़ा पोस्ट

यह भी पसंद आयेंगे आपको -

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

ई-मेल के जरिये जुड़िये हमसे