पूरी दुनिया पर जब चीनी वायरस कोरोना का हमला हुआ था और पूरी दुनिया इसके शिकंजे में फंस कर स्तब्ध और पंगु सी हो कर रह गई थी , यही वो समय था जब आवश्यकता के कारण कई तरह की नई तकनीक और आविष्कारों पर प्रयोग शुरू किया गया था। अदालत भी इनसे अछूते नहीं रहे , ज्ञात हो कि एक समय पर जब सब कुछ ठहर रुक सा गया था तब पुलिस , अस्पताल , अदालत आदि जैसे संस्थानों ने भी अलग अलग और उन्नत विकल्पों तथा उपायों का को तलाशा , उनमें विज्ञान तकनीक और कम्प्यूटर का सामंजस्य बिठाया और तब जाकर मूर्त रूप ले सकी ये नई अदालतें , डिजिटल ,वर्चुअल तथा हाइब्रिड अदालत
वर्तमान में माननीय सर्वोच्य न्यायालय , देश के तमाम उच्च न्यायलय और दिल्ली मुंबई जैसे महानगरों के अतिरिक्त लगभग हर राज्य की अदालतों में ये तीन प्रकार की अदालतें कार्य कर रही हैं या फिर जल्दी ही करने की प्रकिया में हैं। गठन के अनुसार देखा जाए तो इनमें से सबसे पहले
वर्चुअल अदालत
वर्चुअल अदालत का गठन किया गया था और जो विशेषरूप से सड़कों पर ट्रैफिक पुलिस द्वारा काटे जा रहे चालान और उनसे जुड़े मामलों के लिए गठित किया गया था और बहुत कम समय में अपनी उपयोगिता के कारण स्थाई रूप से एक से अनेक अदालतों का गठन कर दिया गया। दिल्ली की तमाम जिला अदालतों में सभी जिलों के लिए अलग अलग बहुत सी वर्चअल अदालतें काम कर रही हैं
डिजिटल अदालत
न्यायपालिका काफी समय से स्वयं को कागजरहित करने की दिशा में अनेकानेक पहल करती रही है और अदालतों में कागज़ों की खपत को लगातार कम किए जाने की दिशा में बहुत सारे कदम भी उठाए जाते रहे रहें कंप्यूटर तकनीक के आने और अदालतों में उनके उपयोग ने क्रांतिकारी परिवर्तन लाते हुए कागज़ों के खपत में भारी कमी को प्रोत्साहित किया।माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने इससे उत्साहित होकर कागजरहित अदालतें यानि डिजिटल कोर्ट के गठन का मार्ग प्रशस्त कर दिया। इन अदालतों में सारी अदालती प्रक्रिया इंटरनेट द्वारा ही संचालित की जाती है जहां न्याय प्रशासन द्वारा निर्धारित एप के माध्यम से वीडियो कांफ्रेंसिग द्वारा , माननीय न्यायाधीश , दोनों पक्ष के अधिवक्ता , पुलिस , गवाह तथा अदालत के कर्मचारी के साथ पूरी न्यायिक प्रक्रिया को सुनते समझते व चलाते हैं। दिल्ली की जिला अदालतों में गठित डिजिटल अदालतों में वर्तमान में चेक बाउंसिंग से जुड़े मामलों की सुनवाई की जाती है
हाईब्रिड अदालतें
कोरोना काल में स्थापित की गई इन उपरोक्त अदालतों ने गठन के साथ ही तेज़ी से मामलों का निपटान करना शुरू किया , ये सभी के लिए बहुत ही सुविधाजनक हो गया था कि वे सिर्फ अपने मोबाइल से ही अदालती कार्रवाई में भाग ले सकते थे , अपनी बात कह सुन सकते थे और सारे कागजातों को भी मेल द्वारा जमा करवा सकते थे , किन्तु इन सुविधाओं के बाद भी किसी को सिर्फ न्याय मांगने के हक़ से सिर्फ इसलिए वंचित नहीं किया जा सकता क्योंकि उनके पास इन दोनों उपरोक्त अदालतों की जानकारी नहीं है , उनके लिए ही ये व्यवस्था रखी गई , जिसे कहा जाता हाइब्रिड अदालत। इस अदालत में चाहे तो एक पक्ष इंटरनेट से और दूसरा सदेह स्वयं उपस्थित होकर अदालती कार्रवाई में भाग ले सकता है।
कंप्यूटर तकनीक का न्यायिक प्रक्रिया में सामंजस्य और प्रयोग एक ऐसा विषय है जिस पर बस अभी अभी काम शुरू हुआ है और नित नए प्रयोग किए जा रहे हैं , भविष्य में इससे मुकदमों के निस्तारण में क्या कितनी सफलता मिलेगी ये देखने समझने की बात है फिलहाल न्यायिक प्रक्रियाओं और व्यवस्थाओं में सुधार के लिए किए जा रहे इन प्रयोगों को निश्चय ही शुभकामनाएं देनी बनता है।