बिहार में नीतीश बाबू की सुशासन वाली सरकार , धड़ाधड़ चल रही है और फिर क्यों न चले। आज के समय में भला ऐसा फैसला , इतना दृढ़ निर्णय -नशाखोरी को बंद करने , ख़त्म करने के लिए पूरे प्रदेश में -शराबबंदी का फैसला। ज्ञात हो कि , किसी भी राज्य सरकार को -शराब की बिक्री से -एक्साईज़ एक्ट के तहत -अथाह धनराशि कर के रूप में मिलती है जिसे कोई भी राज्य सरकार छोड़ना नहीं चाहती। लेकिन गुजरात और बिहार जैसी राज्य सरकारें , जनभावना का सम्मान करते हुए , उन्हें सुरक्षित -ससंरक्षित करने की सुनिश्चितता तय करने के लिए -शराबबंदी का फैसला ले चुकी हैं।
लेकिन ये -सिर्फ एक पहलू है। दूसरे राज्यों का तो पता नहीं लेकिन बिहार में शराबबंदी सिर्फ एक कागज़ी आदेश भर बन कर रह गया है । पटना ,मुज्जफरपुर , दरभंगा ,मधुबनी जैसे शहरी क्षेत्रों से लेकर सीमांत सुदूर ग्रामीण अंचल तक ,सभी स्थानों पर कहीं चोरी छिपे तो कहीं खुलेआम शराब बनाई ,खरीदी और बेची जा रही है , पड़ोसी राज्यों और पड़ोसी देश नेपाल तक से तस्करी करके भारी मात्रा में शराब बिहार के सारे क्षेत्रों में पहुँचाई जा रही है ।
इस शराबबंदी के ढकोसले की पोल , लगभग हर सप्ताह उन तमाम घटनाओं और अपराधों से खुलती रहती है जिनकी खबरें विभिन्न समाचार माध्यमों में आए दिन छपती और दिखती हैं । कभी बिहार आने जाने वाली रेल की रसोईयान में बरामद होती अवैध शराब की खेप तो कभी प्रदेश के किसी सरकारी दफ्तर से ही लाखों रुपए की अवैध शराब का पकड़ा जाना । ये सब ,अब सामान्य बात हो गई है ।
ग्रामीण क्षेत्रों में पड़ताल से पता चला है कि ,दुकानों ठेकों की तालाबंदी से शराब की खरीद बिक्री पर सिर्फ ये फर्क पड़ा है कि अब इनकी होम डिलवरी करवाई जा रही है । चवन्नी , अठन्नी और रुपया – इस कोड वर्ड के सहारे , पव्वा ,अद्धा और पूरी बोतल खरीदने मंगवाने का ऑर्डर फोन , व्हाट्सएप द्वारा दिया जाता है और सिर्फ थोड़े से पैसों के लालच के लिए , क्षेत्र के युवा और बेरोजगार आसानी से नशे के इस जाल में फँसते चले जा रहे हैं ।
सबसे बड़ी विडंबना यह है कि , प्रदेश में पूर्ण शराबबंदी की घोषणा के बावजूद आए दिन , बिहार में जहरीली शराब बनाए जाने ,और पीए जाने से सैकड़ों लोगों के मरने , बीमार पड़ने की ये खबरें अब साधारण और सामान्य सी घटना है । इन सब पर न तो राज्य प्रशासन , न ही सम्बंधित विभाग और न ही पुलिस की किसी बड़ी कार्रवाई की जानकारी सामने आती है । थोड़ी बहुत जाँच करने कराने की खानापूर्ति – इसके बाद फिर वही शराब और शराब ।।
तीसरी बार राज्य में सत्ता पर बैठे नीतीश कुमार न तो राज्य की शासन व्यवस्था को संभालने दुरुस्त करने में कोई रुचि दिखा रहे हैं और न ही अपराध , नशे और बेरोजगारी जैसी समस्याओं से निपटने के लिए कोई कदम उठा रहे हैं । यही बिहार की सबसे बड़ी त्रासदी है कि उसकी किस्मत में चाहे अनपढ़ नेतृत्वकर्ता मिलें हों या पढ़े लिखे इंजीनियर मुख्यमंत्री – राज्य की दुर्दशा वैसी ही बनी रही ।।