“भाई साहब मुझे भी “
“भाई साहब मुझे भी “, उसने चौंक कर उधर देखा , क्योंकि ये आवाज़ एक बच्चे की थी , अमूमन तौर पर बच्चों के मुंह से अंकल मुझे भी या बाबू जी मुझे भी जैसा ही कुछ सुनने को मिलता है , सो चौंक उठना लाजिमी था । उसने देखा कि पांच उससे भी कम बरस का एक छोटा सा बच्चा जो उस जीवों के झुंड का एक हिस्सा था , ये आवाज़ उसकी थी । हैरान कर देने वाली बात ये थी कि वो जिसे भाई साहब कह रहा था , वो भाई साहब , एक साढे सात आठ साल का बच्चा था जो अपने माता पिता के साथ मंदिर आया हुआ था , दोनों हाथों में छोले पूरी के दोने लिए हुए एक एक करके उस झुंड के सभी लोगों में बांट रहा था
बच्चा जो पांच साल का था उसके मुंह से ये स्वाभाविक तौर पर निकला था शायद , वजह ये थी शायद कि उसे लगा कि कहीं वो बच्चा , अपने किसी बचपने में कहीं उसे छोड न जाए । मंदिर की कतार में प्रभु के दर्शन पाने के लिए खडे उस व्यक्ति की दिमाग में यही बात गूंज रही थी और वो ईश्वर से पूछ रहा था कि बताओ प्रभु ,
“आखिर ये तुम्हारी दुनिया में एक पांच साल का बच्चा , कुछ खाने के लिए पाने की आस में एक साढे सात साल के बच्चे को भाई साहब कहने को क्यों मजबूर है ????”