बार बार पूरे विश्व की बहुत सारी संस्थाएं और समूह इस बात को उठाते रहे हैं कि यदि दुनिया की आबादी इसी तरह बेहिसाब बढ़ती रही तो इस शताब्दी के उतरार्ध में ही इस दुनिया पर अपने अस्तित्व का संकट आ जाएगा | जिस प्रकार रात दिन विश्व की जनसंख्या आसुरी रूप से बढ़ती जा रही है उसने पहले से ही अविकसित और पिछड़े हुए देशों की कमर तोड़ कर रख दी है | और विश्व में जब जब बढ़ती हुई जनसंख्या को एक समस्या की तरह देख कर उसका आकलन और विश्लेषण किया जाता है तो भारत अपने बेशुमार जनसंख्या के कारण वैश्विक समुदाय के सामने अपराधी की तरह प्रस्तुत किया जाता है | जो बेशक एक भारतीय के रूप में सुनने में बुरा लगे मगर कटु सत्य तो यही है |
ये भी गौर करने वाली बात है कि भारत का पड़ोसी राष्ट्र चीन , भारत से भी अधिक जनसंख्या वाला देश होने के बावजूद उसने एक तो अपनी अथाह मानव शक्ति को नियोजित करके मानव संसाधन का बेहतर उपयोग किया है दूसरे ,जनसंख्या नियंत्रण कानून और व्यवस्थाओं को इतनी अधिक कड़ाई से पालन किया और करवाया की एक समय चीन की जनसंख्या दर ऋणात्मक हो गई थी | चीन की कठोर नीति का उदाहरण इसी बात से लग जाता है कि एक समय वहाँ तय नियमों से अधिक संतानोत्पत्ति की सज़ा अधिकतम यानि मौत की सज़ा दी जाती थी |
पिछले कुछ समय से भारत में भी बढती सारी समस्याओं और मूलभूत जरूरतों की उपलब्धता सुनिश्चित करने में सबसे बड़ी बाधा ,देश की विराट जनसंख्या है | एक विकासशील देश पिछले 70 वर्षों के अथक और अनेक प्रयास के बावजूद भी यही आज ,भोजन , वस्त्र , निवास , चिकित्सा ,शिक्षा आदि जैसी तमाम जरूरतों के लिए भी मोहताज है ,उसके अभाव में जी रहा है तो उसके लिए एक सबसे अहम् कारण देश के बेतहाशा लोग हैं | सरकार द्वारा भी इस दिशा में एक ठोस जनसंख्या नियंत्रण कानून लाने की चर्चा के बीच ही ,माननीय सर्वोच्च न्यायालय में इसी आशय को लेकर न्यायालय द्वारा सरकार को जनसंख्या नियंत्रण के उपाय पर निर्देश जारी करने हेतु संस्थापित याचिका के उत्तर में सरकार जल्द ही प्रस्तावित जनसंख्या नियंत्रण कानून का मसौदा पेश करने वाली है |
सूत्रों की माने तो , सरकार द्वारा प्रस्तावित जनसंख्या नियंत्रण कानून में दो से अधिक बच्चे वाले अभिभावक /माता पिता , देश शासन सरकार व विधि द्वारा प्राप्त बहुत से अधिकारों को स्वतः खो देने के कारण स्वाभाविक रूप से बिना कुछ किए ही दोयम दर्जे के नागरिक हो जायेंगे | तीसरी संतान के माता पिता , सरकारी नौकरी , अनुदान ,वजीफा , सहायता , और यहाँ तक कि अपने मताधिकार से भी वंचित किए जा सकेंगे | जबकि तीन से अधिक और चूहों ,श्वानों और शूकरों की तरह दर्जन दर्जन भर बच्चे पैदा करने वालों पर आपराधिक कार्यवाही करके उन्हें दस साल तक की कैद का प्रावधान किया जा रहा है |
साधारणतया , जनसंख्या नियंत्रण के लिए विश्व भर मौजूद कानूनों को देखते हुए ये कानून सामयिक और समीचीन ही लग रहे हैं और दूसरे देशों में इन्हें लागू करने में शायद ही प्रतिरोध का सामना करना पड़ा होगा ,क्यूंकि ये लोक कल्याण के लिए लाया जाने वाला एक अनिवार्य कानून है | किन्तु जिस तरह से पिछले कुछ समय से भाजपा सरकार के हर फैसले , सरकार द्वारा लाए गए हर कानून का विरोध करने का एक सुनियोजित षड्यंत्र चलाया जा रहा है , इस बात की पूरी आशंका है कि पहले से ही बच्चों को खुदा की देन कह कह कर जनसंख्या नियंत्रण के हर उपाय और नियम ,यहाँ तक कि बच्चों को पोलियो से बचाने के लिए चलाए गए अभियान पल्स पोलियो अभियान का भी जानबूझकर विरोध किया |
इस बार भी इस बात की पूरी पूरी संभावना है कि ,जनसंख्या को नियंत्रित करने वाले किसी भी कानून को ,एक विशेष वर्ग , एक नकारात्मक और अवरोधक विचार वाले कुछ चुनिंदा लोग , भी उसी विरोध वाली फेहरिश्त में डालने का प्रयास करेंगे ,जो उन्होंने पिछले दिनों वर्तमान सरकार के और कई बार तो न्यायपालिका के निर्णय पर भी सिर्फ असहमति ही नहीं बल्कि विरोध तक जता दिया |
मौजूदा सरकार , बहुत से अलग कार्यों को अलग तरीके से करने के अतिरिक्त जो एक कार्य बहुत बारीकी और पूरी तरह वैधानिक सिद्धांतों का पालन करते हए कर रही है वो है , मौजूदा कानूनों में सामयिकता की कसौटी वाले आवश्यक सुधार और भविष्य के लिए ,देश समाज के कल्याणार्थ कठोर और स्पष्ट कानूनों का निर्माण | देश की पूरी जनता भी ऐसे ही फैसलों और कानूनों को लाए जाने के पक्ष में एक नहीं बल्कि दो दो बार और पहले से भी अधिक प्रचंड होकर अपने लिए सरकार चुन चुकी है | सरकार ने काम शुरू कर दिया है वो भी न्यायिक अनुपालन के समानुपाती |
बात बार पर चिल्ला चिल्ला कर , कागज़ नहीं दिखाएंगे , कानून नहीं मानेंगे जैसी राष्ट्र और समाज विरोधी सोच वालों के लिए अब ये निश्चित रूप से खुद को इस बात के लिए तैयार रखने का समय है कि इस सोच और रवैये को ही बरकरार रखे हुए ये तमाम लोग , धीरे धीरे खुद ही समाज से अधिक कानून के दोषी होते चले जाएँगे | वैसे हकीकत तो ये है कि असल में ,सबसे अधिक कागज़ , समाज के इन रंगा और बिल्ला को ही दिखाना पड़ता है और ये भाग भाग कर दिखाते हैं ,दौड़ दौड़ के