अभी विजयादशमी पर अपने उद्बोधन में जब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने सरकारों पर सीधा सीधा आरोप लगाते हुए कहा था की , सरकारों द्वारा मंदिर और मंदिर की संपत्ति से जुड़ी आय को किसी न किसी बहाने से अपने नियंत्रण में लेने की प्रव्रुत्ति ठीक नहीं है और सरकारों को चाहिए कि वे मंदिर और मठों का सारा धन ,संपत्ति जल्द से जल्द वापस कर दें।
उस समय शायद ही किसी को अंदाजा होगा कि वास्तविकता का अनुमान सिर्फ एक इस तथ्य से ही लगाया जा सकता है कि , अकेले एक तमिलनाडु की राज्य सरकार ने अदालत में शपथ पत्र दाखिल करके जानकारी दी है कि , राज्य सरकार अब तक , तमिलनाडु के मंदिरों में दान के रूप में दिए गए एक दो नहीं पूरे 5 लाख किलो सोना और जेवरात को पिघला कर उसका उपयोग कर चुकी है। और सरकार इतने पर ही नहीं रुकी है बल्कि , अब भी ये प्रक्रिया बदस्तूर जारी है और मंदिरों को दान में मिला धन सोना जेवरात आदि को ठिकाने लगाने का काम किया जा रहा है।
ज्ञात हो कि , सरकार ने मंदिरों को दान में प्राप्त सोने को गला कर विभिन्न बैंकों में रखने की अनुमति हेतु दायर याचिका में ये जानकारियां अदालत को दी हैं। इसी याचिका की सुनवाई के तहत दिए गए निर्देशों के अनुपालन में , तीन न्यायाधीशों की एक समिति , मंदिरो के सोने को गलाने और उसे बैंकों में जमा करवाने का सारा कार्य देख रही है
भाजपा ने इसका विरोध करते हुए , सरकार की नीयत पर सवाल पर सवाल उठाते हुए सरकार के इस कदम को हिन्दुओं विरुद्ध बताया है । उन्होंने पूछा है कि ,मंदिर की धन , संपत्ति का निर्धारण , उपयोग , भंडारण और निष्पादन का अधिकार मंदिर को , मंदिर समिति को या उनके प्रतिनिधियों को ही क्यों नहीं है । और ये किसके निर्णय से फैसला लिया गया कि ,क्या कैसे होगा ???